उत्तराखंड: शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के लंबे-चौड़े दावे फेल, तीन माह बाद भी नहीं बनी संयुक्त समिति
उत्तराखंड में शिक्षकों की समस्याओं के समाधान को लेकर किए जा रहे लंबे-चौड़े दावों का जमीनी सच कुछ और ही है। तीन महीने गुजरने के बावजूद शिक्षकों की वित्त से संबंधित समस्याओं के निराकरण को शिक्षा और वित्त के अधिकारियों की संयुक्त समिति गठित नहीं हो पाई।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। शिक्षकों की समस्याओं के समाधान को लेकर किए जा रहे लंबे-चौड़े दावों का जमीनी सच कुछ और ही है। तीन महीने गुजरने के बावजूद शिक्षकों की वित्त से संबंधित समस्याओं के निराकरण को शिक्षा और वित्त के अधिकारियों की संयुक्त समिति गठित नहीं हो पाई। शिक्षकों के संगठनों के साथ बीती 25 अगस्त को शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के साथ बैठक में सहमति बनी थी कि जल्द संयुक्त समिति गठित कर हफ्तेभर में समस्याओं का समाधान निकाला जाएगा।
दरअसल, शिक्षकों की कुछ समस्याएं ऐसी हैं, जिनका समाधान लंबे अरसे से निकल नहीं पा रहा है। इसी को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया गया था। इसमें वरिष्ठ शिक्षक को कनिष्ठ से कम वेतनमान, चयन व प्रोन्नत वेतनमान पर एक वेतनवृद्धि देने में अड़ंगा लगने समेत वेतन विसंगति के प्रकरणों को प्राथमिकता से निपटाने के निर्देश दिए गए थे। साथ ही सातवें वेतनमान के अवशेष का जल्द भुगतान पर सहमति बनी थी।
एसएलपी वापस लेने का मसला लटका
शिक्षा मंत्री ने एक ऐसे ही लंबित मामले एक अक्टूबर, 2005 से पहले नियुक्त शिक्षकों को पुरानी पेंशन का लाभ देने को सर्वोच्च न्यायालय में सरकार की ओर से दायर विशेष याचिका वापस लेने की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश सचिव को दिए थे। इस दिशा में भी पहल नहीं हो पाई है। करीब पांच सौ शिक्षकों को पुरानी पेंशन का मामला कई सालों से उलझा है। इन शिक्षकों को एक अक्टूबर से पहले नियुक्ति पत्र मिल गए थे। इसके बावजूद विधानसभा चुनाव की आचार संहिता आड़े आ गई।
कोरोना संकटकाल में कामकाज प्रभावित
आचार संहिता की वजह से इन शिक्षकों को कार्यभार ग्रहण करने से रोक दिया गया था। बाद में कार्यभार ग्रहण करने वाले इन शिक्षकों को पुरानी पेंशन से वंचित होना पड़ा। देर से कार्यभार ग्रहण करने की वजह से इन्हें नई पेंशन योजना के दायरे में लिया गया। हाईकोर्ट ने इन शिक्षकों के पक्ष में फैसला दिया तो सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। फिलहाल ये मसला भी लटका हुआ है। कोरोना संकटकाल में विभाग के कामकाज में अनलॉक-पांच के दौर में भी अपेक्षित तेजी नहीं आ पाई है।
शिक्षक संगठनों में है रोष
प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौहान का कहना है कि लंबे समय से शिक्षकों को झुनझुना थमा कर चुप कराया जाता रहा है। इन समस्याओं का समाधान कठिन नहीं है। कुछ मामलों में तो वित्त से स्पष्टीकरण जारी होने से ही मामला सुलझ जाएगा। शिक्षा विभाग इन समस्याओं को लेकर गंभीरता नहीं दिखाता। राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री सोहन सिंह माजिला बार-बार आश्वासनों से खफा हैं। उनका कहना है कि शिक्षकों में जानबूझकर असंतोष को बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।
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