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    देवभूमि उत्तराखंड में जनसांख्यिकीय बदलाव, हरिद्वार से लेकर इन क्षेत्रों में महसूस किया जा सकता है परिवर्तन

    By Raksha PanthriEdited By:
    Updated: Sun, 13 Feb 2022 08:34 AM (IST)

    Demographic Change in Uttarakhand उत्तराखंड में धर्मनगरी हरिद्वार से लेकर चारधाम यात्रा मार्ग से लगे क्षेत्रों में जनसांख्यिकी बदलाव महसूस किया जा सकता है। इससे चिंताए बढ़ने लगी हैं। जानिए इस पर प्रबुद्धजनों का क्या कुछ कहना है।

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    देवभूमि उत्तराखंड में जनसांख्यिकीय बदलाव, हरिद्वार से लेकर इन क्षेत्रों में महसूस किया जा सकता है बदलाव।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। Demographic Change in Uttarakhand देवभूमि उत्तराखंड में दिख रहे जनसांख्यिकीय बदलाव (डेमोग्राफिक चेंज) और इसके चलते हो रहा पलायन कुछ वर्षों से बुद्धिजीवियों के बीच विमर्श का विषय बना हुआ है। धर्मनगरी हरिद्वार से लेकर चारधाम यात्रा मार्गों से लगे क्षेत्रों में जिस तरह से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, उसे समाजशास्त्रियों का बड़ा वर्ग स्वाभाविक नहीं मान रहा है। इससे उत्तराखंडी समाज में तमाम तरह की शंका-आशंका घर कर रही है। प्रदेश सरकार ने भी इसी चिंता के मद्देनजर जिला स्तरीय समितियां गठित की हैं। साथ ही क्षेत्र विशेष में भूमि की खरीद-फरोख्त पर खास निगरानी के निर्देश जिलाधिकारियों को दिए गए हैं। प्रदेश की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, देहरादून व नैनीताल ऐसे जिले हैं, जहां परिवर्तन अधिक देखने में आ रहा है। वर्ष 2001 और वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं।

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    यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र पलायन की मार से जूझ रहा है। इस परिदृश्य के बीच बड़े पैमाने पर बाहर से आए व्यक्तियों, विशेषकर एक समुदाय विशेष के व्यक्तियों ने पिछले 10-11 वर्षों में यहां न सिर्फ ताबड़तोड़ जमीनें खरीदीं, बल्कि उनकी बसागत भी तेज हुई है। इस सबको देखते हुए पिछले वर्ष से उत्तराखंड में 'लैंड जिहाद' शब्द लगातार चर्चा में है। इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर तो इसे लेकर बहस का क्रम जारी है तो अब आमजन के बीच भी यह चिंता का विषय बनकर उभरा है।

    नहीं दिखता धर्मनगरी जैसा स्वरूप

    जनसांख्यिकीय बदलाव की धरातलीय स्थिति देखें तो कई क्षेत्रों में यह वास्तविकता के करीब नजर आती है। धर्मनगरी हरिद्वार को ही लें तो हरिद्वार के हरकी पैड़ी क्षेत्र को छोड़ अन्य क्षेत्रों में उसका ङ्क्षहदू धर्मनगरी जैसा स्वरूप सीमित हो रहा है। हरकी पैड़ी व उससे लगे क्षेत्र को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में समुदाय विशेष की तेजी से हो रही बसागत एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है।

    चारधाम वाले जिलों में भी बढ़ी चिंता

    इसी तरह का परिदृश्य चारधाम वाले जिलों चमोली, रुद्रप्रयाग व उत्तरकाशी के यात्रा वाले मार्गों पर भी देखा जा सकता है। इन क्षेत्रों में विभिन्न व्यवसायों के नाम पर समुदाय विशेष के व्यक्तियों की संख्या बढऩे के साथ ही वे वहां भूमि खरीदकर रहने भी लगे हैं।

    मैदानी क्षेत्रों में बढ़ी मुस्लिम आबादी

    मैदानी स्वरूप वाले चार जिलों में जनसांख्यिकीय बदलाव अधिक देखने में आ रहा है। हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, देहरादून व नैनीताल जिलों मैदानी क्षेत्रों के जनसंख्या के आंकड़ों को देखें तो वहां मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार तब राज्य में मुस्लिम आबादी 1012141 थी, जिसमें 958410 लोग मैदानी और 53731 पर्वतीय क्षेत्र में रह रहे थे। वर्ष 2011 की जनगणना में मुस्लिम आबादी बढ़कर 1406825 हो गई। इसमें मैदानी क्षेत्र की जनसंख्या 1343185 और पर्वतीय क्षेत्र की 63640 थी। वर्ष 2011 के बाद से राज्य में जिस तरह आबादी बढऩे के संकेत मिल रहे हैं, उससे नई जनगणना में मुस्लिम आबादी के आंकड़ों में भी वृद्धि की संभावना है। इसी तरह हिंदू आबादी को देखें तो इन जिलों में वर्ष 2001 में इनकी संख्या 3519122 और वर्ष 2011 में 4554019 थी।

    जिलों को दिए थे कदम उठाने के निर्देश

    जनसांख्यिकी बदलाव और इसके कारण हो रहे पलायन की शिकायतें पिछले वर्ष शासन को मिली थीं। ऐसे में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने का अंदेशा जताया गया। गत वर्ष जुलाई में भाजपा नेता अजेंद्र अजय ने भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर यह विषय उनके समक्ष रखा था। लगातार मिल रही शिकायतों की सरकार ने फौरी तौर पर जांच कराई तो कुछ क्षेत्रों में इसकी पुष्टि हुई। इसके बाद शासन ने सितंबर में पुलिस महानिदेशक के साथ ही सभी जिलों के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए।

    इस कड़ी में जिलों में जिला स्तरीय समितियों का गठन, अन्य राज्यों से आकर बसे व्यक्तियों का सत्यापन कराने को कहा गया। ये भी निर्देश दिए गए कि विदेश मूल के जो लोग धोखे से भारतीय वोटर कार्ड अथवा पहचान पत्र बनाकर रह रहे हैं, उनके विरुद्ध कार्रवाई अमल में लाई जाए। जिलाधिकारियों को क्षेत्र विशेष में भूमि की खरीद-फरोख्त पर खास निगरानी रखने के निर्देश भी दिए गए। ये बात अलग है कि बाद में मशीनरी के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त होने के कारण यह पहल तेजी से आगे नहीं बढ़ पाई।

    चार मैदानी जिलों में हिंदू-मुस्लिम आबादी

    वर्ष 2001 की जनगणनानुसार

    जिल, हिंदू, मुस्लिम

    देहरादून, 1086094, 139197

    नैनीताल, 655290, 86532

    हरिद्वार, 944927, 478274

    ऊ.नगर, 832811, 254407

    वर्ष 2011 की जनगणनानुसार

    जिले, हिंदू, मुस्लिम

    देहरादून, 1424916, 202057

    नैनीताल, 809717, 120742

    हरिद्वार, 1214935, 648119

    ऊ.नगर, 1104452, 372267

    बदरी-केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजेय ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे उत्तराखंड में जनसांख्यिकीय बदलाव की स्थिति ठीक नहीं है। पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक जहां भी हिंदू आबादी घटी, वहां राष्ट्रविरोधी गतिविधियां बढ़ी हैं। उत्तराखंड का तो वैसे भी देवभूमि के रूप में सनातन काल से महत्व रहा है। चारधाम समेत हिंदुओं के अनेक धार्मिक स्थल यहां हैं। गंगा-यमुना का उद्गम भी उत्तराखंड में है। ऐसे में यहां के धार्मिक वैशिष्ट्य को ध्यान में रखते हुए सभी पहलुओं पर सोचना होगा। डेमोग्राफिक चेंज को रोकने के लिए जरूरी है कि भूमि क्रय-विक्रय को सख्त प्रविधान हों।

    भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा, देवभूमि की पहचान को बनाए रखने के लिए भाजपा प्रतिबद्ध है। जनसांख्यिकीय परिवर्तन की आई शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए हमने प्रत्येक जिले में पहले ही समितियों का गठन किया है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी राज्य के प्रत्येक जिले में भूमि पर अवैध कब्जा होने के कारण हो रहे भू एवं जनसांख्यिकीय परिवर्तन से संबंधित विषयों की जांच एवं समाधान के लिए एक अधिकार प्राप्त समिति के गठन की बात कही है।

    चारधाम हास्पिटल के संस्थापक केपी जोशी का कहना है कि किसी भी जगह जनसंख्या का अनुपात गड़बड़ाना या फिर किसी समुदाय का धीरे-धीरे किसी क्षेत्र में कब्जा करना अथवा खास अनुयायियों की संख्या बढऩा एक गंभीर समस्या है। उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में डेमोग्राफिक चेंज और पलायन एक गंभीर मामला है। ऐसे में सरकार का दायित्व है कि इसके लिए गहनता से कदम उठाए। यह देखना जरूरी है कि कौन किस उद्देश्य से यहां आ रहा है। इसकी गहन पड़ताल होनी आवश्यक है। डेमोग्राफिक चेंज बड़ी समस्या न बने, इसके लिए अभी से ठोस एवं प्रभावी कदम उठाने होंगे।

    वहीं, हिमालयन विवि के कुलपति प्रो. जेपी पचौरी ने उत्तराखंड में जनसांख्यिकीय बदलाव आने वाले दिनों में बेहद चिंता का विषय बन सकता है। इस परिवर्तन के कारण हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, हल्द्वानी, रामनगर जैसे क्षेत्रों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इसमें बाहर से आए अन्य समुदाय के लोग भी हैं तो पहाड़ों से पलायन करने वाली जनसंख्या भी। यदि इसे रोकना है और देवभूमि की पहचान को बरकरार रखना है तो सरकारों को पहाड़ी क्षेत्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। कृषि को रोजगार का सबसे बड़ा संसाधन बनाने की जरूरत है। पहाड़ों के खाली होते गांव सुरक्षा की दृष्टि से भी चिंताजनक है।

    श्रीदेव सुमन विवि के कुलपति डा. पीपी ध्यानी ने कहा, डेमोग्राफिक चेंज को रोकने के लिए नीति निर्धारकों को गंभीर प्रयास करने होंगे। कुछ विशेष क्षेत्रों में एकाएक आबादी बढ़ती जा रही है और पहाड़ के गांवों से पलायन थम नहीं रहा। यह असमानता हमारे लिए खतरे की घंटी है। समय रहते सरकारों को राज्य हित को ध्यान में रखकर नीति बनानी होगी। अन्यथा नए परिसीमन के बाद आने वाले समय में पहाड़ी क्षेत्रों में विधानसभा सीटें और कम हो जाएंगी। सरकार कोई भी आए उसे डेमोग्राफिक चेंज की गंभीरता को समझते हुए कदम उठाने होंगे।

    एचएनबी गढ़वाल विवि के विभागाध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने कहा, अविभाजित उत्तर प्रदेश में मैदानी भागों को केंद्र में रखकर बनने वाली नीतियां यहां के अनुकूल नहीं थीं और प्रतिनिधित्व कम होने से लखनऊ में पहाड़ की आवाज कमजोर थी। उत्तराखंड निर्माण के बाद इस पहाड़ी राज्य के सम्मुख प्रतिनिधित्व की चुनौती फिर से खड़ी हो गई है। परिसीमन में जनसंख्या को आधार माना गया है और इसी के आधार पर विधानसभा, लोकसभा की सीटें तय होती हैं। पहाड़ में जनसंख्या घटने से विधानसभा सीटें घट रही हैं, जिससे डेमोग्राफिक चेंज हो रहा है। मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या बढ़ने से उसी अनुपात में सीटें बढ़ रही हैं। इससे असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है, जो प्रदेश के संतुलित विकास व सुरक्षा के लिए बेहतर नहीं है।