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    कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले नहीं बिठा पा रहे संगठन में तालमेल

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    Updated: Mon, 07 Oct 2019 10:47 AM (IST)

    कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले पूर्व कांग्रेसी संगठन में तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। विधायक उमेश काऊ और विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन के निष्कासन इसके उदाहरण हैं।

    कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले नहीं बिठा पा रहे संगठन में तालमेल

    देहरादून, राज्य ब्यूरो। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पार्टी समर्थित प्रत्याशी के खिलाफ दूसरे प्रत्याशी की पैरवी भाजपा के विधायक उमेश शर्मा काऊ को भारी पड़ गई। पिछले कुछ महीनों में शर्मा भाजपा के ऐसे दूसरे विधायक हैं, जिनके खिलाफ पार्टी ने अनुशासनहीनता या पार्टी विरोधी रुख के कारण इतना कड़ा कदम उठाया। इससे पहले हरिद्वार जिले के खानपुर क्षेत्र के विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन पहले नोटिस और फिर निष्कासन का सख्त प्रहार झेल चुके हैं। 

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    दिलचस्प बात यह कि ये दोनों ही विधायक पहले कांग्रेस में थे और मार्च 2016 में पार्टी में बिखराव के बाद भाजपा में शामिल हुए। उत्तराखंड को अलग राज्य के रूप में वजूद में आए अब उन्नीस साल होने जा रहे हैं। इस दौरान यहां भाजपा और कांग्रेस ही व्यापक जनाधार वाली सियासी पार्टियों के रूप में रही हैं।

    पिछले चार विधानसभा चुनाव में दो बार भाजपा और दो बार कांग्रेस सत्ता में आई। यह बात दीगर है कि पिछले पांच सालों के दौरान कांग्रेस उत्तराखंड में अस्तित्व बचाने की लड़ाई से जूझ रही है। 

    पार्टी में बिखराव वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले आरंभ हुआ था, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के उत्तराधिकारी के रूप में हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने से खफा होकर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। 

    इसके बाद मार्च 2016 में पार्टी में हुई टूट के बाद पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा समेत दस विधायक भाजपा में शामिल हुए। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व दो बार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य भी भाजपा में चले गए। 

    विधानसभा चुनाव में तीन-चौथाई बहुमत हासिल करने के बाद भी भाजपा ने कांग्रेस से आए विधायकों को पूरा सम्मान दिया। मार्च 2017 में जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने तो दस सदस्यीय मंत्रिमंडल के आधे, यानी पांच सदस्य ऐसे थे, जो कांग्रेस से भाजपा में आए। 

    इनमें सतपाल महाराज, यशपाल आर्य, डॉ. हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य शामिल हैं। इस सबके बावजूद कांग्रेस पृष्ठभूमि के विधायक लगता नहीं भाजपा की रीति-नीति से पूरी तरह तालमेल बिठा पा रहे हैं। 

    भाजपा की छवि अनुशासित पार्टी की रही है लेकिन कांग्रेसी पृष्ठभूमि के कुछ विधायक इसकी रीति-नीति में ढल नहीं पाए हैं। मसलन, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने जिस तरह के तेवर भाजपा में दिखाए, उसका नतीजा रहा कि पार्टी ने उन्हें पर्याप्त मौके देने के बाद बाहर का रास्ता दिखाने से गुरेज नहीं किया। इसके अलावा सतपाल महाराज, डॉ. हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य भी गाहे बगाहे अपनी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर जाहिर करने से कई बार चर्चाओं में रहे। 

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    अब ताजा मामला देहरादून जिले के रायपुर क्षेत्र के विधायक उमेश शर्मा काऊ का है, जिन पर अनुशासनात्मक कारवाई की तलवार लटक गई है। अगर तीन दिन के भीतर अपने जवाब से वह भाजपा नेतृत्व को संतुष्ट नहीं कर पाए तो उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

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