शीतकाल में कल्प गंगा के तट पर करें बदरी-केदार दर्शन, देखें ‘छिपा हुआ खजाना’
Badri Kedar Darshan in Winter शीतकाल में भी बदरी-केदार के दर्शन करें कल्प गंगा के तट पर स्थित ध्यान बदरी और कल्पेश्वर धाम में। इन दोनों ही धाम में दर्शन से बदरीनाथ व केदारनाथ धाम के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। भीड़भाड़ न होने के कारण खाने-ठहरने की भी कोई दिक्कत नहीं होती। तो आइए! शीतकाल में एक ही स्थान पर भगवान बदरी-केदार के दर्शन करें।
दिनेश कुकरेती, जागरण देहरादून। Badri Kedar Darshan in Winter: शीतकाल के लिए कपाट बंद होने के बाद भी आप भगवान नारायण और बाबा केदार के दर्शन उनके मूल धाम में कर सकते हैं। प्रथम बदरी व प्रथम केदार के रूप में नहीं, बल्कि षष्ठम बदरी व पंचम केदार के रूप में। वह भी एक ही जगह, महज दो-ढाई किमी के फासले पर।
जी हां! समुद्रतल से 7,003 फीट की ऊंचाई पर चमोली जिले की उर्गम घाटी में कल्प गंगा (हिरण्यवती) नदी के तट पर स्थित ध्यान बदरी और कल्पेश्वर धाम की ही बात हो रही है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि इन दोनों ही धाम में दर्शन से बदरीनाथ व केदारनाथ धाम के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। दोनों ही धाम के कपाट वर्षभर खुले रहते हैं। लेकिन, शीतकाल में यहां आने का आनंद ही कुछ और है।
भीड़भाड़ न होने के कारण खाने-ठहरने की भी कोई दिक्कत नहीं होती। ...तो आइए! शीतकाल में एक ही स्थान पर भगवान बदरी-केदार के दर्शन करें।
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ध्यान बदरी मंदिर
- बरगिंडा गांव स्थित इस मंदिर में शालिग्राम शिला से बनी भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति ध्यानावस्था में विराजमान है।
- कहते हैं कि ध्यान बदरी मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में आदि शंकराचार्य के मार्गदर्शन में हुआ।
- कथा है कि महर्षि दुर्वासा के शाप से श्रीहीन हुए इंद्र ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इसी जगह कल्पवास किया।
- कल्पवास में साधक ध्यानलीन रहता है, इसलिए यहां भगवान का विग्रह भी आत्मलीन अवस्था में है। इस कारण विग्रह को ध्यान बदरी नाम से प्रतिष्ठित किया गया।
- ध्यान बदरी की कथा पांडव वंश के राजा पुरंजय के पुत्र उर्वर ऋषि से भी जुड़ी हुई है।
- मंदिर के गर्भगृह की दीवारें मानव मुखौटों से सजी हैं, जिनका इस्तेमाल मेलों के दौरान मुखौटा नृत्य में होता है।
कल्पेश्वर धाम
- इस मंदिर में वृषभ रूपी शिव के जटा दर्शन होते हैं।
- एक कथा है कि संबंधियों की हत्या के दोष से मुक्ति के लिए पांडव जब महादेव के दर्शन को काशी से उनका पीछा करते हुए गुप्तकाशी पहुंचे तो महादेव वहां से भी ओझल हो गए।
- कुछ दूर जाकर उन्होंने बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं में मिल गए। इस रूप में भी पांडव उन्हें पहचान गए और फिर भीम ने विशाल रूप धरकर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए, जिनके नीचे से अन्य पशु तो निकल गए, लेकिन वृषभ रूपी शिव जड़वत रहे।
- पिंड रूप में मौजूद इसी हिस्से की केदारपुरी में पूजा होती है।
- कहते हैं कि वृषभ के धड़ का ऊपरी भाग काठमांडू (नेपाल), भुजाएं 'तुंगनाथ', नाभि 'मध्यमेश्वर', मुख 'रुद्रनाथ' और जटा 'कल्पेश्वर' धाम में प्रकट हुईं।
- कल्पेश्वर मंदिर के गर्भगृह का रास्ता एक गुफा से होकर जाता है।
यहां भी करें दर्शन, देखें ‘छिपा हुआ खजाना’
- चारों ओर हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पहाड़, घने जंगल, घास के मैदान और झील-झरने उर्गम घाटी की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। इसलिए इसे उत्तराखंड का ‘छिपा हुआ खजाना’ भी बोला जाता है।
- प्रसिद्ध बंसी नारायण और फ्यूंला नारायण ट्रेक भी इसी घाटी में हैं।
- जोशीमठ-हेलंग के बीच अणिमठ में भगवान वृद्ध बदरी और जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर में भगवान नारायण के शीतकालीन दर्शन के साथ विश्व प्रसिद्ध स्कीइंग स्थल औली की सैर भी कर सकते हैं।
- जोशीमठ से 15 किमी आगे तपोवन के पास अर्द्धबदरी धाम भी है।
यह रखें ध्यान
- शीतकाल के दौरान उर्गम घाटी में काफी ठंड रहती है और अक्सर बर्फबारी भी हो जाती है। इसलिए पर्याप्त गर्म कपड़ों के साथ ही यात्रा करें और गुनगुने पानी को ही पीने के उपयोग में लाएं।
- हार्ट के मरीज और बुजुर्ग लोगों के लिए जनवरी-फरवरी में आना उचित नहीं होगा।
ऐसे पहुंचें
- उर्गम घाटी पहुंचने को बदरीनाथ हाईवे पर ऋषिकेश से हेलंग चट्टी तक 243 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।
- यहां कल्पेश्वर धाम जाने के लिए देवग्राम तक 12.7 किमी और ध्यान बदरी धाम जाने के लिए बरगिंडा तक 10 किमी सड़क मार्ग है।
- उर्गम घाटी में खाने-ठहरने की पर्याप्त सुविधाएं हैं।
- शीतकाल में भीड़भाड़ न होने के कारण होटल, लाज व होम स्टे पूरी घाटी में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, जहां आप मनपसंद खाना बनवा सकते हैं।
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