उत्तराखंड के 10 जिलों में बढ़े जंगल, तीन जिलों में घटा वनों का आकार
उत्तराखंड के 10 जिलों में वनों का आवरण बढ़ा है। वहीं भविष्य की चिंता को वह तीन जिले बढ़ा रहे हैं जहां वनावरण (फॉरेस्ट कवर) में 13.4 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज की गई है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की 2019 की रिपोर्ट कुछ हद तक सुकूनभरी नजर आती है तो उसके साथ चिंता और भविष्य की चुनौतियां भी दिख रही हैं। सुकून इस बात का है कि उत्तराखंड के 10 जिलों में वनों का आवरण बढ़ा है। वहीं, भविष्य की चिंता को वह तीन जिले बढ़ा रहे हैं, जहां वनावरण (फॉरेस्ट कवर) में 13.4 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज की गई है।
हालांकि, इस कमी व बढ़ोत्तरी के साथ उत्तराखंड के कुल फॉरेस्ट कवर में 08 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ है। यह बात और है कि पिछली दफा (2017 की रिपोर्ट) की 23 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी के मुकाबले यह आंकड़ा उतना आकर्षक नहीं दिख रहा।
आठ वर्ग किलोमीटर बढ़त का यह आंकड़ा भी उत्तराखंड इसलिए हासिल कर पाया कि अकेले उत्तरकाशी जिले में आठ वर्ग किलोमीटर वनावरण बढ़ा है। इसके बाद देहरादून जिले में सर्वाधिक 3.69 वर्ग किलोमीटर का इजाफा वनों में पाया गया। संरक्षण के तमाम प्रयासों के बाद भी नैनीताल, ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार में फॉरेस्ट कवर घटा है।
यदि इन क्षेत्रों में वनों की स्थिति पहले की भी तरह रहती तो बढ़त का यह आंकड़ा और ऊपर जा सकता था। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड में जो भी वन बढ़े हैं, उसकी वजह वन संरक्षण में किए गए कार्यों को बताया गया है।
बढ़े वनावरण वाले जिले
जिला-------------अति सघन-------मध्यम----खुले--------बढ़त
उत्तरकाशी--------614.67-------1706.86----714.47---08
देहरादून-----------659.77---------601.56----347.36---3.69
पिथौरागढ़---------505-------------965-------609.80---1.80
बागेश्वर-----------162.39---------761.61---338.69---1.69
चंपावत------------367-----------593---------265.55---1.55
अल्मोड़ा-----------199-----------837---------683.14---1.14
पौड़ी----------------574.26-----1902.03----918.70---0.99
चमोली-------------443---------1580--------686.43---0.43
घटे वनावरण वाले जिले
जिला-------------अति सघन-------मध्यम-------खुले-------कमी
नैनीताल----------773.06-------1728.93----539.57
ऊधमसिंहनगर---149.16-------88.75-------93.88----4.21
हरिद्वार-----------74.74-------276.42----234.09----2.75
(वन प्रकार का क्षेत्रफल वर्ग किलोमीटर में)
वनों को निगल रहीं इन्सान की जरूरतें
बेशक विकास बनाम विनाश के बीच संतुलन होना जरूरी है। मगर, उत्तराखंड जैसे प्रदेश में संतुलन की चुनौती इसलिए भी अधिक है क्योंकि यहां 71.05 फीसद भूभाग वन क्षेत्र है। ऐसे में विकास संबंधी लगभग सभी परियोजनाओं को वन क्षेत्रों की चुनौती से निपटना पड़ता है और कहीं न कहीं पेड़ों के कटान के रूप में इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की रिपोर्ट भी इसकी तस्दीक करती है। जिन तीन जिलों में वन क्षेत्रफल घटा है, उनमें से दो जिले (ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार) पूरी तरह मैदानी हैं और एक जिला (नैनीताल) का बड़ा हिस्सा मैदान के रूप में है। आबादी के लिहाज से भी यह जिले आगे हैं। साफ है कि मानव की बढ़ती जरूरतों और विकास कार्यों के लिए वनों को काटना पड़ रहा है।
अधिक आबादी में तीसरे स्थान पर देहरादून भी काफी हद तक मैदानी जिला है, मगर यहां वन बढऩे का कारण इसका मैदानी भाग कम और दूरस्थ चकराता, कालसी का पर्वतीय क्षेत्र अधिक है। इसके अलावा इसके बड़े हिस्से में राजाजी नेशनल पार्क व देहरादून और मसूरी वन प्रभाग का आरक्षित क्षेत्र है।
दूसरी तरफ, जिन पर्वतीय क्षेत्रों में वनों का आवरण बढ़ा है, वहां इसकी सकारात्मक वजह कम और नकारात्मक कारण अधिक हैं। पलायन के चलते पर्वतीय क्षेत्र तेजी से जनविहीन हो रहे हैं। ऐसे में मानव की जरूरतें सीमित होने के चलते स्वत: भी वनों का आवरण बढ़ रहा है।
आबादी के निकट 79 वर्ग किलोमीटर की कमी
उत्तराखंड में जो वन आबादी के निकट हैं, उनकी श्रेणी मध्यम सघन वनों (एमडीएफ) की अधिक है। ऐसे ही वनों पर विकास कार्यों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक दबाव भी रहता है। यही वजह है कि वर्ष 2017 की रिपोर्ट और 2019 की इस रिपोर्ट के दरम्यान ही आबादी के निकट वाले मध्यम सघन वन (एमडीएफ) में 79 वर्ग किलोमीटर की कमी आ गई है।
दूसरी तरफ दूरस्थ और पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतर वन सघन श्रेणी के हैं। कम दबाव के चलते इस श्रेणी के वनों में 78 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ है। वहीं, खुले श्रेणी के वनों में नौ वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी पाई गई।
ऊंचाई के हिसाब से वनों की स्थिति
ऊंचाई------------------अति सघन-------मध्यम-----खुले------कुल
500--------------------628--------------1636-------620------2884
500 से 1000---------1196--------------1865-----898-----3959
1000 से 2000-------1569--------------5165-----3306-----10040
2000 से 3000-------1548--------------3099-----1128-----5775
3000 से 4000---------106--------------1039-----494-----1639
4000 से ऊपर-------शून्य------------------01---------05-----06
कुल----------------5047-----------12805---------6451---24303
(ऊंचाई मीटर मे व क्षेत्रफल वर्ग किमी में)
उत्तराखंड में 11 फीसद जंगल पर आग का अधिक प्रकोप
एफएसआइ की रिपोर्ट में आग से अधिक धधकने वाले जंगलों का भी जिक्र किया गया है। राज्य में ऐसे वनों का क्षेत्रफल 11.09 फीसद भाग पर फैला है। वर्ग किलोमीटर में इसकी बात करें तो यह आंकड़ा 3177.83 है। वहीं, 45.56 वर्ग किलोमीटर ऐसा भाग है, जिसे के लिहाज से अति संवेदनशील बताया गया है।
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अग्नि संवेदनशील वन भूभाग
संवेदनशीलता-------------क्षेत्रफल---------फीसद
अति संवेदनशील---------45.56---------0.17
उच्च संवेदनशील---------443.12-------1.60
अधिक संवेदनशील------2689.15------9.32
मध्यम संवेदनशील------7316.58------21.66
कम संवेदनशील---------32275.70-----67.25
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