30 साल पहले हुए रामपुर तिराहा कांड पर आया फैसला, फिर भी क्यों खुश नहीं हैं राज्य आंदोलनकारियों?
देर से मिला न्याय न्याय नहीं माना जाता। हालांकि रामपुर तिराहा कांड के दो दोषियों को सजा मिलने से कलेजे में थोड़ी ठंडक तो पड़ी है। करीब 30 वर्ष बाद हुए निर्णय ने भी देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठा दिए हैं। हमारी न्याय व्यवस्था में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। अभी लोअर कोर्ट का निर्णय आया है दोषी उच्च अदालत जाएंगे और सालों-साल केस चलने की आशंका है।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Rampur Tiraha Kand: रामपुर तिराहा कांड में दोषी पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने पर राज्य आंदोलनकारियों ने संतोष व्यक्त किया है। उनका कहना है कि लंबे समय से न्याय का इंतजार कर रहे पीड़ितों और उनके स्वजन को अदालत के निर्णय से बड़ी राहत मिली है। वहीं, अन्य लंबित मामलों को लेकर भी उम्मीद जगी है।
उनका यह भी कहना है कि दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जानी थी। हाई कोर्ट में अपील की बात भी उन्होंने कही है। कहा कि जिन अधिकारियों ने दमन के आदेश दिए, उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए। अन्य लंबित मामलों पर भी जल्द से जल्द सुनवाई करने और दोषियों को सजा दी जानी चाहिए। कहा कि सरकार को भी इस बारे में ठोस पैरवी करनी चाहिए।
राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान के अनुसार, देर से मिला न्याय, न्याय नहीं माना जाता। हालांकि, रामपुर तिराहा कांड के दो दोषियों को सजा मिलने से कलेजे में थोड़ी ठंडक तो पड़ी है। करीब 30 वर्ष बाद हुए निर्णय ने भी देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठा दिए हैं। हमारी न्याय व्यवस्था में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। अभी लोअर कोर्ट का निर्णय आया है, दोषी उच्च अदालत जाएंगे और सालों-साल केस चलने की आशंका है।
वहीं अन्य राज्य आंदोलनकारी जगमोहन सिंह नेगी का कहना है कि काफी देर से यह निर्णय आया है और अभी तीन और मामले लंबित हैं। राज्य निर्माण आंदोलन में पहाड़ की माता-बहनों ने जो अत्याचार सहा, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। दुर्भाग्यपूर्ण है कि कभी भी उत्तराखंड सरकार ने मामले की पैरवी नहीं की। मजबूत पैरवी की जाती तो शायद कुछ साल पहले ही दोषियों को सजा मिल जाती। हालांकि, अब भी रामपुर तिराहा कांड के मुख्य आरोपित खुलेआम घूम रहे हैं।
उत्तराखंड महिला मंच प्रदेश संयोजक कमला पंत का कहना है कि तकरीबन 30 वर्षों से न्याय के लिए सड़कों पर आंदोलन करने के बाद आज न्याय की एक किरण दिखी है। न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है और हम इस निर्णय का सम्मान करते हैं। हालांकि अभी जो भी मुख्य आरोपित हैं, जब तक उन्हें दंड नहीं मिलता, राज्य आंदोलनकारी पूरा निर्णय नहीं मानेंगे। उम्मीद है कि आगे भी न्यायालय राज्य आंदोलनकारियों की भावना को समझते हुए दोषियों को सख्त सजा सुनाएगा।
राज्य आंदोलनकारी ऊषा नेगी के अनुसार, न्यायालय के निर्णय का पूरा सम्मान करते हैं। ऐसे कृत्य करने वालों को फांसी की सजा हो, इसके लिए हाई कोर्ट में अपील, सशक्त पैरवी की जरूरत है। इसके अलावा जिन्होंने उस समय आंदोलन को तोड़ने के आदेश दिए, ऐसे लोगों को भी सजा मिलनी चाहिए। तभी राज्य आंदोलनकारियों को पूरी तरह से न्याय मिलेगा। इसके लिए राज्य आंदोलनकारियों को एक बार फिर से एकजुटता दिखाने का समय आ चुका है।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती का कहना है कि हर वर्ष दो अक्टूबर के दिन रामपुर तिराहा कांड की बरसी को काला दिवस के रूप में मनाते आए हैं। न्यायालय का यह निर्णय देर से आया, लेकिन आंदोलनकरियों के लिए राहत लाया है। इस निर्णय से बलिदानी आंदोलनकारियों की आत्मा को शांति मिली होगी। लेकिन जिन अधिकारियों के कहने पर उस समय आंदोलनकारियों पर गोली चलाई गई, उन पर कार्रवाई होना बाकी है। इसके लिए सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच महासचिव रामलाल खंडूड़ी के अनुसार, 30 वर्षों के इंतजार का समय कोई कम नहीं है। न्यायालय के इस निर्णय से राज्य आंदोलनकारियों के दिल में ठंडक पड़ी होगी। ऐसे कुकृत्य करने वालों को फांसी ही होनी चाहिए थी। अब सभी आंदोलनकारी इंतजार कर रहे हैं कि आंदोलन के दौरान गोली चलाने के आदेश देने वालों पर भी कार्रवाई हो। यह कोई सामान्य घटना नहीं है, बल्कि इस तरह की घटना थी, जिसे सुनकर आज भी लोग सहम जाते हैं।
चिह्नित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति केंद्रीय अध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप का कहना है कि तीन दशक के इंतजार के बाद न्यायालय के इस निर्णय को आंदोलनकारियों के लिए संतोषजनक ही कहूंगा। क्योंकि उत्तराखंड के लोग इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं होंगे। सभी चाहते हैं कि इस मामले में दोषियों को फांसी हो। न्यायालय ने राज्य आंदोलनकारियों के साथ हुए बर्ताव को समझा और निर्णय दिया। जब मामला उच्च न्यायालय में जाएगा तो कड़ी सजा मिल सके, इसका सभी को अब इंतजार है।

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