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    एक अपील की सुनवाई पर खर्च आ रहा करीब आठ हजार रुपये का

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sun, 09 Feb 2020 05:06 PM (IST)

    सूचना आयोग में काम कम और बजट फुल वाली स्थिति आ गई है। एक अपील की सुनवाई पर ही करीब आठ हजार रुपये का खर्च आ रहा है।

    एक अपील की सुनवाई पर खर्च आ रहा करीब आठ हजार रुपये का

    देहरादून, सुमन सेमवाल। जिस सूचना आयोग में कभी एक-एक आयुक्त के पास 20-25 अपीलें लगती थीं, वहां आज यह आंकड़ा 12-15 अपीलों तक सिमट गया है। ऐसे में काम कम और बजट फुल वाली स्थिति आ गई है। एक अपील की सुनवाई पर ही करीब आठ हजार रुपये का खर्च आ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि सूचना आयोग के आदेश अब अधिक विस्तार से आ रहे हैं, बल्कि अब तो आदेश की कहानी या तो सूचना मांगने वाला समझ सकता है या सूचना देने वाला। कम अपीलें सुने जाने का यह मतलब भी नहीं रह गया है कि उनका निस्तारण तेज हो रहा है। वर्ष 2005 से मार्च 2019 तक अपीलों के निस्तारण का ग्राफ 97.12 फीसद था, जो इस वित्तीय वर्ष में 88.60 फीसद पर सिमटता दिख रहा है। आयुक्त-आयुक्त की बात है। आयोग तो वही है, बस आयुक्त नए हैं। अधिकारी सुकून में है और जनता खीज रही है।

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    हाथी के साथ जांच दफ्न

    जिस हाथी का शव बुरी तरह सड़-गल गया था, उसकी पहचान के लिए देहरादून वन प्रभाग के अधिकारियों ने तीन स्थानीय लोगों का सहारा लिया। इन लोगों ने भी झटपट काकवाणी कर दी कि मृत हाथी मादा है। भले ही पोस्टर्माटम रिपोर्ट में शव को सड़ा-गला बताया गया था। फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी इसी के अनुरूप आ गई। घटना जुलाई 2018 की है और अब आरटीआइ कार्यकर्ता विनोद जैन की प्रमुख सचिव को भेजी गई शिकायत के बाद पूरा महकमा हिलता दिख रहा है। वजह यह नहीं कि हाथी की मौत हो गई। वजह है कि प्रकरण में आज तक केस भी दायर नहीं किया गया। न ही हाथी के अवशेष को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया। यहां दाल में काला न होकर पूरी दाल इसलिए काली है कि इसी वन प्रभाग में अगस्त, सितंबर व अक्टूबर 2018 में एक के बाद एक तीन और मृत हाथी मिले थे।

    बंदोबस्त का नहीं हुआ 'बंदोबस्त'

    बंदोबस्त विभाग फिर अपनी कार्यशैली से चर्चा में है। कुछ दिन पहले ही यहां के एक पटवारी को विजिलेंस टीम रंगे हाथों दबोच चुकी है। यह नौबत क्यों आई पर्दे के पीछे की कहानी हम आपको बताते हैं। इस विभाग के कार्मिकों को नकद-नारायण का चस्का जो लग चुका है। कहने को बंदोबस्त विभाग के काम-काज को दो साल पहले तहसील को सौंपा जा चुका है, पर मजाल है कि यहां के रिकॉर्ड अभी तहसील पहुंच सके हों। जिस बंदोबस्त विभाग को अब बंद हो जाना चाहिए था, वह अब भी घिसट रहा है। लोग पिस रहे हैं, एडिय़ां घिस रहे हैं और दाखिल खारिज के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। अपने काम के लिए लोग घूस देने को विवश हो रहे हैं, मगर पिछले दिनों के ट्रैप से साफ हो गया है कि पानी अब सिर से ऊपर बहने लगा है। अब बंदोबस्त विभाग का 'बंदोबस्त' करना जरूरी है।

    राजस्व के नोटिस बैरंग लौटे

    पहले सरकार ने नदी श्रेणी की भूमि पर जमकर पट्टे बांटे और अब उन्हें खारिज करने के लिए एक हजार से अधिक ताबड़तोड़ नोटिस जारी कर दिए। हाईकोर्ट के आदेश पर जारी किए गए नोटिस जिस तेजी से भेजे गए, उसी रफ्तार से यह बैरंग भी लौट रहे हैं। दशकों पहले जिन लोगों को भूखंड बांटे थे, वे अब उन्हें बेचकर फारिग हो गए हैं। नोटिस नए लोगों के पतों पर पहुंच रहे हैं और उन्हें वैसे ही चलता कर दिया जा रहा है।

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    जिन लोगों को नोटिस मिले भी हैं, वह राजस्व कोर्ट में हाजिर नहीं हो रहे। अब अधिकारी चकरघिन्नी बने हैं। एक तरफ कोर्ट का डंडा दिख रहा है, तो दूसरी तरफ इतनी बड़ी संख्या में लोगों की खोज-खबर करना भारी पड़ रहा है। खैर, अभी राजस्व न्यायालयों में तारीख पर तारीख का खेल चल रहा है। यह कब तक चलेगा और हाईकोर्ट कब तक इंतजार करेगी?

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