प्रशासनिक जांच से खुली अफसरों की पोल, जानिए क्या है पूरा मामला
भूमि के बंदरबांट में राजस्व अधिकारियों की संलिप्तता के मामले में तत्कालीन राजस्व अधिकारियों समेत 39 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
देहरादून, जेएनएन। मेहूंवाला में 80 बीघा भूमि के बंदरबांट में राजस्व अधिकारियों की संलिप्तता की पोल तो दिसंबर में ही खुल गई थी। मगर आला अधिकारियों जब अपने ही बीच के लोगों के फंसते देखा तो वह उन अधिकारियों के नाम बताने में कन्नी काटने लगे, जिन्होंने वर्ष 1992 से 1994 के बीच राजस्व अभिलेखों में गड़बड़ी की थी। डीआइजी के कई बार के रिमाइंडर के बाद चार सदस्यीय टीम ने उन अधिकारियों के नाम बताए। जिसके बाद मामले में तत्कालीन राजस्व अधिकारियों समेत 39 लोगों के खिलाफ पटेलनगर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कर लिया गया।
राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से हुई इस जमीन धोखाधड़ी का मामला बीते साल सितंबर माह में तब सामने आया, जबकि भूमि के असल मालिक सुरजीत सिंह निवासी मरालियन तहसील, आरएसपुरा जम्मू-कश्मीर दून आए। यह उनकी पैतृक जमीन थी, लेकिन 80 के दशक में वह जम्मू चले गए और वहीं बस गए थे। यह जमीन उनके पिता विश्वंभर सिंह के नाम दर्ज थी। मगर प्रदीप दुग्गल, अमीष दुग्गल निवासी नेशविला रोड ने राजस्व अधिकारियों के साथ मिलकर यह जमीन पहले अपने नाम कराई और बाद में दो दर्जन से अधिक लोगों को बेच दी। दाखिल-खारिज के दौरान मामला इसलिए पकड़ में नहीं आया, क्योंकि पुराने राजस्व अभिलेख या तो फाड़ दिए गए थे या फिर गायब कर दिए गए थे।
गढ़वाल रेंज कार्यालय में गठित एसआइटी (भूमि) ने जांच शुरू की तो पहली नजर में वर्ष 1992 से लेकर 1994 के बीच राजस्व विभाग में तैनात रहे अधिकारियों की मिलीभगत की भनक लग गई। डीआइजी अजय रौतेला ने कमिश्नर गढ़वाल को पत्र लिखकर प्रशासनिक जांच कराने को कहा। इसके बाद इसमें जिलाधिकारी देहरादून के स्तर से चार सदस्यीय टीम गठित की गई। इस टीम ने बीते चार दिसंबर को अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंपी, जहां से उसकी प्रति एसआइटी को दी गई। इसमें बताया गया कि उस समय इजहारुल हक बतौर सर्वे नायब तहसीलदार और मोहम्मद अशरफ बतौर सर्वे कानूनगो तैनात थे। गड़बड़ी इन्हीं दोनों के समय में की गई। यही वजह है कि एसआइटी की जांच रिपोर्ट में इन्हीं दोनों अधिकारियों और दुग्गल बंधुओं को मुख्य आरोपित बनाया गया है।
सेवानिवृत्त हो चुका है अशरफ
प्रशासनिक सूत्रों की मानें तो इजहारुल हक के तहसीलदार पद पर प्रोन्नत होने के बाद देहरादून से ऊधमसिंहनगर तबादला हो गया था। वहीं अशरफ पदोन्नति पाकर कानूनगो से नायब तहसीलदार बन गया था। बताया जा रहा है कि अशरफ पिछले साल सितंबर में ही सेवानिवृत्त हुआ है।
अनजाने में आरोपित बने खरीददार
मुकदमे में 34 उन लोगों के नाम हैं, जिन्होंने दुग्गल बंधुओं से जमीन खरीदी। उनका दाखिल-खारिज हो जाना और फर्जीवाड़े का पता नहीं चलने के पीछे यही कारण था कि उन्हें पता ही नहीं चल सका कि वह आने वाले समय में बड़ी साजिश के शिकार हो जाएंगे। एसआइटी ने जब उन लोगों से इस बारे में बात की और उन्हें पूरा मामला बताया तो वह सन्न रह गए थे। उनमें से कई का कहना था, उन्हें इस खेल का पता ही नहीं था।
बेचने के बाद किसी को गिफ्ट कर दी जमीन
दिल्ली के एक शख्स ने पहले लाखों रुपये लेकर जमीन की रजिस्ट्री की और बाद में बेचने वाले ने उसी जमीन को दिल्ली की एक महिला को उपहार में दे दिया। जब वह जमीन पर काबिज होने पहुंचीं तो इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। मामले में राजपुर पुलिस ने शुक्रवार को मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी है।
पुलिस के अनुसार, फरमान इलाही निवासी 2039 गली राजनकूचा नाहर खान, कूचा चेलान, दरियागंज, दिल्ली ने 13 जुलाई 2017 को राजपुर के किशननगर में जमीन खरीदी। जमीन हरीश चंद्र कश्यप पुत्र बाबूराम निवासी जी-31 जगतपुरी, अंबेडकरनगर, गेट दिल्ली से रजिस्ट्री कराई थी। इसके बाद वह जमीन पर काबिज हो गए और मकान बनवाकर रहने लगे।
फरमान ने नगर व जल निगम और विद्युत विभाग में अपना नाम दर्ज करा दिया। बीते दिसंबर महीने एक महिला डॉ.राजदुलारी निवासी डी-67 सूरजमल विहार, दिल्ली-51 ने बताया कि यह जमीन उनकी है। इस जमीन को हरीश कश्यप ने उन्हें उपहार में दिया है। उन्होंने उपहारनामा भी दिखाया। हालांकि राजदुलारी कश्यप से अपना रिश्ता नहीं बता पाईं, लेकिन जब कश्यप से फोन पर बात की गई तो उसने फोन काट दिया।
आरोप है कि हरीश कश्यप और डॉ.राजदुलारी ने उसके साथ धोखाधड़ी की है। जबकि कश्यप को मालूम था कि वह जमीन बेच चुका है, मगर इसके बाद भी उसने उपहारनामा राजदुलारी के पक्ष में कर दिया। एसओ राजपुर अरविंद सिंह ने बताया कि मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
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