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    गुटबाजी के चलते उत्तराखंड में चुनावी तैयारियों में पिछड़ी बसपा

    By BhanuEdited By:
    Updated: Tue, 01 Nov 2016 07:25 AM (IST)

    प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस, भाजपा व समाजवादी पार्टी जहां खासी सक्रिय नजर आ रही है, वहीं बसपा इस मामले में काफी पिछड़ती दिख रही है।

    देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस, भाजपा व समाजवादी पार्टी जहां खासी सक्रिय नजर आ रही है, वहीं बसपा इस मामले में काफी पिछड़ती दिख रही है। पिछले लंबे समय से बसपा प्रदेश संगठन में चली आ रही गुटबाजी व अंतर्कलह को इसकी वजह माना जा रहा है।

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    अलबत्ता, पिछले दिनों बसपा के प्रदेश संगठन में हुए भारी फेरबदल के बाद पार्टी चुनावी मोड में आने लगी है। खासतौर पर बूथ प्रबंधन की कोशिशें तेज कर दी गई हैं।

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    उत्तराखंड की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी को तीसरे सबसे बड़े सियासी दल का दर्जा हासिल है। राज्य गठन के बाद से लेकर अब तक प्रदेश की सत्ता कांग्रेस व भाजपा के ही हाथों में रही है, मगर सत्ता संतुलन में बसपा की भूमिका भी अहम रही। यह दीगर बात है कि पिछले कुछ वर्षों में बसपा की इस राजनीतिक हैसियत में खासी गिरावट भी देखने को मिली है।

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    पिछले तीन विधानसभा चुनावों में बसपा की जीत का आंकड़ा लगातार नीचे लुढ़का है, वहीं बसपा का प्रदेश संगठन भी बेहद कमजोर होता चला गया।
    गुटबाजी व अंतर्कलह के कारण पार्टी के कई दिग्गज नेता बाहर चले गए या बाहर कर दिए गए, जबकि कई पार्टी विधायक चुनाव के समय दूसरे दलों में शामिल हो गए।

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    शायद यही वजह है कि वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी के मामले में बसपा अन्य दलों से काफी पीछे नजर आ रही है। हालांकि, गत दिनों बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी से बाहर हो चुके तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को वापस पार्टी में शामिल कर दिया। साथ ही, प्रदेश संगठन की कमान भृगुराशन राव के हाथों में सौंप दी।

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    प्रदेश संगठन में हुए इस बड़े फेरबदल के बाद बसपा अब जाकर चुनावी मोड में आती दिख रही है। चार प्रदेश महासचिवों अलग-अलग जिलों की कमान सौंपी गई है, तो चुनाव के मद्देनजर बूथ प्रबंधन की भी कोशिशें तेज हो गई हैं।
    पार्टी ने अपने पुराने मजबूत गढ़ दो मैदानी जिलों हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में ताकत झोंक दी है। हालांकि, पिछले कुछ समय से निष्क्रियता के कारण हुए नुकसान की भरपाई बसपा के लिए इतनी आसान नहीं होगी।
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