लॉकडाउन की सीख भुलाई, कोरोना ने रफ्तार बढ़ाई; 15 मार्च को सामने आया था पहला मामला
वैश्विक महामारी कोविड-19 का पहला मामला उत्तराखंड में 15 मार्च को सामने आया था। इसके बाद से ही आम जन के मन में कोरोना का खौफ छाने लगा था। यही वह वक्त था जब लोग मास्क सैनिटाइजेशन व शारीरिक दूरी के प्रति जागरूक भी होने लगे।

जागरण संवाददाता, देहरादून। वैश्विक महामारी कोविड-19 का पहला मामला उत्तराखंड में 15 मार्च को सामने आया था। इसके बाद से ही आम जन के मन में कोरोना का खौफ छाने लगा था। यही वह वक्त था जब लोग मास्क, सैनिटाइजेशन व शारीरिक दूरी के प्रति जागरूक भी होने लगे। जनता कफ्र्यू से लेकर लॉकडाउन का भी उन्होंने पूरे अनुशासन के साथ पालन किया। पर करीब एक साल बाद यह अनुशासन टूट चुका है और लोग बेपरवाह दिख रहे हैं। यही कारण है कि उत्तराखंड में कोरोना का प्रसार फिर तेज होने लगा है।
राज्य में कोरोना के आंकड़ों का अध्ययन कर रही संस्था सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्यूनिटी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल के अनुसार टीकाकरण के रूप में एक उम्मीद भरी पहल जरूर हुई है, पर यह महामारी का अंत नहीं है। याद रखिए कि कोरोना के खिलाफ जंग में बचाव की बहुत अहमियत है। इसमें जरा भी चूक हुई तो हालात फिर बिगडऩे लगेंगे। 53वें सप्ताह (14-20 मार्च) के आंकड़े कुछ इसी बात का संकेत दे रहे हैं। इस दरमियान कोरोना के 557 मामले आए हैं, जो पिछले दो माह में कोरोना का सर्वाधिक साप्ताहिक आंकड़ा है।
यही नहीं संक्रमण दर भी दो माह में सर्वाधिक, 0.79 फीसद पर पहुंच गई है। पिछले दो दिन से हर रोज सौ से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। अब जबकि कई राज्यों में कोरोना की नई लहर कहर बरपा रही है और प्रदेश में कुंभ की शुरुआत होने वाली है, जांच पर अधिकाधिक फोकस होना चाहिए। पर ताज्जुब है कि 53वें सप्ताह 70411 जांच हुई हैं। यह पांच सप्ताह में जांच का न्यूनतम आंकड़ा है।
बहरहाल जिस दिन राज्य में लॉकडाउन लगा, कोरोना के चार ही मामले थे। यह आंकड़ा अब बढ़कर 98552 पहुंच चुका है। अलग बात है कि इनमें करीब 96 फीसद इस बीमारी से जंग जीत चुके हैं। इस वक्त जो बात सबसे ज्यादा अखर रही है वह यह कि कहीं भी कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जा रहा है। बाजार से लेकर अस्पताल व तमाम सार्वजनिक कार्यक्रमों में लोग बेफिक्र दिख रहे हैं। जिन कोरोना योद्धाओं का ताली-थाली बजाकर मनोबल बढ़ाया था उनका समर्पण व बलिदान भी वह शायद भूल गए हैं। आम जन की यह लापरवाही उत्तराखंड में भी महाराष्ट्र, पंजाब जैसे हालात पैदा कर सकती है।
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