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    सिकुड़ रहे ग्लेशियर, 37 किमी खिसका, कमजोर हो रहीं बर्फ विहिन चोटियां

    Updated: Sat, 09 Aug 2025 07:57 AM (IST)

    भूगर्भ विज्ञानियों के अनुसार धराली आपदा का मुख्य कारण ग्लेशियरों का सिकुड़ना है। 1960 में गोमुख ग्लेशियर धराली तक था जो अब 37 किलोमीटर पीछे हट गया है। वैश्विक तापमान वृद्धि अवैज्ञानिक निर्माण और जंगलों की कटाई जैसे कारणों से तापमान बढ़ रहा है। डॉ. भट्ट ने प्रकृति का दोहन रोकने की चेतावनी दी है अन्यथा हिमालय के अन्य क्षेत्रों में भी त्रासदी हो सकती है।

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    मुखवा ग्लेशियर के ठीक नीचे विज्ञानी डॉ दीपक भट्ट शोध कार्य ने जून 2024 में इस क्षेत्र का अध्ययन किया

    अशोक केडियाल, जागरण देहरादून। गोमुख ग्लेशियर पर लंबे समय से शोध कर रहे भूगर्भ विज्ञानी का मानना है कि धराली आपदा का एक बड़ा कारण ग्लेशियरों का सिकुड़ना और बर्फ विहीन चोटियों के कमजोर पड़ना भी है। 1960 तक गोमुख ग्लेशियर की अंतिम टेल (पूंछ) धराली तक फैली हुई थी। लेकिन वर्ष 2024 आते-आते ग्लेशियर लगभग 37 किलोमीटर पीछे खिसककर गोमुख क्षेत्र के आसपास सिमट गया है। यही नहीं, 13 से 14 हजार फीट ऊंचाई वाली चोटियों पर तापमान में सबसे तेज़ वृद्धि दर्ज की जा रही है। इसमें धराली गांव के ठीक ऊपर स्थित हिमाच्छादित चोटी भी शामिल है, जो पिघलते हिमखंडों के खतरे को और बढ़ा रही है।

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    डीबीएस कालेज, देहरादून के भूगर्भ विज्ञान विभागाध्यक्ष डा. दीपक भट्ट ने वर्ष 1999 से वर्ष 2001 के बीच तीन साल तक गोमुख ग्लेशियर पर शोध किया। उन्होंने अध्ययन में पाया कि वैश्विक तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), अवैज्ञानिक निर्माण, नदी घाटियों में खनन, जंगलों की कटाई, बसावट वाले क्षेत्रों में लगातार विस्तार, तापमान बढ़ाने के प्रमुख कारक हैं।

    डा. भट्ट ने चेताया कि उत्तरकाशी के धराली, हर्षिल, मुखवा क्षेत्र की आपदा एक संकेत है कि यदि प्रकृति का दोहन बंद नहीं हुआ और संरक्षण के ठोस कदम तुरंत नहीं उठाए गए, तो हिमालय के अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी ही त्रासदी रोकी नहीं जा सकती है।

    उनके शोध अध्ययन के दौरान यह तथ्य सामने आए कि गोमुख ग्लेशियर वर्ष 1960 तक धराली गांव के आसपास तक था, लेकिन वर्ष 2024 में यह करीब 37 किमी पीछे खिसककर गोमुख क्षेत्र तक सिमट गया है। जो चोटियां कभी सालभर बर्फ से ढकी रहती थीं, वे अब बर्फविहीन हैं। ऐसे वीरान क्षेत्र में मिट्टी, पुराने जर्जर पेड़ धीरे-धीरे मलबे में बदल रहे है।

    यही मलबा पिघलते हिमखंडों के साथ नदियों में पहुंच रहा है, धराली कस्बे के ऊपर करीब 30 डिग्री की ढलान इस मलबे को और गति प्रदान करती है। जिससे खतरा कई गुना बढ़ता जाता है यह धराली आपदा के दौरान सामने भी आया।

    उन्होंने कहा कि ग्लेशियर की लंबाई में उल्लेखनीय कमी और बर्फ की मोटाई भी घट चुकी है। पिछले कुछ समय में नदी घाटी का फैलाव और बसावट का घनत्व तीन गुना बढ़ा है। ग्लेशियर पिघलने की गति हिमालयी औसत से अधिक है। ऐसे बड़े कारणों पर राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन की जरूरत है।