देवभूमि के मंदिरों में सिंथेटिक की जगह अब चढ़ेगी सूती चुनरी, स्वच्छ रहेगी गंगा; जानिए कैसे
गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के लिए अब मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली सिंथेटिक चुनरी परेशानी का सबब नहीं बनेगी। आस्था की नई चुनरी सूती कपड़े से बनी होगी
देहरादून, केदार दत्त। जीवनदायिनी गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के लिए अब मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली सिंथेटिक चुनरी परेशानी का सबब नहीं बनेगी। आस्था की नई चुनरी सूती कपड़े से बनी होगी और मंदिरों की शोभा बनने के बाद इसका गंगा समेत अन्य नदियों में विसर्जन नहीं होगा। अलबत्ता, इन्हें वस्त्र बनाने के उपयोग में लाया जाएगा। इससे जहां नदियों का पर्यावरण स्वच्छ रहेगा, वहीं जरूरतमंदों को वस्त्र भी उपलब्ध हो सकेंगे। देहरादून की हिमवंत फाउंडेशन सोसायटी ने यह पहल की है, जिसे हरिद्वार के चंडी देवी और मंसा देवी मंदिरों के साथ गंगोत्री मंदिर समिति ने सराहा है। इसे देखते हुए सोसायटी ने अब बड़े पैमाने पर सूती कपड़े की चुनरी बनाना शुरू कर दिया है।
दुनिया में पॉलीथिन की थैलियां और प्लास्टिक की बोतलों के बाद सिंथेटिक कपड़े प्रदूषण का तीसरा बड़ा कारण हैं। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली चुनरी भी आमतौर पर सिंथेटिक से बनी होती है। बाद में इन्हें नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है। इनसे रिसने वाले रंगों के कैमिकल, माइक्रो प्लास्टिक से नदियों के पारिस्थितिकीय तंत्र पर असर पड़ता है। इस सबको देखते हुए हिमवंत फाउंडेशन सोसायटी ने सूती कपड़े की चुनरी को प्रोत्साहन देने का निश्चय किया।
सोसायटी की अध्यक्ष संगीता थपलियाल बताती हैं कि पिछले साल हरिद्वार भ्रमण के दौरान उन्होंने पाया कि बड़े पैमाने पर सिंथेटिक चुनरियां गंगा को प्रदूषित कर रही हैं। लिहाजा, इसका विकल्प तलाशने पर मंथन शुरू किया। फिर तय किया कि यदि सूती कपड़े की चुनरियां बनाई जाएं तो सिंथेटिक से निजात पाने के साथ ही इनका उपयोग भी हो सकेगा। तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित थपलियाल बताती हैं कि सोसायटी ने पिछले साल अगस्त में राजस्थान से सूती कपड़ा और गुजरात से गोटा लेस मंगाकर चुनरियां तैयार कीं।
चंडी देवी मंदिर को पिछले साल दिसंबर तक सात सौ से ज्यादा चुनरियां तैयार कर दी गईं। थपलियाल के अनुसार इस चुनरी का इस्तेमाल बच्चों के लिए वस्त्र, थालपोश, पूजा की पुस्तकों के कवर, पर्दे आदि बनाने में किया जा सकता है। इस पहल को कुटीर उद्योग के तौर पर भी अपनाया जा सकता है।
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