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सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों और सरकार के बीच खत्म नहीं हो रही रार, तो अनुदान पर कोर्ट से समाधान

सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों और सरकार के बीच रार खत्म नहीं हो रही है। कॉलेज एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ संबद्धता छोडऩे को तैयार नहीं हैं। विभागीय मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने एलान कर दिया कि संबद्धता नहीं तो अनुदान भी नहीं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 03 Dec 2020 06:05 AM (IST)Updated: Thu, 03 Dec 2020 06:05 AM (IST)
सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों और सरकार के बीच खत्म नहीं हो रही रार, तो अनुदान पर कोर्ट से समाधान
सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों के शिक्षक व कर्मचारी सरकार के खिलाफ आंदोलनरत हैं।

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों और सरकार के बीच रार खत्म नहीं हो रही है। कॉलेज एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ संबद्धता छोड़ने को तैयार नहीं हैं। विभागीय मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने एलान कर दिया कि संबद्धता नहीं तो अनुदान भी नहीं। मामला अब पेचीदा हो गया है। मान-मनुहार से नहीं मानने वाले कॉलेजों से मंत्री जी गुस्साए हुए हैं। केंद्र सरकार को चिट्ठी भेजी गई है कि अशासकीय कॉलेजों को संबद्ध रखना है तो केंद्र सरकार खुद अनुदान दे। कॉलेज जब राज्य सरकार से जुड़े ही नहीं हैं तो उन्हें अनुदान क्यों दिया जाए। इन कॉलेजों के शिक्षकों व कर्मंचारियों के संगठन अदालत में जाने की चेतावनी दे रहे हैं। अंदरखाने प्रदेश सरकार खुद चाह रही है कि ये मामला किसी तरह अदालत तक पहुंचे। उसे उम्मीद है कि अदालत में दूध का दूध और पानी का पानी होने पर कॉलेजों पर नियंत्रण का मसला सुलझ जाएगा।

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ऊपर वाले की सेवा पर भरोसा

शिक्षा विभाग में अपर निदेशक के नौ पद खाली हैं और 23 अधिकारी पदोन्नति के लिए कतार में खड़े हैं। प्रशासनिक संवर्ग के इन अधिकारियों की पदोन्नति ज्येष्ठता नहीं, बल्कि श्रेष्ठता के आधार पर होनी है। कामकाज में बेहतर प्रदर्शन ज्येष्ठता पर भारी पड़ सकता है। नियम तो साफ -सुथरे हैं, लेकिन लोचा कहीं और है। सत्ता के गलियारों में सबकुछ नियमों के मुताबिक ही हो, अक्सर ऐसा होता कम ही देखा गया है। अपर निदेशक पद के लिए डीपीसी की चर्चा शुरू होते ही गणेश परिक्रमा में आगे रहने वालों में इन दिनों खास चमक दिखाई दे रही है। ज्येष्ठता और श्रेष्ठता के फेर में पड़े गैर उन्हेंं इस बात का पूरा भरोसा है कि नियम-कानून व्यर्थ हो सकते हैं, लेकिन ऊपर वालों की मनोयोग से की गई सेवा व्यर्थ नहीं जाती। सेवा का मेवा मिलने के प्रति आश्वस्ति का भाव गजब है। यही है सिद्ध परंपरा पर आस्था।

बीआरपी और सीआरपी बनने को मारामारी

समग्र शिक्षा अभियान के तहत प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की मॉनीटरिंग को ब्लॉक रिसोर्स परसन और क्लस्टर रिसोर्स परसन बनने को लेकर शिक्षकों में मारामारी मची है। प्रदेश में बीआरपी और सीआरपी के 955 पदों पर तैनाती होनी है। सरकार ने समग्र शिक्षा के नए ढांचे में शामिल उक्त पदों पर तैनाती का फैसला अभी नहीं किया। इन पदों के मानदेय के रूप में केंद्र ने काफी कम वेतन राशि देने पर हामी भरी है। प्रदेश सरकार को इस पर आपत्ति है। ऐसे में पद भरे जाएंगे या नहीं, संशय बरकरार है। इसके बावजूद शिक्षक इन पदों पर तैनाती को पूरा जोर लगाए हुए हैं। इस तैनाती को पाने का लाभ ये है कि दूरदराज व अति दुर्गम विद्यालयों में तैनाती की चिंता से मुक्ति मिल जाती है। साथ में ब्लॉक मुख्यालयों में बैठकर शिक्षकों की राजनीति भी करो और प्रतिद्वंद्वी संगठनों की गतिविधियों पर पूरी नजर बनाए रखो।

खुल गई उच्च पदों की राह

तकनीकी शिक्षा निदेशालय के दिन बहुरने लगे हैं। उच्च पदों पर पदोन्नति का रास्ता खुलने से विभागीय अधिकारियों में संतोष का भाव दिखाई पड़ता है। लंबे अरसे तक निदेशक के पद पर आइएएस काबिज रहे हैं। कुछ समय पहले तक यह कल्पना करना कठिन था कि विभागीय अधिकारी निदेशक भी बन सकता है। सरकार ने इस कल्पना को हकीकत बनाकर डीपीसी के जरिये पहले विभागीय निदेशक की तैनाती की। इसके बाद पदोन्नति से अपर निदेशक बने। हाल ही में विभागाध्यक्षों और प्राचार्योंं को संयुक्त निदेशक के रिक्त पदों पर पदोन्नति के तोहफे से नवाजा गया। परीक्षा नियंत्रक का पद भी पहली दफा पदोन्नति से भरा गया। तकनीकी शिक्षा में नीतिगत बदलाव का असर विभागीय कामकाज पर दिखाई दे रहा है। कम छात्रसंख्या की वजह से सरकार ने कुछ पॉलीटेक्निक बंद करने का निर्णय किया था, इसे टाल दिया गया। इस फैसले के पीछे इन्हीं विभागीय अधिकारियों का ही दिमाग है।

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