शहर में डोर-टू-डोर कूड़ा उठान व्यवस्था पटरी पर लाना चुनौती, नियम-कायदे भी ताक पर
दून नगर निगम ने भले ऊंची छलांग लगाई हो लेकिन स्वच्छता के लिए अभी काफी कुछ करना बाकी है। इस कड़ी में डोर-टू-डोर कूड़ा उठान की सुविधा को पटरी पर लाना सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा।
देहरादून, जेएनएन। स्वच्छ शहरों की सूची में दून नगर निगम ने भले ऊंची छलांग लगाई हो, लेकिन स्वच्छता के लिए अभी काफी कुछ करना बाकी है। इस कड़ी में डोर-टू-डोर कूड़ा उठान की सुविधा को पटरी पर लाना सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा। मौजूदा समय में निगम की गाड़ियां वार्डों में न तो समय से कूड़ा उठाने पहुंचती हैं, न ही नियमित आती हैं। यही नहीं कूड़ा इन गाड़ियों में बिना ढके ले जाया जाता है, जबकि नियमों के मुताबिक इसे ढककर ले जाना अनिवार्य है।
निगम से संबद्ध कंपनी के 120 टाटाऐस और 25 डंपर, ट्रक और ट्रैक्टर शहर के कूड़ेदान, घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से कूड़ा उठान करते हैं, लेकिन हैरत वाली बात यह है कि इन सभी का पिछला हिस्सा खुला रहता है। नियमानुसार कूड़े को काले रंग की तिरपाल से ढककर व बंद वाहन में ले जाना चाहिए लेकिन इन नियम-कायदों की परवाह है ही किसे।
शहर में रोजाना करीब 350 मीट्रिक टन कूड़ा और गंदगी का उठान करने का दावा नगर निगम करता है जबकि औसतन करीब 450 मीट्रिक टन कूड़ा-गंदगी रोजाना एकत्र होती है। यानी 100 मीट्रिक टन का उठान होता ही नहीं। जो 350 मीट्रिक टन उठता है, उसमें से भी 20 से 35 मीट्रिक टन तो दोबारा शहर में ही बिखर जाता है। कूड़ा हवा में उड़कर या वाहनों में झटका लगने से सड़कों पर फैल जाता है। यह कूड़ा पूरा दिन इसी तरह सड़कों पर बिखरा रहता है और सफाई करने वाला कोई नहीं। हालत ये है कि यह प्रक्रिया निरंतर जारी है, मगर जिम्मेदार नगर निगम कोई कदम उठाने को राजी नहीं।
सड़क पर बिखरे कूड़े से दुपहिया चालकों को होती है दिक्कत
निगम के वाहनों से कूड़ा उड़कर सड़क पर बिखरने से सर्वाधिक दिक्कत दुपहिया चालकों व पैदल चलने वालों को होती है। अगर कूड़ा उठान वाहन दुपहिया के आगे चल रहे होते हैं तो कूड़ा उड़कर दुपहिया चालक के मुंह या शरीर पर आकर गिरता है। यही हाल पैदल या साइकिल सवारों के साथ भी होता है। कई बार तो कपड़े तक गंदे हो जाते हैं। लगातार लोग इस मामले में शिकायत कर रहे हैं पर निगम प्रशासन नींद से जागने को तैयार ही नहीं।
नाली की गंदगी सड़क पर
निगम कर्मियों के हालत तो ऐसे हैं कि वे अमूमन तो शहर की नालियां साफ ही नहीं करते और जहां साफ करते हैं, वहां गंदगी निकालकर सड़क पर डाल देते हैं। आलम ये है कि इसके बाद यह गंदगी पूरा दिन ही नहीं बल्कि कई-कई दिनों तक सड़कों पर ही पड़ी रहती है। गाड़ियों के टायरों से यह गंदगी चारों तरफ फैलती जाती है। आवारा जानवर भी इसे फैला देते हैं और कूड़ा चुगने वाले भी। नियमित उठान न होने की वजह से गंदगी दोबारा नाली तक पहुंच जाती है।
10 साल में भी पॉलीथिन मुक्त नहीं हुआ दून
शहर को साफ-सुथरा रखने को वैसे तो कुछ प्रयास कारगर साबित हुए लेकिन गत दस साल में दून को पॉलीथिन की गंदगी से मुक्त बनाने का मामला अभी तक अधर में है। दस साल पूर्व 2010 में शुरू हुआ यह अभियान हर बार परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ता गया। हाल ये है कि पिछले एक साल से चार-पांच बार प्रवर्तन की कार्रवाई हुई और फिर इसके बारे में सोचने तक की फुर्सत किसी ने नहीं ली। सड़कों, नालियों व खाली प्लाटों में पॉलीथिन के कूड़े के ढेर शहर की दुर्दशा खुद बयां करते हैं।
नए वॉर्डों में कोई सुविधा नहीं
चुनाव में सब्जबाग दिखाकर भाजपा ने शहर से सटे 72 गांवों को शहर में शामिल कर 32 नए वॉर्ड तो बना दिए, लेकिन इन वॉर्डों में दो साल बाद भी न तो कूड़ा उठान की कोई व्यवस्था की गई, न ही अन्य कोई जन सुविधा। वहां ग्रामीण अब भी अपने ही विकल्पों से सफाई करा रहे। यहां सुविधाएं पहुंचाना भी निगम के लिए बड़ी चुनौती होगा।
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ओडीएफ प्लस प्लस बना वरदान
दून नगर निगम की ऊंची छलांग में शहर को ओडीएफ प्लस प्लस का दर्जा होना भी अहम वजह रहा। सर्वेक्षण के अनुसार दून शहर खुले में शौच से पूरी तरह से मुक्त है। इसके अलावा सार्वजनिक शौचालय बनाने में भी दून काफी आगे रहा।
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