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    सत्ता के गलियारे से : सियासी सड़क पर काजी की ट्रैक्‍टर से सवारी

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Mon, 28 Sep 2020 08:46 AM (IST)

    70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति महज टीम 11 की है लेकिन इस बार विधानसभा सत्र के दौरान कोरोना के कहर ने यह आंकड़ा छह तक पहुंचा दिया। सत्तारूढ ...और पढ़ें

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    देहरादून में विधानसभा के मानसून सत्र में ट्रैक्टर पर सवार होकर जाते कांग्रेसी विधायक।

    देहरादून, विकास धूलिया। 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति महज टीम 11 की है, लेकिन इस बार विधानसभा सत्र के दौरान कोरोना के कहर ने यह आंकड़ा छह तक पहुंचा दिया। सत्तारूढ़ भाजपा के साथ ही कांग्रेस के तमाम विधायक पॉजिटिव हो गए। इसके बावजूद विपक्ष कांग्रेस ने हौसला नहीं खोया। खासकर, विधायक काजी निजामुद्दीन ने जो पैंतरा आजमाया, उस पर पीसीसी चीफ प्रीतम ने भी मुहर लगाई। केंद्र द्वारा किसानों के हित में पारित विधेयकों की मुखालफत कांग्रेस को करनी ही थी, हाईकमान का ऑर्डर जो था। काजी केंद्रीय संगठन के नुमाइंदे भी हैं, लाजिमी तौर पर दो कदम आगे चलते हैं। पैंतरा अख्तियार किया ट्रैक्टर पर सवारी का, तो प्रीतम के साथ ही अन्य विधायक भी सवार हो गए। ड्राइविंग सीट पर थे, तो मीडिया में तस्वीर भी काजी की ही छाई। अब कुछ नेताओं को इससे बदहजमी हो रही है। इनका इलाज कौन करेगा, आप ही बताइए काजी जी।

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    पहले पीठ थपथपाई, अब नोटिस क्यों थमा दिया

    भाजपा विधायक पूरन सिंह फर्त्‍याल क्षेत्र की एक परियोजना को लेकर अपनी ही सरकार से खफा चल रहे हैं। एक दिनी विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने इसी मुद्दे पर नियम 58 के तहत कार्य स्थगन की सूचना दे डाली। सरकार के लिए असहज स्थिति, अमूमन विधायक अपनी सरकार को इस तरह सांसत में डालते नहीं हैं। ऐसा भी नहीं कि सत्तापक्ष के विधायक इस नियम के अंतर्गत मुद्दा उठा नहीं सकते। खैर, पीठ ने इसे स्वीकार ही नहीं किया। अब भाजपा ने फर्त्‍याल को अनुशासनहीनता के आरोप में नोटिस थमा दिया है। फर्त्‍याल हैरान हैं, पहले भी उन्होंने इस मामले को विधानसभा में उठाया था। तब तो सभी ने पीठ थपथपाई थी, इस बार उसी नियम के अंतर्गत उसी मुद्दे पर सदन में चर्चा की मांग की तो पार्टी ने नोटिस थमा दिया। जनाब, क्या आप नहीं जानते कि सियासी पार्टियों के स्टैंड सहूलियत के हिसाब से तय होते हैं।

    मंत्री बोले, हम बगैर लगाम घोड़े के घुड़सवार

    सूबे में अफसरों की मनमानी अकसर सुर्खियां बटोरती है, लेकिन इस दफा तो हद ही हो गई। एक मंत्री का दर्द इस कदर फूटा कि उनकी बेबसी सच में तंत्र को बेपर्दा कर गई। सरकारी अफसरों की हर साल सीआर, यानी चरित्र पंजिका प्रविष्टि दर्ज की जाती है। मंत्रियों को हक हासिल है कि वे अपने महकमे के सचिव की सीआर दर्ज करें। यहां भी यह कायदा है, मगर किसी मंत्री को आज तक मौका मिला ही नहीं। राज्य मंत्री रेखा आर्य और उनके महकमे के निदेशक षणमुगम के बीच विवाद के बाद यह सच सामने आया। इस पर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल बेबाक बोले, घुड़सवार कितना काबिल है, यह घोड़े को पता चलना चाहिए, लेकिन इसके लिए घोड़े की लगाम भी तो उस पर बैठने वाले के हाथ में हो। अब सरकार कितनी भी सफाई दे, यह तो साबित हो ही गया कि क्यों ब्यूरोक्रेसी इस कदर हावी है।

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    बड़े दाज्यू, बोलोगे तो दुखती रग दबेगी ही 

    कांग्रेस के दिग्गज एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से पार पाना, यूं तो खासा मुश्किल काम है, लेकिन सूबे की भाजपा सरकार में राज्य मंत्री रेखा आर्य ने हरदा पर ऐसी मीठी छुरी चलाई कि सब चकित। दरअसल, हरदा ने अधीनस्थ अफसर से विवाद को लेकर रेखा आर्य पर तंज कसा था। जवाब में रेखा ने उन्हें बड़े दाज्यू, यानी भाई संबोधित कर पूरा सम्मान दिया, लेकिन इसके बाद हरदा की ऐसी कोई दुखती रग नहीं छोड़ी, जिसे छेड़ा न हो। दो सीटों से विधानसभा चुनाव में हार से लेकर विधायकों की खरीद-फरोख्त के स्टिंग और शराब माफिया की मदद जैसे मुद्दों पर रेखा ने ऐसा पलटवार किया कि दाज्यू बस देखते रह गए। वर्ष 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले 10 विधायकों में रेखा आर्य भी शामिल थीं। हरदा के मुख्यमंत्री रहते रेखा सत्तासीन पार्टी का हिस्सा रही थीं, उनसे बेहतर सच कौन बता सकता है।

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