नारी सशक्तिकरण की मिसाल है उत्तराखंड की डा. हर्षवंती बिष्ट, जानिए इनके बारे में
उत्तराखंड की जानी मानी पर्वतारोही और अर्जुन पुरस्कार विजेता डा. हर्षवंती बिष्ट देश के सबसे बड़े पर्वतारोहण संस्थान आइएमएफ की अध्यक्ष हैं। डा. हर्षवंती बिष्ट आइएमएफ के इतिहास में पहली महिला अध्यक्ष बनी हैं।उनके शिक्षा पर्यावरण और पर्वतारोहण के क्षेत्र में किए उल्लेखनीय कार्य महिलाओं को प्रेरित करते हैं।

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। महिलाएं अगर कुछ करने की ठान लें तो अपने हौसले और प्रतिभा के बूते हर बड़ा मुकाम हासिल कर सकती हैं। उत्तराखंड की जानी-मानी पर्वतारोही और अर्जुन पुरस्कार विजेता डा. हर्षवंती बिष्ट इसकी मिसाल हैं। वर्तमान में डा. हर्षवंती बिष्ट देश के सबसे बड़े पर्वतारोहण संस्थान इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) की अध्यक्ष हैं। आइएमएफ के इतिहास में डा. हर्षवंती बिष्ट पहली महिला अध्यक्ष बनी हैं। इसके साथ ही उत्तराखंड से आइएमएफ का पहला अध्यक्ष बनने का खिताब भी उनके नाम पर है। डा. बिष्ट की ओर से शिक्षा, पर्यावरण और पर्वतारोहण के क्षेत्र में किए उल्लेखनीय कार्य महिलाओं को प्रेरित करने वाले हैं।
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के वीरोंखाल ब्लाक स्थित सुकई गांव निवासी डा. बिष्ट ने वर्ष 1975 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का कोर्स पूरा किया। इसके बाद उन्होंने कई पर्वतारोहण अभियान सफलतापूर्वक पूरे किए। वर्ष 1977 में गढ़वाल विवि में अर्थशास्त्र विषय में लेक्चरर पद पर नियुक्ति के बाद भी उन्होंने पर्वतारोहण जारी रखा। 1981 में उन्होंने नंदा देवी पर्वत (7816 मीटर) के मुख्य शिखर का सफल आरोहण किया। इस अभियान में उनके साथ रेखा शर्मा और चंद्रप्रभा एतवाल भी थीं। नंदा देवी चोटी का आरोहण करने वाली ये तीनों भारत की पहली महिलाएं थीं।
इसके लिए वर्ष 1981 में हर्षवंती को अर्जुन पुरस्कार से नवाजा। वर्ष 2013 में सर एडमंड हिलेरी लीगेसी मेडल भी उन्हें प्रदान किया गया। इस सम्मान को पाने वाली हर्षवंती एशिया महाद्वीप की पहली महिला हैं। डा. हर्षवंती बिष्ट 2020 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी से प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। डा. हर्षवंती अब देहरादून में रहती हैं और पर्वतारोहण के साथ ही पर्यावरण, सामाजिक मुद्दों पर उनकी सक्रियता बनी हुई है। बीते वर्ष 20 नवंबर को वे आइएमएफ की अध्यक्ष बनी हैं। वे कहती हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य भारत में पर्वतारोहण को एक नया मुकाम देने का है, जिसमें भारत सहित विश्वभर के पर्वतारोही एवरेस्ट की ओर नहीं बल्कि भारत में स्थित विश्व विख्यात चोटियों के आरोहण के लिए आएं, जहां आरोहण करने के लिए खुद ही रोप बांधनी पड़ती है, खुद रास्ता बनाना पड़ता है। सही मायने में यही पर्वतारोहण होता है।
1989 में शुरू किया था सेव गंगोत्री प्रोजेक्ट
ग्लेशियर व हिमालय की सुरक्षा के लिए हर्षवंती बिष्ट ने वर्ष 1989 में सेव गंगोत्री प्रोजेक्ट की शुरुआत की। इसके तहत चीड़वासा के पास भोज (सिल्वर बर्च) की पौधशाला तैयार की गई। 1992 से 1996 तक गंगोत्री व भोजवासा में भोज के पौधों का रोपण किया गया। भोजवासा में करीब दस हेक्टेयर क्षेत्र में 12,500 पौधे लगाए। इनमें से 7500 पौधे अब पेड़ बने रहे हैं।
-सविता कंसवाल (युवा पर्वतारोही उत्तरकाशी) का कहना है कि डा. हर्षवंती बिष्ट नारी सशक्तिकरण की मिसाल हैं, उनसे प्रेरणा लेकर वह भी पर्वतारोहण में बुलंदियों को छूने का प्रयास कर रही हैं। महिला को सशक्त बनाने के लिए दैनिक जागरण की मुहिम हमेशा ही प्रेरणादायी है।

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