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    देहरादून में 12.20 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि में खड़े हो गए भवन Dehradun News

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Thu, 18 Jul 2019 07:16 PM (IST)

    दून में बीते 27 सालों में 12.20 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि को लील लिया है। यह करीब उतनी ही भूमि है जितनी भूमि हाल में ग्रामीण क्षेत्र से टूटकर नगर निगम का हिस्सा बनी है।

    देहरादून में 12.20 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि में खड़े हो गए भवन Dehradun News

    देहरादून, सुमन सेमवाल। दून में बढ़ते शहरीकरण ने बीते 27 सालों में 12.20 हजार हेक्टेयर (122 वर्ग किलोमीटर) कृषि भूमि को लील लिया है। यह करीब उतनी ही भूमि है, जितनी भूमि हाल में ग्रामीण क्षेत्र से टूटकर नगर निगम का हिस्सा बनी है। इस बात से समझा जा सकता है कि हमने कृषि का कितना बड़ा रकबा हमेशा के लिए खो दिया। यह हकीकत उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के लैंड यूज/लैंड कवर एटलस में सामने आई।

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    बुधवार को राजभवन में इस एटलस के विमोचन के अवसर पर यूसैक के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि मल्टी टेंपोरल सेटेलाइट डाटा के आधार पर देहरादून व अल्मोड़ा में बीते 27 सालों में आए अंतर का पता लगाया गया। अल्मोड़ा में यह अंतर 4184 हेक्टेयर (41.84 वर्ग किलोमीटर) पाया गया है। यानी इतनी कृषि भूमि पर निर्माण कर लिए गए। प्रदेशभर के नगरीय क्षेत्रों में आवास व विकास कार्यों की बढ़ती जरूरतों को देखें तो वर्ष 2011 से 2015 के बीच निर्मित क्षेत्रों में 15.47 फीसद का इजाफा हुआ है। इस दबाव के चलते कृषि भूमि के क्षेत्रफल में 14.74 फीसद, तो वन भूमि के क्षेत्रफल में 6.64 फीसद की कमी दर्ज की गई।

    मौसम के बदले मिजाज से बढ़ा बर्फ का दायरा

    वर्ष 2010-11 से लेकर 2018-19 के बीच हिमाच्छादित (बर्फ से ढके) क्षेत्रों का भी सेटेलाइट डेटा के माध्यम से अध्ययन किया गया। स्पष्ट हुआ कि वर्ष 2010-11 में यमुना बेसिन में हिमाच्छादित क्षेत्र 70 फीसद थे। यह आंकड़ा बढ़कर 91 फीसद हो गया है। इसी तरह अलकनंदा बेसिन में बर्फ का दायरा 59 फीसद से बढ़कर 84 फीसद हो गया। इसके अलावा एक अध्ययन वर्ष 2011-12 व 2015-16 के बीच कुल हिमाच्छादित क्षेत्रों का भी किया गया। इसमें भी बर्फ के दायरे में पहले की तुलना में 3157.25 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। आंकड़े बताते हैं कि बर्फ का दायरा बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर में भी कमी आएगी।

    फसल कटने से पहले पता लगा पैदावार कितनी

    यूसैक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि सेटेलाइट के माध्यम से फसलों की कटाई से पहले ही अब यह पता भी लगाया जा सकता है कि खेतों में कितनी पैदावार है। इसके माध्यम से 2018-19 में गेहूं चावल की पैदावार का पता लगाया गया।

    इस तरह पता लगी पैदावार

    (क्षेत्रफल हेक्टेयर व व पैदावार मीट्रिक टन में)

    • फसल, क्षेत्रफल, पैदावार
    • गेहूं, 358528.9, 834751.4
    • चावल (जायद), 15213.04, 50203
    • चावल (खरीफ), 207414.4, 423400.17

    यूसैक की चार पुस्तकों का विमोचन 

    उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने उत्तराखंड के भू-उपयोग, कृषि क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग, वन क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, जल एवं हिमाच्छादन से संबंधित चार पुस्तकों का संकलन तैयार किया है। बुधवार को इनका विमोचन राजभवन में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य व कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने किया है। इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि विज्ञान का क्षेत्र इतना व्यापक है कि यह मानव जीवन की उत्पत्ति से लेकर अंत तक किसी न किसी रूप में जुड़ा है।

    राज्यपाल ने कहा कि इन पुस्तकों में जो जानकारी व आंकड़े दिए गए हैं, उनसे तमाम रेखीय विभाग अपनी योजनाओं को बेहतर बनाने में इनका उपयोग कर सकते हैं। इस अवसर पर यूसैक के निदेशक की ओर से तैयार की गई सूक्ष्म फिल्म 'मिशन रिस्पना' का प्रस्तुतीकरण भी किया गया। वहीं, कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि कृषि के सेक्टर में सेटेलाइट तकनीक बेहतर साबित हो रही है। इसके माध्यम से यूसैक की ओर से कटाई से पहले ही बता दिया गया है कि खेतों में कितनी पैदावार खड़ी है। इस अवसर पर आइआइआरएस के निदेशक डॉ. प्रकाश चौहान, मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह, लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी समेत तमाम विशेषज्ञ उपस्थित रहे। 

    इन पुस्तकों का किया गया विमोचन

    • लैंड यूज/लैंड कवर ऑफ उत्तराखंड।
    • रिमोट सेंसिंग एंड जीआइएस बेस्ड एप्लीकेशंस इन एग्रीकल्चर सेक्टर।
    • जियोस्पाशियल टेक्निक्स फॉर फॉरेस्ट, इकोलॉजी एंड क्लाइमेट चेंज सेक्टर ऑफ उत्तराखंड।
    • एन एटलस ऑफ वाटर एंड स्नो कवर स्टडीज ऑफ उत्तराखंड।

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