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वनों के कार्बन सोखने की क्षमता चार करोड़ टन बढ़ी, पढ़िए पूरी खबर

देश के वनों के कार्बन को ग्रहण करने की क्षमता में दो साल की अवधि में 42.6 मिलियन टन (4.26 करोड़ टन) का इजाफा हुआ है। वनों का कुल कार्बन स्टॉक भी बढ़कर 7.12 मिलियन टन है।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 01 Jan 2020 08:48 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jan 2020 08:43 PM (IST)
वनों के कार्बन सोखने की क्षमता चार करोड़ टन बढ़ी, पढ़िए पूरी खबर
वनों के कार्बन सोखने की क्षमता चार करोड़ टन बढ़ी, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, सुमन सेमवाल। ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक ताप) और क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए वातावरण में घुल रहे कार्बन के उत्सर्जन में कमी लाना जरूरी है। इस काम में पेड़-पौधे अहम भूमिका निभाते हैं, जो भोजन बनाते समय प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करते हैं और प्राणदायक ऑक्सीजन छोड़ते हैं। अच्छी बात है कि देश के वनों के कार्बन को ग्रहण (स्टॉक) करने की क्षमता में दो साल की अवधि में 42.6 मिलियन टन (4.26 करोड़ टन) का इजाफा हुआ है। इसके साथ ही देश के वनों का कुल कार्बन स्टॉक भी बढ़कर 7.12 मिलियन टन को पार कर गया है।

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पत्रकारों से रूबरू भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) के महानिदेशक डॉ. सुभाष आशुतोष ने बताया कि सर्वाधिक कार्बन स्टॉक मिट्टी में दफ्न है। इसी बायोमास के कार्बन स्टॉक में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी भी दर्ज की गई है। इसी तरह सबसे कम कार्बन बैंक या स्टॉक मृत पड़ी लकडिय़ों में पाया गया। हालांकि, चौंकाने वाली बात यह भी रही कि वनों में बिखरी पड़ी पत्तियों, खास-फूस आदि में वर्ष 2017 व 2019 की रिपोर्ट के बीच 8.3 मिलियन टन की कमी पाई गई। शेष सभी स्तर पर कार्बन का स्टॉक बढ़ा है।

चूल्हे में अभी भी झोंकी जा रही 85 हजार टन लकडिय़ां

हमारे पेड़-पौधे पर्यावरण से कार्बन को सोखकर अपने भीतर जमा कर लेते हैं, मगर जब लकडिय़ों के रूप में उन्हें आग के हवाले किया जाता है तो जमा कार्बन दोबारा पर्यावरण में मिल जाता है। यह चिंता की बात जरूर है कि ईंधन के लिए अभी भी सालभर में 85 हजार टन से अधिक लकडिय़ों को स्वाह कर दिया जाता है।

भारतीय वन सर्वेक्षण के महानिदेशक डॉ. सुभाष आशुतोष ने बताया कि महाराष्ट्र में सर्वाधिक 95 सौ टन से अधिक लकडिय़ां चूल्हे भी भेंट चढ़ रही हैं। वहीं, मिजोरम में सबसे कम लकडिय़ां ईंधन के रूप में जलाई जाती हैं।उत्तराखंड की स्थिति अभी भी उतनी सुकूनदायक नहीं है और 31 राज्यों में हमारा स्थान नवां है। 

पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की स्थितियां भी उत्तराखंड के ही समान हैं, मगर वहां ईंधन के रूप में लकडिय़ों का प्रयोग काफी कम किया जा रहा है। यही कारण है कि हिमाचल ईंधन के लिए लकडिय़ों के इस्तेमाल में 20वें नंबर पर है। जम्मू कश्मीर भी 17वें स्थान के साथ हमसे बेहतर स्थिति में दिख रहा है। 

टॉप कार्बन स्टॉक वाले वनों में शामिल उत्तराखंड 

उत्तराखंड उन टॉप राज्यों में शामिल है, जहां के वनों में प्रति हेक्टेयर कार्बन स्टॉक की क्षमता सर्वाधिक है। एफएसआइ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 36 राज्यों में उत्तराखंड का स्थान छठा है।

प्रति हेक्टेयर वन भूमि में कार्बन स्टॉक बनाने में पहला स्थान सिक्किम का है। दूसरे स्थान पर अंडमान एंड निकोबार आइलैंड शामिल है। हालांकि, समान तरह की भौगोलिक स्थिति वाले राज्य जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड से आगे खड़े हैं। इसी तरह अधिक वन भूभाग वाला अरुणाचल प्रदेश भी उत्तराखंड से आगे है। 

भारतीय वन सर्वेक्षण के महानिदेशक डॉ. सुभाष आशुतोष के मुताबिक कार्बन स्टॉक की क्षमता का आकलन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से किया जाता है। इस लिहाज से जिस भी प्रदेश में कार्बन स्टॉक की क्षमता अधिक है, उसका मतलब है कि वहां अधिक घने व जैवविविधता से भरे वन हैं। वन पारिस्थितिकी के लिहाज से भी यह स्थिति बेहतर मानी जाती है।

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