जंगल की बात : शुक्र है बदरा मेहरबान हो गए, वन महकमे की भी सांस में सांस आई
लंबे इंतजार के बाद इंद्रदेव ने नेमत बरसाई तो वन महकमे की भी सांस में सांस आई है। असल में अक्टूबर से बारिश न होने की वजह से राज्य में सर्दियों में जंगल ...और पढ़ें

देहरादून, केदार दत्त। लंबे इंतजार के बाद इंद्रदेव ने नेमत बरसाई तो वन महकमे की भी सांस में सांस आई है। असल में अक्टूबर से बारिश न होने की वजह से राज्य में सर्दियों में जंगल सुलगने लगे थे। आकड़ों पर गौर करें तो एक अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर तक आग की 154 घटनाओं में 210 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचा। इसमें 1600 पेड़ों को भी क्षति पहुंची है। आग की निरंतर बढ़ती घटनाओं ने महकमे की बेचैनी बढ़ा दी थी और उसकी नजरें आसमान पर टिकी हुई थीं। आखिरकार इंद्रदेव ने कृपा बरसाई और वर्षा-बर्फबारी होने से जंगलों की आग पर नियंत्रण पाने में मदद मिली। वन क्षेत्रों में नमी घटने का संकट भी दूर हो गया। बावजूद इसके खतरा अभी टला नहीं है। ठीक है कि सर्दियों में ठंडक के चलते खतरा कम रहेगा, लेकिन फरवरी से शुरू होने वाले फायर सीजन के लिए अभी से पुख्ता तैयारियां करनी होंगी।
काश, सालभर ही रहे ऐसा अलर्ट
वन्यजीव विविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में त्योहारी सीजन के मद्देनजर जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए जारी किए हाई अलर्ट के अब तक सकारात्मक नतीजे आए हैं। अक्टूबर आखिर से बरती जा रही विशेेष सतर्कता का ही परिणाम है कि अब तक वन्यजीवों के शिकार की कोई घटना सामने नहीं आई। वनकर्मी गश्त में जुटे हैं तो राज्य की सीमाओं पर खास चौकसी बरती जा रही है। निश्चित रूप से यह पहल बेहतर है, मगर सवाल अपनी जगह बरकरार है। वन्यजीव सुरक्षा को विशेष सतर्कता सिर्फ त्योहारी सीजन में ही क्यों, वर्षभर क्यों नहीं नहीं। वह भी यह जानते हुए कि राज्य के जंगलों में पल रहे वन्यजीव शिकारियों और तस्करों के निशाने पर हैं। यदि सालभर ही समूचा सिस्टम अलर्ट मोड में रहे तो शिकारी व तस्कर अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाएंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि वन्यजीव महकमा अब इस दिशा में अधिक गंभीर होगा।
फसल सुरक्षा के लिए अब घेरबाड़
विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगली जानवर अब फसल क्षति का सबब नहीं बनेंगे। वन्यजीव जंगल की देहरी पार न करें, इसके लिए वन सीमा पर घेरबाड़ के कांसेप्ट को धरातल पर उतारा जा रहा है। प्रदेश के 94 गांवों में वन सीमा पर की गई 101 किलोमीटर लंबी कंटीली तारों की घेरबाड़ के उत्साहजनक नतीजे आए हैं। इन गांवों में वन्यजीवों का खेतों की तरफ रुख कम हुआ है। इसे देखते हुए कृषि विभाग के साथ ही वन महकमा घेरबाड़ की मुहिम तेज करने की तैयारी में जुट गए हैं। मनरेगा के तहत भी फसल सुरक्षा के लिए वन सीमा पर घेरबाड़ करने का फैसला लिया गया है। इसके साथ ही वन विभाग ने अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में सौर ऊर्जा बाड़ और वन सीमा पर खाई खुदान की दिशा में भी कदम बढ़ाए हैं। ऐसे उपायों को अब और गति देने की दरकार है।
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मोतीचूर-धौलखंड में बढ़ेगा बाघों का कुनबा
राजाजी नेशनल पार्क के मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में जल्द ही बाघों की दहाड़ सुनाई देगी। यहां कार्बेट टाइगर रिजर्व से पांच बाघ शिफ्ट करने की कवायद को मुकाम तक पहुंचाने के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। असल में राजाजी पार्क के चीला, गौहरी व रवासन क्षेत्रों में तीन दर्जन से ज्यादा बाघ हैं, लेकिन बीच में गंगा नदी के अलावा पार्क से गुजर रहे रेलवे ट्रैक और हाईवे के कारण वहां से बाघ दूसरी तरफ मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में नहीं आ पाते। नतीजतन इस क्षेत्र में सात साल से रह रहीं दो बाघिनों को साथी नहीं मिल पा रहे। इसी के दृष्टिगत चार साल पहले कार्बेट से बाघ शिफ्ट करने का निर्णय लिया गया। केंद्र से हरी झंडी मिलने के साथ ही करीब एक करोड़ रुपये की राशि राज्य को मिल चुकी है। अब जाकर यह मुहिम अंतिम चरण में पहुंची है और जल्द ही यहां बाघ शिफ्ट किए जाएंगे।

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