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    बाबर ने भारत पर क्‍यों किया था आक्रमण, कारण जानकर हैरान हो जाएंगे आप

    बाबर के भारत पर 16वीं सदी में किए गए आक्रमण के कारणों को कुछ इतिहासकार जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखते हैं। इस एतिहासिक तथ्य पर अब वैज्ञानिकों ने भी मुहर लगा दी है।

    By sunil negiEdited By: Updated: Sun, 28 Aug 2016 04:03 PM (IST)

    देहरादून, [सुमन सेमवाल]: संभवत: पहली बार इतिहास को विज्ञान की कसौटी पर परखा गया है। भारत में मुगलवंश की नींव डालने वाले बाबर के भारत पर 16वीं सदी में किए गए आक्रमण के कारणों को लेकर इतिहासविदें के अलग-अलग मत रहे हैं।

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    कुछ इसे बाबर की विस्तारवादी मानसिकता करार देते हैं, जबकि कुछ इतिहासकार इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मत, जिसका जिक्र बाबरनामा में भी है, वह यह कि फरगना (अब उज्बेकिस्तान) में घोर अकाल पड़ने के बाद बाबर ने भारत का रुख किया था। इस एतिहासिक तथ्य पर अब वैज्ञानिकों ने भी मुहर लगा दी है।

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    वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. जयेंद्र सिंह व डॉ. आरआर यादव ने ट्री-रिंग्स (वृक्ष के तने पर पाए जाने वाले छल्ले) का अध्ययन कर बताया कि बाबर के आक्रमणकाल में उज्बेकिस्तान सूखे की चपेट में था और भारत की जलवायु बेहतर थी। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. जयेंद्र के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के किन्नौर क्षेत्र और उज्बेकिस्तान की जलवायुवीय दशा समान हैं। विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पहले ही स्पष्ट है कि खास तरह का रेन शेडो (कम वर्षा) वाला जैसा भौगोलिक ढांचा किन्नौर में है, उसी तरह की स्थिति उज्बेकिस्तान की भी है। ऐसे क्षेत्र में बारिश कम पहुंच पाती है।

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    इन इलाकों में थोड़ी बहुत बारिश सर्दियों में होती है। लिहाजा, वाडिया के वैज्ञानिकों ने बाबर के आक्रमण काल (1505, 1507, 1519, 1523-1524, 1525-1526) के दौरान व उसके बाद की जलवायु की स्थिति का पता लगाने का निर्णय लिया। इसके लिए वैज्ञानिकों ने किन्नौर क्षेत्र में देवदार व चिलगोजा के पेड़ों के छल्लों का अध्ययन किया। इस पूरे दौर में पेड़ों के छल्ले बेहद पतले पाए गए।

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    वैज्ञानिकों के अनुसार जब बारिश बेहद कम हो अथवा न के बराबर हो तो छल्ले पतले हो जाते हैं। वहीं आक्रमण काल के बाद के वर्षों में छल्ले मोटे पाए गए। डॉ. जयेंद्र ने बताया कि हर पेड़ एक साल में एक छल्ला बनाता है और उस समय बारिश की स्थिति जैसी होगी, छल्ले पर उसका असर नजर आता है। यह अध्ययन नीदरलैंड के जर्नल क्वार्टनरी साइंस रिव्यूज में भी प्रकाशित हो चुका है।

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    मानसून जोन के आंकड़ों से की तुलना

    वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने ट्री-रिंग्स के आधार पर बाबर के आक्रमणकाल के दौरान उज्बेकिस्तान की जलवायु का आकलन करने के साथ ही भारत के मानसून जोन (मध्य भारत) की जलवायु के आंकड़े भी जुटाए। इसके बाद दोनों क्षेत्रों की जलवायु की तुलना की गई। इस आधार पर वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि बाबर के आक्रमण वाले वर्षों में उज्बेकिस्तान में अकाल की स्थिति थी और मध्य भारत बेहतर जलवायु के चलते फल-फूल रहा था।

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