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अस्पतालों में बेड की किल्लत के बीच ऑक्सीजन सिलिंडर के साथ उपकरणों का भी संकट

दून में कोरोना वायरस लगातार घातक होता जा रहा है और व्यवस्थाएं एक-एक कर धड़ाम हो रही हैं। संक्रमण की दिनोंदिन बढ़ती रफ्तार और अस्पतालों में बेड की किल्लत के बीच देहरादून में ऑक्सीजन संबंधी चिकित्सा उपकरणों का भी संकट पैदा हो गया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 24 Apr 2021 10:34 AM (IST)Updated: Sat, 24 Apr 2021 10:34 AM (IST)
देहरादून के मच्छी बाजार स्थित पाल सर्जिकल दुकान में मेडिकल सामान लेने के लिए खड़े लोग।

जागरण संवाददाता, देहरादून। दून में कोरोना वायरस लगातार घातक होता जा रहा है और व्यवस्थाएं एक-एक कर धड़ाम हो रही हैं। संक्रमण की दिनोंदिन बढ़ती रफ्तार और अस्पतालों में बेड की किल्लत के बीच देहरादून में ऑक्सीजन संबंधी चिकित्सा उपकरणों का भी संकट पैदा हो गया है। बाजार में नए ऑक्सीजन सिलिंडर और इसमें इस्तेमाल होने वाले फ्लो मीटर व ऑक्सीजन मास्क के साथ पल्स ऑक्सीमीटर ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। ऑक्सीजन और चिकित्सकीय उपकरणों के विक्रेता भी बाहर से नया माल नहीं आने के कारण परेशान हैं।

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सामान्य दिनों में दून के अस्पतालों में औसतन 10 से 15 ऑक्सीजन सिलिंडर और इतने ही इससे संबंधित उपकरणों की आवश्यकता रोजाना होती है। कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की खपत 40 से 60 सिलिंडर तक पहुंच गई है। ऐसे में इससे संबंधित उपकरणों की मांग भी कई गुना बढ़ गई है। ऑक्सीजन और चिकित्सकीय उपकरणों के विक्रेताओं की मानें तो लोग जरूरत से ज्यादा उपकरण खरीद रहे हैं। इसके चलते यह स्थिति उत्पन्न हुई है। इसकी वजह यह कि कोरोना का नया स्ट्रेन फेफड़ों को ज्यादा प्रभावित कर रहा है। इससे मरीजों में श्वास संबंधी समस्या बढ़ गई है। होम आइसोलेशन में भी ऑक्सीजन सिलिंडर की जरूरत पड़ रही है। ऐसे में आमजन भी ऑक्सीजन सिलिंडर खरीद रहे हैं। कुछ लोग कोरोना की आशंका में एहतियान भी ऑक्सीजन सिलिंडर और इससे संबंधित चिकित्सकीय उपकरण खरीदकर घर पर रख रहे हैं। जिससे आपात स्थिति में परेशानी का सामना न करना पड़े। 

कांवली रोड स्थित अंबिका गैस के मालिक सुनील अग्रवाल ने बताया कि कोरोना संक्रमण का प्रसार बढ़ने से ऑक्सीजन की मांग सामान्य दिनों के मुकाबले चार गुना तक बढ़ गई है। उनके पास छोटे-बड़े मिलाकर 50 ऑक्सीजन सिलिंडर हैं। एक वक्त में वह 25 सिलिंडर की आपूर्ति ही कर पाते हैं। बाकी के 25 सिलिंडर ऑक्सीजन की रीफिलिंग के लिए भेजे जाते हैं। सुनील ने बताया कि उत्तराखंड में ऑक्सीजन सिलिंडर की एक ही मैन्युफैक्चरिंग यूनिट होने के कारण नए सिलिंडर मिलना मुश्किल हो गया है। 

वहीं, हरिद्वार रोड स्थित अरिहंत गैस के संचालक आदित्य ने बताया कि प्रदेश में ऑक्सीजन सिलिंडर की एकमात्र मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हरिद्वार में है। वहां भी अधिकांश सिलिंडर गुजरात और मध्यप्रदेश से आते हैं। फिलहाल दोनों ही जगह से नए सिलिंडर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। उनके पास छोटे-बड़े 70 सिलिंडर हैं। इन्हीं से अस्पताल और घरों में ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जा रही है।

फ्लो मीटर और मास्क बाजार से गायब

सिलिंडर से ऑक्सीजन तय मात्रा में ही मरीज तक पहुंचे, इसके लिए सिलिंडर में फ्लो मीटर लगा होता है। मास्क ऑक्सीजन को सीधे नाक के अंदर पहुंचाता है। मच्छी बाजार में सर्जिकल उपकरणों के थोक विक्रेता तरुण ने बताया कि वह 35 साल से इन उपकरणों की बिक्री कर रहे हैं, मगर फ्लो मीटर, मास्क, ऑक्सीमीटर समेत अन्य उपकरणों की इतनी मांग कभी नहीं देखी। तरुण ने बताया कि सामान्य दिनों में जहां महीनेभर में 70 से 80 फ्लो मीटर और मास्क की बिक्री होती थी। अब एक दिन में ही 80 से 100 फ्लो मीटर की मांग आ रही है। उन्हें खुद भी दिल्ली से नया माल नहीं मिल पा रहा। सर्जिकल उपकरणों के एक अन्य थोक विक्रेता रामा सर्जिकल के संचालक आकाश शरण ने बताया कि उनकी दुकान में भी रोज 100 से ज्यादा फ्लो मीटर और मास्क की मांग आ रही है। आकाश ने बताया कि अस्पताल छोड़ि‍ए, बहुत सारे लोग घर पर इस्तेमाल के लिए सिलिंडर, फ्लो मीटर और मास्क लेने आ रहे हैं। कोरोना के खौफ में घर में मौजूद सदस्यों की संख्या के हिसाब से इसकी खरीदारी की जा रही है। पल्स ऑक्सीमीटर और स्टीमर की भी यही स्थिति है। वहीं, दिल्ली से इनकी आपूर्ति ठप है। 

कालाबाजारी भी हो रही

इन विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ लोग मुनाफाखोरी से बाज नहीं आ रहे। बाजार में भले फ्लो मीटर, ऑक्सीजन मास्क और पल्स ऑक्सीमीटर का टोटा हो, मगर इन उपकरणों की कालाबाजारी खूब की जा रही है। 700 से 1000 रुपये में मिलने वाला फ्लो मीटर 2200 से 3000 रुपये तक में बेचा जा रहा है। 60 रुपये कीमत वाले ऑक्सीजन मास्क के लिए 200 से 250 रुपये वसूले जा रहे हैं। इसी तरह 900 से 1200 रुपये के बीच मिलने वाले पल्स ऑक्सीमीटर की कीमत 3000 से 3500 तक पहुंच गई है। स्टीमर जो सामान्य दिनों में 150 से 200 रुपये का मिल जाता है। उसके लिए 500 से 600 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इन उपकरणों के विक्रेताओं का मानना है कि सरकार को इसकी आपूर्ति पर निगरानी रखने की जरूरत है। कालाबाजारी करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए वरना आने वाले समय में हालात और बिगड़ सकते हैं।

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