मास्क के अनिवार्य इस्तेमाल में बड़ों पर करम, छोटों पर सितम; पढ़िए पूरी खबर
मास्क न पहनने वालों पर सख्ती जरूरी है और पुलिस लगातार ऐसे व्यक्तियों को सबक सिखा भी रही है। पर ये नियम सिर्फ आम लोगों के लिए ही है।
देहरादून, जेएनएन। सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर मास्क का इस्तेमाल सभी के लिए अनिवार्य किया है। पहले मास्क न पहनने पर सरकार ने न्यूनतम जुर्माना 100 रुपये तय किया था, जो अब बढ़ाकर 200 रुपये कर दिया गया है। मास्क न पहनने वालों पर सख्ती जरूरी है और पुलिस लगातार ऐसे व्यक्तियों को सबक सिखा भी रही है। लेकिन, हैरानी इस बात की है कि यह नियम आम आदमी पर तो सख्ती से लागू किया जा रहा है और जब बात किसी रसूखदार की आती है तो उसे चेतावनी देने की जहमत भी नहीं उठाई जाती। बीते दिनों एक राजनीतिक पार्टी के वरिष्ठ नेता सार्वजनिक कार्यक्रम में बिना मास्क लगाए पहुंच गए। इस पर हल्ला भी खूब हुआ, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। पुलिस भी शायद इसलिए शांत हो गई कि नेताजी की पहुंच ऊपर तक है। सवाल यह भी उठता है कि क्या सारे नियम-कायदे आम आदमी के लिए ही हैं।
कोरोना ने बढ़ाई पुलिस की चिंता
हर किसी की सुरक्षा करने वाली पुलिस को भी अब कोरोना संक्रमण की चिंता सताने लगी है। इसकी वाजिब वजह भी है। बीते कुछ समय में प्रदेश में दर्जनों पुलिस वाले कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा दबिश के दौरान रहता है, खासकर प्रदेश के बाहर। वहां किसी अपराधी को पकडऩे के लिए जाल बिछाने में पुलिस को कम से कम तीन-चार दिन लग जाते हैं। इस दौरान खाने से लेकर रहने तक की व्यवस्था करने में उनके लिए संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। अभी तीन दिन पहले ही पुलिस अधिकारियों ने दून से एक सब इंस्पेक्टर को दबिश के लिए प्रदेश से बाहर भेजा था। वापस लौटने पर जांच हुई तो वह कोरोना संक्रमित मिले। उनके साथ गए अन्य पुलिस कर्मियों को क्वारंटाइन होना पड़ा। इन हालात में पुलिस के लिए अपराधियों पर शिकंजा कसना चुनौती बनता जा रहा है।
बूढ़े हुए पदोन्नति के इंतजार में
उत्तराखंड पुलिस में दारोगा लंबे समय से पदोन्नति की राह देख रहे हैं, लेकिन अड़ंगे हैं कि कम होने का नाम नहीं ले रहे। कई दारोगा तो इंस्पेक्टर बनने की हसरत दिल में लिए हुए ही सेवानिवृत्त भी हो गए, जबकि कुछ सेवानिवृत्ति की कगार पर खड़े हैं। उनका इंतजार भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। अब एक बार फिर दारोगाओं की पदोन्नति को लेकर मुख्यालय और शासन स्तर पर थोड़ी-बहुत हलचल हुई है, लेकिन अब तक पदोन्नति की सूची जारी न होने से दारोगाओं में असमंजस की स्थिति है। कई दारोगा तो मुख्यालय में अपनों से संपर्क साधकर हर दिन सुबह-शाम अपडेट ले रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें खुशखबरी नहीं मिल पाई है। दुर्गम क्षेत्रों में ड्यूटी कर रहे दारोगा तो पदोन्नति का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, इस उम्मीद में कि शायद इसी बहाने उनकी सुगम में जाने की राह आसान हो जाए।
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ऐसे कैसे लेंगे कोरोना से टक्कर
प्रदेश में कोरोना संक्रमण जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह चिंताजनक हैै। इससे भी गंभीर बात यह है कि जो निजी अस्पताल कभी मरीजों को हाथोंहाथ लेते थे, अब वह कोरोना के मरीजों का इलाज करने से हाथ खड़े कर रहे हैं। जबकि इस संकट की घड़ी में उन्हें एक कदम आगे बढ़कर सरकार और प्रदेशवासियों की मदद करनी चाहिए। डॉक्टरों और स्टाफ के संक्रमित होने का हवाला देकर निजी अस्पताल न सिर्फ अपनी जिम्मेदारी बल्कि फर्ज से भी मुंह मोड़ रहे हैं। निजी अस्पतालों के इस रवैये पर सरकार की स्थिति भी स्पष्ट नहीं दिख रही है। अकेले सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भरता से कहीं न कहीं खतरे को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार को निजी अस्पतालों को लेकर थोड़ा सख्त होने की जरूरत है। जिससे आने वाले वक्त में कोरोना से जंग मुश्किल साबित न हो और सभी को समय पर इलाज सुनिश्चित हो सके।
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