कीर्तिमान के लिए शहरवासियों की करा दी फजीहत, लोग जाम में फंसे
आज पॉलीथिन एवं सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ नगर निगम की ओर से मानव श्रृंखला बनाई गई जो शहर पर भारी पड़ गई।
देहरादून, जेएनएन। पॉलीथिन एवं सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ नगर निगम की ओर से मानव श्रृंखला बनाई गई, जो शहर पर भारी पड़ गई। नगर निगम के कीर्तिमान के चक्कर में पूरा शहर कैद हो गया। पुलिस ने गलियों के बाहर बैरिकेटिंग लगा दी थी। गलत यातायात प्लान के कारण पूरा शहर जाम में फंस गया। रुट डायवर्ट के चलते लोगों इधर से उधर भटकते रहे। इस दौरान कई लोगों की पुलिस के साथ झड़प भी हुई। पटेलनगर चौक पर तो करीब एक किलोमीटर लंबा जाम भी लगा। इस दौरान एक एम्बुलेंस भी जाम में फंस गई, जिसे किसी तरह वहां से निकाला गया।
नगर निगम की ओर से सुबह पॉलीथिन एवं सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ मानव श्रृंखला बनाई गई, जो शहर की समस्त मुख्य सड़कों का हिस्सा बनी। ऐसे में सुरक्षा के लिहाज से ट्रैफिक डायवर्ट किया गया। हालांकि, निगम व पुलिस ने दावा किया था कि प्लान से आमजन को कोई असुविधा नहीं होगी और सामान्य यातायात सुचारू चलता रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज करान के चक्कर में पूरे शहर को कैद कर दिया गया। इस दौरान लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा।
कीर्तिमान के लिए शहर को तीन घंटे की कैद
लिम्का बुक ऑफ रिकॉ व गिनीज बुक ऑफ वर्ल्डस रिकॉर्ड्स में दून का नाम शामिल हो जाए, इससे अधिक खुशी की बात और क्या हो सकती है। मगर, किसी भी रिकॉर्ड की चाह जनता की सुविधा को ताक पर रखकर नहीं होनी चाहिए। यह कहना है दून के उन लोगों का, जो मानव श्रृंखला के दौरान जगह-जगह जाम में फंसे रहे। किसी को स्कूल-कॉलेज जाना था, तो किसी को अपने कार्यालय और तो और बड़ी संख्या में मरीज व तीमारदार भी समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाए।
गनीमत रही कि एंबुलेंस को जाने का रास्ता दिया गया, मगर तमाम जगह एंबुलेंस को भी जाम से दो-चार होकर गुजरना पड़ा। हालांकि, पुलिस सुबह से ही व्यवस्था बनाने को मुस्तैद थी और विभिन्न क्षेत्रों में पुलिस ने इस दिशा में भरसक प्रयास भी किए। मगर, जगह-जगह नाकेबंदी होने से लोगों को परेशानी से निजात नहीं मिल पाई।
मानव श्रृंखला के दौरान शहर का इलाका करीब 50 किलोमीटर के दायरे में चोक रहा। इसका एक सिरा हरिद्वार-देहरादून राजमार्ग के मियांवाला चौक पर था तो दूसरा सिरा बल्लूपुर चौक व तीसरा तीसरा मसूरी डायवर्जन चौक पर। इस पूरे घेरे के बाहर से शहर की तरफ प्रवेश करने वाले लोगों को एक से लेकर पौने दो घंटे तक इंतजार करना पड़ा।
मानव श्रृंखला के लिए शहर को जोडऩे वाली बाहरी सड़कों पर यातायात के आवागमन को थामने का सिलसिला सुबह पौने नौ बजे से शुरू कर दिया गया था, जो पौने दस बजे तक चला। शुरुआत करते हैं शहर मियांवाला चौक से। यहां पर करीब नौ बजे हरिद्वार रोड की तरफ से आने वाले वाहनों को रोक दिया गया था। लिहाजा, यहां पर कुछ ही देर में वाहनों की लंबी कतार कर लग गई। मियांवाला चौक से थोड़ा पहले रोके गए वाहनों को मियांवाला चौक से गूलरघाटी रोड की तरफ भी नहीं जाने दिया गया। इसके बाद मोकमपुर, जोगीवाला व रिस्पना पुल पर भी जगह-जगह वाहनों को रोक दिया गया।
इस स्थिति के चलते आसपास की कॉलोनियों से राजमार्ग पर आने वाले वाहन भी गली-मोहल्लों में पैक होने लगे। लोग एक गली से बाहर निकलते तो दूसरे बेरिकेडिंग पर उन्हें रोक दिया जाता। ऐसे में शहर में प्रवेश करने के लिंक मार्ग ढूंढते हुए लोग एक-डेढ़ घंटे इधर-उधर भटकते रहे। साथ ही इस परेशानी को लेकर उनकी पुलिस के साथ झड़प व कहासुनी भी होती रही।
रिस्पना पुल से शहर की तरफ प्रवेश करने वाला मार्ग बंद था और बाईपास रोड ही खुली थी, मगर इस रास्ते भी शहर की तरफ जाने वाले वाहनों को कारगी चौक के आसपास थाम दिया गया। ऐसा ही हाल कैनाल रोड से राजपुर रोड पर आने वाले वाहनों व जीएमएस रोड व बल्लूपुर की तरफ से शहर में प्रवेश करने वाले वाहनों का रहा। चौतरफा लोग जाम में फंसे रहे और पल-पल कुढ़ते हुए यही इंतजार करते रहे कि उन्हें कब आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
इस बीच जनता ने सरकार से लेकर शासन, प्रशासन व पुलिस को जमकर कोसा। कई लोग यह कहते मिले कि यदि मानव श्रृंखला से प्लास्टिक पर अंकुश लग सकता तो वह हर रोज 20-30 लोगों के साथ यह प्रयोग ïखुशी-खुशी करने को तैयार हैं।
आवागमन शुरू हुआ तो लगा जाम
मानव श्रृंखला का कार्यक्रम जब संपन्न हुआ और शहर की सड़कों को खोल दिया गया तो भी आधे घंटे तक यातायात की स्थिति सामान्य नहीं हो पाई। जाम में फंसने के बाद हर किसी को गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी थी, लिहाजा पुलिस को वाहनों को नियंत्रित करने कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
डोईवाला से दून आ रहे वाहनों को दूधली से गुजारा
जो वाहन डोईवाला की तरफ से दून आ रहे थे, उन्हें दूधली रोड से गुजारा गया। यहां से वाहन आराम से तो बढ़ गए, मगर इसके बाद जिन-जिन मार्गों से उन्हें शहर में प्रवेश करना था, वहां उनके पहिए थम गए। लिहाजा, पुलिस व प्रशासन का यह प्लान भी फ्लॉप साबित हो गया।
मानव श्रृंखला एक ओर थी, फिर भी वहां नहीं चले वाहन
ऐसा नहीं है कि जहां मानव श्रृंख बनाई गई, वहां पूरी सड़क को घेरा गया था। मानव श्रृंख में शामिल लोग सड़क के एक कोने पर खड़े रहे। फिर भी वहां से वाहनों को नहीं गुजरने दिया गया। इसके चलते भी लोगों की परेशानी बढ़ गई। दूसरी तरफ एक लेन खुली रही, मगर जब लोगों को वापसी आना था तो उन्हें अलग-अलग जगह लगाई गई बेरिकेडिंग पर रोक दिया गया।
थक हारकर बैठ गए बच्चे
मोहकमपुर क्षेत्र में रेलवे ओवर ब्रिज व इसके आसपास मानव श्रृंख के लिए स्कूली बच्चों को करीब साढ़े आठ बजे से खड़ा कर दिया गया था। करीब एक घंटे तो बच्चे खड़े रहे, मगर साढ़े नौ बजे के करीब वह थकान के चलते बैठने लगे। शिक्षक उन्हें प्रेरित करते रहे और जैसे ही आगे बढ़कर दूसरे छात्रों की तरफ रुख करते पीछे से बच्चे बैठ जाते।
सिटी बस-विक्रम न चलने से लोग रहे परेशान
मानव श्रृंखला के चलते सिटी बस व विक्रमों का संचालन न होने से भी लोगों को परेशानी उठानी पड़ी। रेलवे स्टेशन व आइएसबीटी पर उतरकर अपने गंतव्य तक जाने वालों को पैदल ही चलना पड़ा। वहीं, बड़ी संख्या में लोग रेलवे स्टेशन व आइएसबीटी पर इंतजार करते रहे। इसके अलावा ई-रिक्शा व ऑटो चालकों ने भी यात्रियों से मनमाना किराया वसूला। ई-रिक्शा चालक प्रति यात्री 30 रुपये तक किराया वसूल कर रहे थे। शहर के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पैदल सफर करने वाले लोगों को भी परेशानी उठानी पड़ी।
छात्रों को पानी तक नहीं मिला
धूप में एक से डेढ़ घंटे तक खड़े स्कूली छात्र-छात्राओं को समय पर पानी तक नहीं मिल पाया। अधिकतर जगहों पर पानी न होने से छात्र-छात्राएं पानी की मांग करते रहे।
मैड ने मानव श्रृंखला को बताया सांकेतिक कार्यक्रम
युवाओं के स्वयंसेवी संगठन मेकिंग ए डिफरेंस बाय बीइंग दि डिफरेंस (मैड) ने मंगलवार को शहर में आयोजित मानव श्रृंखला को महज एक सांकेतिक कार्यक्रम बताया। संस्था के सदस्यों ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम की जगह सरकार को जमीनी स्तर पर प्लास्टिक उन्मूलन के लिए प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह श्रृंखला सिर्फ लोगों की परेशानी का कारण बनी है। सरकार व शासन को प्लास्टिक और अन्य कचरे के निस्तारण के लिए ठोस व्यवस्था बनानी होगी।
मानव श्रृंखला की वजह से जनता हुई परेशान: कांग्रेस
कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि मानव श्रृंखला के पीछे की मंशा और मकसद का कांग्रेस पार्टी स्वागत करती है। लेकिन, जिस तरह बिना पूर्व तैयारी के इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया वह ठीक नहीं था। इससे आम जनमानस को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
गरिमा दसौनी ने कहा कि यह आयोजन किसी छुट्टी वाले दिन या रविवार को होता तो बेहतर रहता। मानव श्रृंखला बनाने के लिए जो वक्त तय किया गया, वही समय बच्चों के स्कूल और लोगों के कार्यालय जाने का भी होता है। पीक ऑवर्स में किए गए इस आयोजन से लोगों को आवाजाही में परेशानी का सामना करना पड़ा।
उन्होंने बयान जारी करके कहा कि अव्यवस्थाएं भी अपने चरम पर थीं। छात्र-छात्राएं परीक्षाओं में समय से नहीं पहुंच पाए। निजी क्षेत्र में काम करने वाले भी वक्त पर कार्यालय नहीं पहुंच सके। जगह-जगह एंबुलेंस को रोका गया। इससे गंभीर रूप से बीमार लोगों को समय पर उपचार नहीं मिल पाया। इन सभी बातों को नजरअंदाज करना कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने वाले आयोजकों की संवेदनशीलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
उन्होंने कहा कि महापौर ने 50 किमी लंबी मानव श्रृंखला बनाने और उक्त कार्यक्रम में एक लाख लोगों के शामिल होने की बात कही थी। लेकिन, महापौर के दावे झूठे साबित हुए। सच्चाई यह है कि कार्यक्रम में जनता की भागीदारी न के बराबर रही। श्रृंख में स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया। उन्होंने महापौर से निवेदन करते हुए कहा कि भविष्य में किसी भी कार्यक्रम की रूपरेखा बनाते वक्त जनता की दिक्कतों को ध्यान में रखें।
जागरूकता बहुत हुई, अब हरकत में आने का समय
आज हर दूनवासी यह सवाल पूछ रहा है कि सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ जन जागरूकता को बनाई गई मानव श्रृंखला की क्या वाकई में जरूरत थी। क्योंकि जब स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से सिंगल यूज प्लास्टिक से परहेज करने का आह्वान किया तो पूरे देश में एक लहर सी दौड़ गई थी। बेशक अभी सिंगल यूज प्लास्टिक पर केंद्र की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिबंध नहीं लगा है, मगर फिर भी लोग इससे मुक्ति को लेकर पर्याप्त रूप से जागरूक हो चुके थे।
देहरादून नगर निगम ने भी अपनी तरफ से अलग-अलग वर्ग को साथ लेकर प्लास्टिक मुक्ति का संदेश दिया। दूसरी तरफ केंद्र की ओर से आधिकारिक रोक न लगाए जाने के बाद भी नगर निगम हाईकोर्ट के आदेश पर काफी पहले से पॉलीथिन, प्लास्टिक/थर्माकोल के कप, गिलास, प्लेट, चम्मच आदि के खिलाफ निरंतर अभियान चला रहा है।
लिहाजा, अब जरूरत सिर्फ इस बात की है कि नगर निगम प्लास्टिक कचरे के उचित निस्तारण की पुख्ता व्यवस्था करे। क्योंकि प्लास्टिक कचरा का निस्तारण तो दूर अभी भी समुचित उठान नहीं हो पा रहा है। यह कचरा कहीं नालियों को चोक कर रहा है तो कभी सीवर लाइनों के चैंबर को जाम कर रहा है। इसके अलावा तमाम नदी-नालों से लेकर खाली प्लॉटों में प्लास्टिक कचरे का अंबार लगा रहता है। लिहाजा, नगर निगम को प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की दिशा में ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
सबसे अहम कड़ी पृथक्करण पर ध्यान नहीं
सरकार से लेकर शासन व प्रशासन की बैठकों में अक्सर इस बात पर बल दिया जाता है कि लोग घर से ही कूड़े का पृथक्करण करें। ताकि जैविक व अजैविक कूड़ा घर से ही अलग-अलग निकले। तमाम लोग यह काम कर भी रहे हैं, मगर नगर निगम की व्यवस्था देखिए कि कूड़े के घर से पृथक्करण के बाद भी उसे कूड़ा उठाने वाले वाहन में एक साथ मिला दिया जाता है।
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यह स्थिति तब है, जब भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आइआइपी) ने प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने को 1000 लीटर क्षमता का प्लांट भी स्थापित कर दिया है। बावजूद इसके नगर निगम प्लास्टिक कचरे को आइआइपी तक पहुंचाने का इंतजाम तक नहीं कर पाया है।
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