चुनावी चौपाल: डोबरा-चांठी पुल अधर में, ग्रामीणों की जिंदगी भंवर में
दैनिक जागरण ने टिहरी जिले के चांठी गांव में चौपाल का आयोजन किया। जिसमें डोबरा चांठी पुल के अधूरे निर्माण पर ग्रामीणों का दर्द छलक उठा।
देहरादून, जेएनएन। 13 साल, ढाई अरब रुपये खर्च और नतीजा सिफर। हर सुबह टिहरी जिले के प्रतापनगर ब्लॉक के ग्रामीण अधूरे पड़े डोबरा-चांठी पुल को जब सामने देखते हैं तो उनकी आंखों में अपने गौरवशाली इतिहास की यादें तैर जाती हैं। साथ ही उदासी छा जाती है। लोगों के इसी दर्द को जानने के लिए दैनिक जागरण ने चुनावी महासमर के दौरान प्रतापनगर क्षेत्र में ग्रामीणों की चौपाल में डोबरा-चांठी पुल को लेकर बातचीत की तो ग्रामीणों की परेशानी सामने आई।
प्रतापनगर क्षेत्र टिहरी झील बनने के बाद जिला मुख्यालय से अलग-थलग पड़ गया। साल 2006 से आज तक पुल न बनने के कारण ग्रामीणों का जीवन भंवर में फंसा है। दैनिक जागरण की चांठी गांव में आयोजित चौपाल में ग्रामीणों ने एक सुर में कहा कि अगर हमारे लिए इस पुल को नहीं बना सकते तो एक पैदल पुल ही बना दो।
बुजुर्ग महिला लक्ष्मी बिष्ट ने कहा कि झील बनने से पहले हमारे खेत सोना उगलते थे, लेकिन झील ने सब लील लिया। हमसे सरकार ने वादा किया कि पुल बनेगा तो क्षेत्र में खुशहाली आएगी, लेकिन 13 साल बाद भी पुल नहीं बना। आज गांव में सड़क है लेकिन पुल नहीं बना पाए। वहीं, भगवानी देवी का कहना है कि पुल न बनने से हमारा जीवन अंधेरे में बीत रहा है। लगता है जीवन में कुछ नहीं है। हमारी एक ही मांग है कि पुल बना दो। ग्रामीण भरत सिंह रावत कहते हैं कि पुल न बनने के कारण प्रतापनगर का विकास भी रुक गया है। पुल न होने से बीमार लोगों को समय पर उपचार नहीं मिलता। अभी कुछ समय पहले ही एक ग्रामीण महिला की तबीयत बिगड़ गई। चौपाल में ग्रामीण हरि सिंह, मोहन सिंह, कश्मीरा बिष्ट, गजे सिंह, सरु देवी, छटांगी देवी आदि ग्रामीण मौजूद रहे।
पुल का इतिहास
डोबरा-चांठी पुल के इतिहास पर नजर डालें तो पुल का काम वर्ष 2006 में शुरू हुआ था। वर्ष 2010 में डिजायन सही न होने के कारण काम बंद हो गया। तब तक पुल निर्माण पर एक अरब 50 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए थे। उसके बाद वर्ष 2015 में दोबारा पुल का निर्माण डेढ़ अरब की लागत से शुरू किया गया। पिछले साल अगस्त में डोबरा पुल के सस्पेंडर टूटने के कारण पुल का काम फिर से बंद हो गया।
पुल न बनने के कारण प्रतापनगर क्षेत्र की डेढ़ लाख से ज्यादा आबादी परेशानी झेल रही है। नई टिहरी से प्रतापनगर जाने के लिए तीन से चार घंटे का सफर तय करना पड़ता है। अगर पुल बन जाता तो नई टिहरी से एक से डेढ़ घंटे तक प्रतापनगर पहुंचा जा सकता था।
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