मंथन कीजिए, उत्तराखंड में कोरोना से मृत्यु दर कैसे हो काबू
बीते कुछ रोज कोरोना के लिहाज से उत्तराखंड के लिए शुभ संकेत जैसे रहे हैं। इन दिनों में एक तरफ कोरोना वायरस की संक्रमण दर में एकाएक गिरावट दिखी तो दूसरी तरफ मरीजों के स्वस्थ होने की दर यानी रिकवरी ऊपर चढ़ी।
विजय मिश्रा, देहरादून। बीते कुछ रोज कोरोना के लिहाज से उत्तराखंड के लिए शुभ संकेत जैसे रहे हैं। इन दिनों में एक तरफ कोरोना वायरस की संक्रमण दर में एकाएक गिरावट दिखी तो दूसरी तरफ मरीजों के स्वस्थ होने की दर यानी रिकवरी ऊपर चढ़ी। दोनों ही स्थितियां सुखद हैं। मगर, इस तस्वीर का एक और पहलू भी है, मृत्यु दर। जो प्रदेश में राष्ट्रीय औसत की 170 फीसद है। देश में कोरोना से 1.1 फीसद मरीजों की मौत हो रही है तो उत्तराखंड में अब तक मिले मरीजों में 1.73 फीसद काल कवलित हो चुके हैं। यह आंकड़ा परेशान करने वाला है। उस पर प्रदेश के कुछ अस्पताल मौत का आंकड़ा भी छिपा रहे हैं। जरूरत है इस पर मंथन करने की। उन वजहों को तलाशने की, जो इसके लिए उत्तरदायी हैं। कोरोना की दस्तक के बाद से ही इस बीमारी की मृत्यु दर प्रदेश के लिए चिंता का विषय रही है।
वैक्सीन की राह में ये रोड़े क्यों
प्रकृति में हर तत्व के विनाश का कारक मौजूद है। फिर वो कोई बीमारी हो या वस्तु। कोरोना को भी प्रभावहीन करने के लिए विज्ञानियों ने वैक्सीन के रूप में वो कारक ईजाद कर लिया है। अब इसको हराने के लिए शत-प्रतिशत टीकाकरण की जरूरत है। उत्तराखंड में इस राह में कहीं वैक्सीन की उपलब्धता रोड़ा बन रही है तो कहीं सिस्टम। 18 से 44 आयु वर्ग में टीकाकरण के लिए पात्रों को तीन मोर्चों पर माथापच्ची करनी पड़ रही है। पहले रजिस्ट्रेशन, फिर स्लॉट बुकिंग और उसके बाद टीकाकरण केंद्र की लाइन। सिस्टम चाहे तो इस कवायद को कुछ कम किया जा सकता है। क्यों न पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर रजिस्ट्रेशन के क्रम में ही स्लॉट बुक किए जाएं। इसकी सूचना मोबाइल पर संदेश के जरिये दे दी जाए। इससे पात्रों की माथापच्ची तो कम होगी ही, टीकाकरण को लेकर अनिश्चितता का भाव भी नहीं उपजेगा।
'मिशन मदद' पर रहे ये हौसला सदा
आमतौर पर लोग पुलिस के व्यवहार में शराफत और नजाकत की उम्मीद कम ही करते हैं। पुलिस की व्यवस्था कठोरता के सिद्धांत पर जो टिकी हुई है। मगर, कोरोनाकाल ने आमजन की यह धारणा बदल दी है। जब पूरा देश संकट से जूझ रहा है तो फर्ज निभाने वालों में खाकी ही अग्रिम पंक्ति में नजर आ रही है। प्रदेश में भी पुलिस विभाग के मुखिया की ओर से आमजन की मदद के लिए शुरू किए गए मिशन हौसला को सफल बनाने में उनके मातहत दिन-रात एक किए है। मरीजों तक आक्सीजन सिलिंडर पहुंचाना हो या उनको अस्पताल ले जाकर बेड दिलाना। जरूरतमंदों की भूख मिटाना हो या उनको घर पहुंचाना। खाकी हर मोर्चे पर तन्मयता से जुटी है। नियमों का उल्लंघन करने वालों को सबक सिखाकर ड्यूटी भी बखूबी निभा रही है। इसी भाव से हर कोई जिम्मेदारी निभाए तो निश्चित ही इंसानियत इस जंग में जीत प्राप्त करेगी।
छवि निर्माण छोडि़ए, जनता की सुध लीजिए
यूं तो भाजपा राजनीति के गलियारों में सबसे अनुशासित पार्टी मानी जाती है। मगर, बीते दिनों राजधानी में एक कोविड केयर सेंटर को लेकर सरकार के एक मंत्री और एक विधायक के बीच जैसी तनातनी दिखी, वो आलाकमान को जरूर अखरी होगी। प्रदेश अध्यक्ष भी इससे असहज हुए होंगे। दूसरों को नसीहत देते हुए जब अपने ही घर में कलह हो जाए तो असहज होना लाजिमी भी है। माना कि चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो सियासतदानों के लिए खुद को लाइमलाइट में रखना जरूरी हो गया है। लेकिन, इस संकटकाल में आमजन का हित छवि निर्माण से ऊपर रखा जाना चाहिए। खासकर जब आप सत्ताधारी दल में हों। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के बजाय इस संक्रमण काल में प्रदेशवासियों की सुरक्षा के बारे में पहले सोचा जाना चाहिए। व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयत्न होना चाहिए। इससे ही जीत का मार्ग प्रशस्त होगा, फिर वो कोरोना पर हो या...।
यह भी पढ़ें-देहरादून में कोरोना के 61 फीसद मामले मई के 16 दिन में आए
Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें