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    उत्तराखंड में छोलिया है सबसे पुराना लोकनृत्य, जानिए इसकी खास बातें

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Tue, 29 Oct 2019 04:12 PM (IST)

    छोलिया या सरौं ऐसा नृत्य उत्तराखंड में सबसे पुराना है। इसकी शुरुआत सैकड़ों वर्ष पूर्व की मानी जाती है।

    उत्तराखंड में छोलिया है सबसे पुराना लोकनृत्य, जानिए इसकी खास बातें

    देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में यूं तो पारंपरिक लोकनृत्यों की एक लंबी फेहरिस्त है, लेकिन इनमें छोलिया या सरौं ऐसा नृत्य है, जिसकी शुरुआत सैकड़ों वर्ष पूर्व की मानी जाती है। इतिहासकारों के अनुसार मूलरूप में कुमाऊं अंचल का यह प्रसिद्ध नृत्य पीढ़ियों से उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान रहा है। छोलिया नृत्य की विशेषता यह है कि इसमें एक साथ श्रृंगार और वीर रस, दोनों के दर्शन हो जाते हैं। हालांकि, कुछ लोग इसे युद्ध में जीत के बाद किया जाने वाला नृत्य तो कुछ तलवार की नोकपर शादी करने वाले राजाओं के शासन की उत्पत्ति का सबूत मानते हैं। 

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    अलग ही अवतार में दिखते हैं नर्तक 

    छोलिया नृत्य में ढोल-दमाऊ की अहम भूमिका होती है। इसके अलावा इसमें नगाड़ा, मसकबीन, कैंसाल, भंकोरा और रणसिंघा जैसे वाद्य यंत्रों का भी इसमें इस्तेमाल होता है। छोलिया नृत्य करने वाले पुरुषों की वेशभूषा में चूड़ीदार पैजामा, एक लंबा-सा घेरदार छोला यानी कुर्ता और छोला के ऊपर पहनी जाते वाली बेल्ट कमाल की लगती है। इसके अलावा सिर में पगड़ी, कानों में बालियां, पैरों में घुंघरू की पट्टियां और चेहरे पर चंदन और सिंदूर लगे होने से पुरुषों का एक अलग ही अवतार दिखता है। बरात के घर से निकलने पर नर्तक रंग-बिरंगी पोशाक में तलवार और ढाल के साथ आगे-आगे नृत्य करते चलते हैं। नृत्य दुल्हन के घर पहुंचने तक जारी रहता है। बरात के साथ तुरही या रणसिंघा भी होता है। 

    छेड़छाड़, चिढ़ाने और उकसाने के भाव 

    छोलिया नृत्य के दौरान नर्तकों की भाव-भंगिमा में 'छल' दिखाया जाता है। नर्तक अपने हाव-भाव से एक-दूसरे को छेड़ते हैं और चिढ़ाने व उकसाने के भाव प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा डर और खुशी के भाव भी नृत्य में झलकते हैं। इस दौरान जब आस-पास मौजूद लोग रुपये उछालते हैं तो छोल्यार उन्हें तलवार की नोक से उठाते हैं। खास बात ये कि छोल्यार एक-दूसरे को उलझाकर बड़ी चालाकी से रुपये उठाने की कोशिश करते हैं। यह दृश्य देखने में बड़ा आकर्षक लगता है। 22 लोगों की इस टीम में आठ नर्तक और 14 गाजे-बाजे वाले होते हैं। 

    आगे सफेद निसाण, पीछे लाल 

    आज भी पर्वतीय अंचल की शादियों में ध्वज ले जाने की परंपरा है। जब दूल्हा अपने घर से निकलकर दुल्हन के घर जाता है तो आगे सफेद रंग का ध्वज (निसाण) चलता है और पीछे लाल रंग का। निसाण का मतलब है निशान या संकेत। इसका संदेश यह है कि हम आपकी पुत्री का वरण करने आए हैं और शांति के साथ विवाह संपन्न करवाना चाहते हैं। इसीलिए सफेद ध्वज आगे रहता है। 

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    आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और चपलता का प्रतीक 

    छोलिया नृत्य को आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और चपलता का प्रतीक माना जाता है। तलवार और ढाल के साथ किया जाने वाला यह नृत्य युद्ध में जीत के बाद किया जाता था। इसे पांडव नृत्य का हिस्सा भी माना जाता है। कहा जाता है कि कोई राजा जब किसी दूसरे राजा की बेटी से जबरन विवाह करने की कोशिश करता था तो अपने सैनिकों के साथ वहां पहुंचता था। सैनिकों हाथ में तलवार और ढाल होती थी, ताकि युद्ध होने की स्थिति में इनका उपयोग किया जा सके। सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए वादक ढोल-दमाऊ, नगाड़ा, मसकबीन, तुरही, रणसिंघा आदि बजाते हुए साथ चलते थे। 

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