कैबिनेट बैठक में हुए निर्णय से कर्मचारियों में निराशा, आंदोलन पर लेंगे फैसला
सामूहिक अवकाश लेकर सरकार को बैकफुट पर धकेलने वाले कर्मचारियों को उम्मीद थी कि कैबिनेट उनकी मांगों पर सकारात्मक फैसला लेगी। अब आंदोलन को लेकर कोई रणनीति तैयार हो सकती है।
देहरादून, जेएनएन। कैबिनेट बैठक में हुए निर्णय से कर्मचारियों में निराशा नजर आ रही है। सामूहिक अवकाश लेकर सरकार को बैकफुट पर धकेलने वाले कर्मचारियों को उम्मीद थी कि कैबिनेट उनकी मांगों पर सकारात्मक फैसला लेगी। सरकार ने आवास भत्ते व अन्य पांच भत्तों की बहाली पर मुहर तो लगाई, मगर शेष मांगें सीएम की अध्यक्षता में गठित रिव्यू कमेटी पर छोड़ दीं। हालांकि, सीएम ने कमेटी की कमान अपने हाथों में ले कर्मचारियों का विश्वास जीतने की कोशिश भी की। लेकिन, अभी कर्मचारी संगठन जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहते। आज कर्मचारियों के आंदोलन को लेकर कोई रणनीति तैयार हो सकती है।
उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक समन्वय समिति ने कैबिनेट के निर्णय को निराशाजनक बताया है। कहा कि बेहतर होता कि सरकार उनकी मांगों पर कोई उचित निर्णय लेती। समिति का कहना है कि दो मांगों के अलावा अन्य मांगें रिव्यू कमेटी पर छोड़ दी गई हैं। लेकिन, कमेटी पर विश्वास करना भी आसान नहीं है। क्योंकि पहले भी आश्वासन के नाम पर कर्मचारियों को छला जाता रहा है। हालांकि, समिति ने कैबिनेट के फैसले का आंकलन व आंदोलन पर अंतिम निर्णय लेने के लिए कचहरी स्थित संघ भवन में महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है।
बोले कर्मचारी नेता
- ठाकुर प्रहलाद सिंह (संयोजक, उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक समन्वय समिति) का कहना है कि सरकार से उम्मीद थी कि वे कैबिनेट बैठक में कोई ठोस निर्णय लेगी। लेकिन, दो-तीन मांगों के अलावा किसी पर भी निर्णय नहीं हो पाया। इससे कर्मचारी निराश हैं। शनिवार को समीक्षा बैठक बुलाई गई है, इसमें आंदोलन पर निर्णय लिया जाएगा।
- नंद किशोर त्रिपाठी (प्रांतीय अध्यक्ष, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद) का कहना है कि यह कर्मचारियों के साथ मजाक है। सरकार को रिव्यू कमेटी गठित करने के बजाय कोई निर्णय लेना चाहिए था। कर्मचारियों को सरकार ने एक बार फिर निराश किया है। इस पर संयोजक मंडल आपसी विचार-विमर्श करेगा और आंदोलन पर अंतिम फैसला लेगा।
- राकेश जोशी (संयोजक, उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक समन्वय समिति) का कहना है कि आवास भत्ते व अन्य पांच भत्तों पर सहमति बनी है। अन्य मांगों के निस्तारण को सीएम की अध्यक्षता में रिव्यू कमेटी गठित की गई है। लेकिन, अभी जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा। शनिवार को संयोजक मंडल की महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है, जिसमें आंदोलन जारी रखने या स्थगित करने पर अंतिम फैसला लिया जाएगा।
- संदीप शर्मा (केंद्रीय उप महासचिव, उत्तराखंड पावर जूनियर इंजीनियर एसोसिएशन) का कहना है कि अच्छा होता सरकार कर्मचारियों की जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए मांगों पर निर्णय लेती। लेकिन, मुख्यमंत्री ने स्वयं की अध्यक्षता में रिव्यू कमेटी गठित की है। यह अच्छी पहल कही जा सकती है कि उन्होंने कमान स्वयं संभाल ली है। उम्मीद है कि संवाद के माध्यम से सीएम कर्मचारियों के साथ न्याय करेंगे।
- हेमंत रावत (प्रांतीय महासचिव, उत्तराखंड उपनल कर्मचारी संगठन) का कहना है कि उपनलकर्मियों के साथ प्रदेश सरकार ने एक बार फिर छलावा किया है। जो कर्मचारी 15 से 20 साल से सरकार को निष्ठा से सेवाएं दे रहे हैं, उनके भविष्य की कोई परवाह नहीं है। यदि जल्द उनके साथ न्याय नहीं हुआ तो वे सड़क पर उतरेंगे।
- दीपक बेनीवाल (कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तराखंड ऊर्जा कामगार संगठन) का कहना है कि ऊर्जा कर्मचारी एकजुट हैं। उनकी एसीपी, शिथिलीकरण समेत अन्य मांगें जायज हैं। इस पर सरकार को निर्णय लेना चाहिए। लेकिन, उनका संगठन समन्वय समिति का घटक है, इसीलिए समिति का संयोजक मंडल जो निर्णय लेगा वह मान्य होगा।
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