गांधी पार्क के घोटाले की फाइल बगैर जांच दफन, जानिए पूरा मामला
गांधी पार्क में बने किड्स जोन में हुए घोटाले के मामले में पहले तो जांच का आदेश ही एक कमरे से दूसरे तक पहुंचने में 28 दिन लग गए। नया खुलासा यह हुआ कि मामले में जांच हुई ही नहीं।
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। सरकारी दफ्तरों में वित्तीय अनियमितता के मामले किस कदर दबाए जाते हैं, नगर निगम इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। सोडियम लाइट, टायर खरीद, पोकलैंड मशीन खरीद घोटाले जैसे चर्चित मामले तो कई वर्षों से निगम की फाइलों में कैद हैं। ताजा मामला अमृत योजना में गांधी पार्क में बने किड्स जोन का है। पिछले साल जून में प्रकाश में आए लाखों के गोलमाल के इस मामले में पहले तो जांच का आदेश ही एक कमरे से दूसरे में पहुंचने में 28 दिन लग गए। नया खुलासा यह हुआ कि मामले में जांच हुई ही नहीं।
दरअसल, तत्कालीन नगर आयुक्त विजय जोगदंडे ने अपर नगर आयुक्त नीरज जोशी को जांच सौंपी थी पर अपर आयुक्त ने यह कहकर जांच लौटा दी थी कि जांच सिविल मामले से जुड़ी है। वह सिविल के बंदे नहीं हैं, लिहाजा जांच सिविल से जुड़े अधिकारी से कराई जाए। इसके बाद जांच से जुड़ा कोई पत्राचार हुआ ही नहीं, बल्कि इसे फाइलों में 'दफन' कर दिया गया। सूचना के अधिकार में यह खुलासा हुआ था कि अमृत योजना में बनाए किड्स जोन में लाखों रुपये का घोटाला हुआ है।
इसके अलावा पार्क में गुणवत्ता भी ताक पर रखी गई। बाजार में में पांच से छह हजार रूपये में मिल रही एलईडी लाइट 28,600 रुपये की दर पर खरीदी गईं। बैठने वाली बैंच भी 18,000 की दर पर खरीदी गई। सामान्य पोलों की खरीद 55 हजार प्रति पोल की पर की गई। इतना ही नहीं बच्चों की टॉय ट्रेन साढ़े 12 लाख रुपये में खरीदी गई और हैरानी वाली बात ये है कि इसकी टीन शेड पर ही नगर निगम अधिकारियों ने 10 लाख रुपये का खर्च आना दर्शाया।
मामला शासन स्तर पर पहुंचा तो 30 जून 2018 को तत्कालीन नगर आयुक्त विजय कुमार जोगदंडे ने मामले में अपर नगर आयुक्त नीरज जोशी को जांच अधिकारी नामित किया। साथ ही ठेकेदार की शेष पचास लाख रुपये की धनराशि का भुगतान भी रोक दिया गया। हैरानी की बात ये है कि नगर आयुक्त और अपर आयुक्त के कमरे अगल-बगल हैं लेकिन जांच आदेश पत्र अपर आयुक्त को मिलने में 28 दिन लग गए थे। पत्र मिलने के एक हफ्ते बाद ही अपर आयुक्त ने मामले से खुद को अलग कर लिया था, मगर तत्कालीन आयुक्त की ओर से दूसरे अधिकारी को जांच सौंपी ही नहीं गई।
अब मामले को उजागर करने वाले भाजपा पार्षद अजय सिंघल ने वर्तमान नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय से मिल मामले की जानकारी दी। नगर आयुक्त ने बताया कि मामला उनके संज्ञान में नहीं था, लेकिन अब वे इसकी फाइल फिर से खुलवाएंगे। पार्षदों ने शिकायत दोबारा से शहरी विकास निदेशालय में भी दी है।
पहले प्रोजेक्ट में ये हाल, आगे क्या होगा
किड्स जोन अमृत योजना का पहला ऐसा प्रोजेक्ट है, जो वजूद में आ चुका है। इसके अलावा अमृत योजना में ही गांधी पार्क में डेढ़ करोड़ रुपये से सौंदर्यीकरण का काम अलग से चल रहा। इसके साथ ही करीब 60 करोड़ रुपये से सीवरेज व ड्रेनेज के काम भी चल रहे हैं। पार्षदों के आरोप हैं कि जब पहले प्रोजेक्ट में इतना गोलमाल किया गया तो बाकी की स्थिति खुद आंकी जा सकती है। गांधी पार्क का हाल तो ये है कि बीते दिनों नए महापौर सुनील उनियाल गामा के निरीक्षण में पैदल ट्रैक की गुणवत्ता निम्न स्तर की मिली थी। गामा ने ट्रैक निर्माण दोबारा करने के निर्देश दिए थे।
यह हैं अफसरों पर आरोप
केंद्र सरकार की अमृत योजना के तहत ढाई वर्ष पहले गांधी पार्क में किड्स जोन बनाने के लिए डेढ़ करोड़ रुपये का बजट मंजूर हुआ था। शुरुआत में खुलासा हुआ कि ठेकेदार नई ईंटों के बदले पुरानी और घटिया ईंटें और निम्न गुणवत्ता की निर्माण सामग्री प्रयोग कर रहा है। तत्कालीन नगर आयुक्त रवनीत चीमा ने ठेकेदार को मामले में चेतावनी जारी की थी। पार्क में निर्माण कार्य की गुणवत्ता जांचने का जिम्मा अमृत व नगर निगम के निर्माण अनुभाग के जुड़े अधिकारियों का था।
आरोप है कि निगम अधिकारियों ने अपने निरीक्षण में गंभीरता के बजाए लचीला रुख अपनाया व ठेकेदार मनमाने रेट पर सामान खरीदकर इसे निगम अधिकारियों से स्वीकृत कराता रहा। इतना ही नहीं बाजारी भाव से कईं गुना अधिक रेट पर सामान खरीदा गया। प्रत्येक सामान के मूल्य का परीक्षण करना था, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह से दरकिनार कर ठेकेदार को लाभ पहुंचाया गया।
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