जागरण फिल्म फेस्टिवल: सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, सरोकारों से भी जुड़े हैं सिनेमा
सिनेमा सिर्फ मनोरंजन ही नहीं बल्कि आम जनता के सरोकारों से भी जुड़ा है। ये बात जागरण फिल्म फेस्टिवल में बताई गई।
देहरादून, सतेंद्र डंडरियाल। मैं एक गांव से शहर आया। यह दिसंबर 1992 के बाद का वह दौर था, जब कहा जा रहा था कि माहौल ठीक नहीं चल रहा। शहर रास नहीं आता था और रह-रहकर गांव लौट जाने का मन करता था। लेकिन कॉलेज में दाखिला ले लिया। एक दिन साइकिल से घर लौटते हुए चौराहे पर भीड़ नजर आई, पता चला कि नुक्कड़ नाटक हो रहा है।
ऐसा लगा मानो मन की मुराद पूरी हो गई और फिर तो रोजाना नाटक करने वालों को ढूंढने लगा। ठीक दो साल बाद इप्टा के वीके डोभाल मिले और उन्होंने मुझे अपने साथ जोड़ लिया। यहां से शुरू हुआ एक्टिंग का सफर। मुंबई गया, लेकिन कुछ ही समय बाद लौट आया। मैंने देखा कि गांव छोड़कर शहर जाने वाले लोग सपनों को भूलकर शहर में उतना बड़ा फ्लैट खरीदने और उसकी ईएमआइ भरने में ही जिंदगी गुजार देते हैं, जिससे बड़ा गांव में उनके भैंस का तबेला हुआ करता था। लेकिन, मुझे तो ऐसी सफलता की चाह कतई नहीं थी और संभवत: भविष्य में भी नहीं रहेगी।
रविवार को सिल्वर सिटी मल्टीप्लेक्स में 'रजनीगंधा' के सहयोग से आयोजित दसवें जागरण फिल्म फेस्टिवल की मास्टर क्लास में लेखक और अभिनेता इनामुल हक ने कुछ इसी अंदाज में दर्शकों से अपने फिल्मी सफर के अनुभव शेयर किए। बताया कि दर्शक उनके हर शब्द में कला, कलाकार और अर्थपूर्ण सिनेमा को तलाशने लगे। आज जब व्यावसायिक सिनेमा में सौ-सौ करोड़ की कमाई करने की होड़ मची हो, तब यह सिनेमा मेकर की समझदारी पर निर्भर करता है कि वह अपनी ऊर्जा का कैसा उपयोग करे।
सिनेमा एक ताकत है और उसे लोगों के सरोकारों से कैसे जोड़ा जा सकता है, यही बड़ा सवाल है। इनामुल ने अपनी फिल्म 'एयरलिफ्ट' का जिक्र किया, जिसमें वह एक ईराकी अधिकारी के रोल में हैं। यह फिल्म भी सौ करोड़ के क्लब में शामिल हुई, लेकिन इस फिल्म में मेकर ने अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल दर्शकों को अर्थपूर्ण सिनेमा दिखाने के लिए किया।
इनामुल कहते हैं कि सिनेमा अपनी लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन उसे दर्शकों का भी साथ चाहिए। क्योंकि बीते बीस सालों में फिल्म मेकर्स ने अपने आप ही तय कर लिया कि उन्हें दर्शकों को किस तरह का सिनेमा दिखाना है और वह ऐसा ही कर भी रहे हैं। जबकि, दर्शक उनकी फिल्मों में अपने आप को कहीं खड़ा नहीं पाता। इनामुल कहते हैं कि उन्हें व्यावसायिक सिनेमा से परहेज नहीं है, लेकिन पिछले बीस साल का सिनेमा देखकर उन्हें लगता है कि यह वेस्ट ऑफ रिसोर्स है और वह किसी भी हाल में इसका हिस्सा नहीं बनेंगे। व्यावसायिक सिनेमा चलते रहना चाहिए, लेकिन समाज के सरोकार, आमजन के सवाल और अर्थपूर्ण सिनेमा को स्पेस देते हुए।
इनामुल हक ने दर्शकों के छोटे-छोटे सवालों के भी जितनी गंभीरता से जवाब दिए, उससे साफ जाहिर होता है कि वह डाउन टू अर्थ एक्टर हैं। उन्होंने खुलेतौर पर स्वीकारा कि वह सिनेमा का एक बिकने वाला चेहरा नहीं हैं, लेकिन अब तक उन्होंने जो भी फिल्में कीं, उनमें कहीं-न-कहीं अर्थपूर्ण रोल किए। बताया कि आज भी इस तरह के प्रोड्यूसर बहुत कम हैं, जो अपनी फिल्मों के लिए बिकने वाले चेहरे नहीं तलाशते।
इनामुल हक ने वर्ष 2012 में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त नितिन कक्कड़ की फिल्म 'फिल्मिस्तान' का जिक्र किया, जिसे कुल 27 अवार्ड मिले। इनमें से अकेले उनके हिस्से छह अवार्ड आए थे। इनामुल बताते हैं कि जब यह कम बजट की फिल्म बन रही थी, तब कहा जाता था कि 'इन गधों' को कौन देखने आएगा। लेकिन, जब लीग से हटकर अच्छी फिल्म बनी तो इन गधों को देखने भी दर्शक आए। बोले, गधों से उनका मतलब 'फिल्मिस्तान' में काम करने वाले कम जाने-पहचाने कलाकारों से था।
इनामुल ने दर्शकों के एक-एक सवाल का इतनी बेबाकी से जवाब दिया कि दर्शक उनसे जुड़ते चले गए। फिल्मों के प्रति उन्होंने अपना नजरिया भी साफ किया, जिसमें वह बताते हैं कि पागलपन सकारात्मक हो तो जिंदगी बना देता है, लेकिन नकारात्मक हो तो बर्बादी तय मानिए। वह कहते हैं कि खुशी का पैरामीटर सबके लिए अलग-अलग है। मेरे लिए सिनेमा वह ताकत है, जिसके माध्यम से हम कम-से-कम कुछ तो ऐसा करें, जिससेदर्शकों को लगे कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं है, बल्कि वह उनके सरोकारों की बात करने वाली आवाज भी है।
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दर्शकों के बीच अपने ससुर और 'इफ्टा' के अध्यक्ष सरदार अनवर, वीके डोभाल और श्रीश डोभाल की मौजूदगी से इनामुल बेहद खुश नजर आए। बोले, यह उनके लिए बेहद खूबसूरत पल है कि उनके जीवन को दिशा देने वाले भी साथ बैठे हैं। लेकिन, जब वरिष्ठ रंगकर्मी श्रीश डोभाल ने इनामुल से सवाल किया कि वह फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में कब उतरेंगे, तो इनामुल का जवाब था, वह कोई शॉर्ट टर्म टारगेट नहीं रखना चाहते। फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में वह पूरी योजना बनाकर ही उतरेंगे और एक्टिंग से मिली ताकत का का भी इसमें इस्तेमाल करेंगे। विदित हो कि इनामुल हक ने 'फिल्मिस्तान', 'एयरलिफ्ट', 'नक्काश' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी है। इसके अलावा वह फिल्म लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।
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