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इन दो गांवों के बीच हुआ गागली युद्ध, जानिए इसके पीछे की कहानी

पाइंता पर्व पर नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवधार स्थल में कुरोली व उत्पाल्टा के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध हुआ।

By Edited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 09:57 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 08:54 PM (IST)
इन दो गांवों के बीच हुआ गागली युद्ध, जानिए इसके पीछे की कहानी
इन दो गांवों के बीच हुआ गागली युद्ध, जानिए इसके पीछे की कहानी

साहिया, देहरादून[जेएनएन]: उत्तराखंड के देहरादून में पश्चाताप की आग में जल रहे दो गांवों के बीच गागली युद्ध हुआ। ये एक ऐसा युद्ध है जिसमें किसी की हार जीत नहीं होती, बल्कि युद्ध के बाद दोनों गांव एक दूसरे को गले लगाते हैं। इस युद्ध से दो बहनों की कहानी जुड़ी है। 

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पाइंता पर्व पर नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवधार स्थल में कुरोली और उत्पाल्टा के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध चला। ये दोनों गांव हार जीत के लिए नहीं लड़ते हैं। हर बार की तरह इस बार भी युद्ध के बाद उत्पाल्टा का पंचायती आंगन लोक संस्कृति से गुलजार रहा। महिलाओं ने तांदी, झेंता, रासो नृत्य से समा बांधा। पूरे हर्षोल्लास के साथ जौनसार में पाइंता यानि दशहरा पर्व संपन्न हुआ।

गागली युद्ध के पीछे की कहानी 

गागली युद्ध की कहानी कालसी ब्लॉक के उत्पाल्टा गांव की बैराण और पथान परिवार की रानी और मुन्नी दो बहनों की है। दोनों बहनें गांव से कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुएं में पानी भरने गई थीं, रानी अचानक कुएं में गिर गई। मुन्नी ने घर पहुंचकर रानी के कुएं में गिरने की बात बताई तो ग्रामीणों ने मुन्नी पर ही रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगा दिया, जिस पर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगा दी। इसके बाद ग्रामीणों को बहुत पछतावा हुआ। 

रानी और मुन्नी की मूर्तिया करते हैं कुएं में विसर्जित  

इसी घटना को याद कर पाइंता से दो दिन पहले मुन्नी और रानी की मूर्तियों की पूजा होती है। पाइंता के दिन मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती हैं। कलंक से बचने के लिए उत्पाल्टा और कुरोली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं।

गागली के पत्तों और डंठल से हुआ युद्ध 

दशहरे पर हर बार की तरह इस बार भी सुबह ग्रामीणों ने मान्यता अनुसार दोनों बहनों मुन्नी और रानी की मूर्तियों की पूजा की। पाइंता के दिन मूर्तियां कुएं में विसर्जित की गई। इसके बाद उत्पाल्टा और कुरोली के ग्रामीण ढोल-नगाड़ों की थाप पर गागली युद्ध के लिए देवधार के लिए चले। ग्रामीणों के हाथ में गागली(अरबी) के पत्ते और डंठल थे। जिसके बाद पश्चाताप की आग में जल रहे ग्रामीणों के बीच युद्ध हुआ। 

ढोल नगाड़े के थाप पर थिरके ग्रामीण 

युद्ध को लेकर दोनों गांवों के ग्रामीणों में विशेष उत्साह रहा। जौनसार के इस अनूठे युद्ध को देखने के लिए आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे। दोनों गांवों के लोग अपने-अपने गांव के सार्वजनिक स्थल पर एकत्रित होकर ढोल-नगाड़ों और रणसिंघे की थाप पर नाचते-गाते नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवधार नामक स्थल पर पहुंचे। जहां पर दोनों गांवों के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध हुआ। 

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