Uttarkashi: धराली आपदा मलबे को हटाने से हो सकता है खतरा! वैज्ञानिकों ने दी ये राय
इसरो के सैटेलाइट चित्रों से पता चला है कि धराली में जलप्रलय के बाद करीब एक वर्ग किलोमीटर में मलबा फैल गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मलबे को छेड़ना खतरनाक हो सकता है इसे खीर गंगा और भागीरथी नदी पर छोड़ देना चाहिए। वैज्ञानिकों ने अतीत में हुई आपदाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि मलबा समय के साथ ठोस सतह में बदल जाएगा।

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। इसरो के सेटेलाइट चित्रों के अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि धराली क्षेत्र में जलप्रलय के बाद करीब एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में भारी मलबा पसर गया है। तमाम सरकार एजेंसी इस बात पर भी मंथन करने लगी हैं कि इतने भारी मलबे का निस्तारण कैसे किया जाए। अब इस पर विज्ञानियों ने स्पष्ट किया है कि मलबे को छेड़ना खतरनाक हो सकता है।
लिहाजा, मलबे को वर्तमान स्थिति में ही रहने दिया जाए। मलबे का क्या होगा, यह तय खीर गंगा और भागीरथी नदी को करने दिया जाए। यह इतना मलबा है, जिससे 147 फुटबाल ग्राउंड 4.5 फीट की ऊंचाई तक मलबे से भर जाएंगे। समझा जा सकता है कि कितनी भारी मात्रा में मलबा धराली क्षेत्र में पसरा है। कहीं कहीं तो मलबे के ढेर की अधिकतम ऊंचाई 40 से 50 फीट भी है।
मलबे को किसी भी दशा में नहीं छेड़ा जाना चाहिए
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के पूर्व निदेशक और वर्तमान में एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. एमपीएस बिष्ट का कहना है कि मलबे को किसी भी दशा में नहीं छेड़ा जाना चाहिए। खीर गंगा और भागीरथी खुद उसकी राह के मलबे को हटा देगी और शेष मलबा धीरे धीरे ठोस अवस्था में आ जाएगा। मलबे पर सालभर के भीतर पहले काई और फिर वनस्पति उगने लगेंगी।
उत्तरकाशी के ही किनोड्या गाड़ में सालों पहले 100 मीटर से अधिक ऊंचे मलबे का जो ढेर डरा देता था, वह आज हरेभरे टीले में तब्दील हो चुका है। इसी तरह चमोली में वर्ष 1970 के दशक में जब बिरही की आपदा आई थी तो कई किलोमीटर तक मलबा ही मलबा नजर आता था। तब मलबे को हटाने की कृत्रिम व्यवस्था भी नहीं थी। आज पूरे क्षेत्र में मलबे के ढेर पर अच्छा खासा भूगोल तैयार है। ऐसे में धराली में पसरा मलबा भी समय के साथ ठोस सतह में तब्दील हो जाएगा।
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