Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Uttarakhand News: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 09:16 PM (IST)

    उत्तराखंड राज्य आंदोलन में दिवाकर भट्ट का अहम योगदान था। युवावस्था से ही आंदोलन में सक्रिय, वे उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्य थे। 2007 में देवप्रयाग से विधायक बने और राजस्व मंत्री रहे। उन्होंने सख्त भूकानून बनाने में भी भूमिका निभाई। भट्ट ने तरुण हिमालय संस्था की स्थापना की और कई आंदोलनों में भाग लिया। वे तीन बार कीर्तिनगर के ब्लॉक प्रमुख भी रहे।

    Hero Image

    वर्ष1995 में खैट पर्वत धरने पर बैठे दिवाकर भट्ट। जागरण आर्काइव

    विकास गुसाईं, जागरण, देहरादून: उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट एक सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। राज्य आंदोलन के दौरान उनकी एक आवाज पर युवा एकत्र हो जाते थे। वह युवावस्था से ही राज्य आंदोलन से जुड़ गए थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राज्य आंदोलन के लिए वर्ष 1978 में दिल्ली रैली में वह उन चुनिंदा युवाओं में शामिल थे, जिन्होंने बदरीनाथ से दिल्ली पैदल यात्रा की थी। वह 1979 में गठित उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं।

    उनके तीखे तेवरों के कारण ही 1993 में हुए उक्रांद सम्मेलन में गांधीवादी नेता इंद्रमणि बडोनी ने उन्हें 'फील्ड मार्शल' की उपाधि दी थी।

    वर्ष 2007 में देवप्रयाग सीट से चुनाव जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे भट्ट ने तब तत्कालीन भाजपा सरकार को समर्थन दिया और राजस्व मंत्री का पदभार भी संभाला।

    मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) के मुख्यमंत्रित्वकाल में जिस सख्त भूकानून की बात होती है, उसे बनाने में भट्ट का भी अहम योगदान रहा है।

    दिवाकर भट्ट के जीवन पर नजर डालें तो तो युवावस्था से ही वह राज्य आंदोलन के लिए समर्पित रहे। श्रीनगर से आइटीआइ करने के बाद वह बीएचईएल हरिद्वार में सेवायोजित हुए। वहां उन्होंने कर्मचारी नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई।

    इसी दौरान उन्होंने हरिद्वार में पर्वतीय वासियों को एकत्र करते हुए वर्ष 1970 में तरुण हिमालय संस्था बनाई। वर्ष 1971 में चले गढ़वाल विश्वविद्यालय आंदोलन में भी वह सड़कों पर रहे।

    उन्होंने 1988 में वन अधिनियम के चलते रूके हुए विकास कार्यों को लेकर भी आंदोलन किया, इसमें उनकी गिरफ्तारी भी हुई। वर्ष 1994 में जब राज्य आंदोलन तेज हुआ तो वह एक प्रमुख चेहरा रहे। नवंबर 1995 में उन्होंने श्रीनगर के श्रीयंत्र टापू और फिर दिसंबर 1995 में टिहरी खैट पर्वत पर आमरण अनशन किया।

    वह राजनीति में भी सक्रिय रहे और 1982 से लेकर 1996 तक तीन बार कीर्तिनगर के ब्लाक प्रमुख रहे। 1999 में वह उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष रहे। यद्यपि, उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से पटरी नहीं मिली। यही कारण रहा कि उक्रांद में कई बार दो फाड़ भी हुआ।

    वर्ष 2007 में वह उक्रांद के टिकट पर देवप्रयाग सीट से विधानसभा चुनाव जीते और राजस्व मंत्री भी बने। वर्ष 2012 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए।

    इसके बाद वह भाजपा को छोड़ फिर से उक्रांद में शामिल हुए। वर्ष 2017 में वह उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष बने। उक्रांद के हाशिये पर जाने का दुख उन्हें हमेशा सालता रहा।

    यह भी पढ़ें- उत्तराखंड में जन-आंदोलनों की मशाल रहे 'दिवाकर' हुए ओझल, अडिग पहाड़ी प्रहरी के रूप में रही पहचान

    यह भी पढ़ें- उत्तराखंड आंदोलन के प्रखर योद्धा दिवाकर भट्ट का निधन, मुख्यमंत्री धामी ने जताया गहरा दुख