भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड में भी साबित कर चुके हैं सियासी हुनर
उत्तराखंड के भगत सिंह कोश्यारी भले ही अपनी सादगी और विनोदी स्वभाव के लिए जाने जाते हों लेकिन भाजपा के भीतर और बाहर धारदार रणनीति उनकी खास पहचान रही है।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। छोटा कद, छरहरी काया, सफेद धोती, हंसमुख चेहरा और हल्के-फुल्के अंदाज में घुल-मिलने वाले उत्तराखंड के भगतदा यानी भगत सिंह कोश्यारी भले ही अपनी सादगी और विनोदी स्वभाव के लिए जाने जाते हों, लेकिन भाजपा के भीतर और बाहर धारदार रणनीति उनकी खास पहचान रही है। खासतौर पर उत्तराखंड की सियासत में यही कुव्वत उनकी बड़ी पहचान रही है। कोश्यारी का यही सियासी अनुभव आखिरकार महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर काम आया। चुनाव नतीजे आने के तकरीबन एक महीने तक चली उठापटक के बाद शनिवार को उन्होंने महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरे जुड़े रहे कोश्यारी की सादगी जहां पहली ही नजर में असर छोड़ती है, वहीं राजनीति पर अपनी पैनी नजर और गहरी पैठ को लेकर भी वह गाहे-बगाहे लोहा मनवाते रहे हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड की सियासत खासतौर पर भाजपा के भीतर उन्हें आज भी बड़े रणनीतिकार के तौर पर देखा जाता है। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड अलग राज्य बना तो उत्तरप्रदेश विधानसभा के 23 और विधान परिषद के सात सदस्यों को लेकर राज्य की पहली अंतरिम सरकार का गठन किया गया। कोश्यारी तब उत्तरप्रदेश विधान परिषद के सदस्य थे और उत्तराखंड की पहली अंतरिम सरकार नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व में बनी, इसमें कोश्यारी ऊर्जा और सिंचाई मंत्री बनाए गए। अक्टूबर 2001 में नित्यानंद स्वामी के स्थान पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। भाजपा ने उत्तराखंड में पहला चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा। पार्टी को राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में भले ही पराजय मिली, लेकिन पार्टी के भीतर कोश्यारी का सियासी रसूख कायम रहा।
वर्ष 2007 में प्रदेश में दूसरी निर्वाचित सरकार बनने पर कोश्यारी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन भाजपा आलाकमान ने सेवानिवृत्त मेजर जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी की ताजपोशी की। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी पांच लोकसभा सीटों पर कांग्रेस जीती, तब खंडूड़ी को पद से हटना पड़ा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका कोश्यारी की ही रही। हालांकि मुख्यमंत्री पद की होड़ में बाजी रमेश पोखरियाल निशंक मार ले गए। वर्ष 2017 में उत्तराखंड में गठित भाजपा की मौजूदा सरकार पर भी उनका गहरा प्रभाव साफ दिखाई पड़ता है। इसे कोश्यारी का असर ही कहेंगे कि विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, राज्य में टिकटों के वितरण में भाजपा में उन्हें पूरा सम्मान मिला। इस बार अधिक उम्र का हवाला देकर वह नैनीताल संसदीय सीट पर चुनाव मैदान से हट गए, लेकिन कोश्यारी के सियासी कौशल का ये प्रभाव ही है कि उन्हें बतौर गवर्नर महाराष्ट्र जैसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य की जिम्मेदारी मिली।
सियासत का बड़ा उलझा पेच हो या तनाव की घड़ी या गंभीर सवाल उस पर हल्के-फुल्के अंदाज में चुटकी लेना या सहजता से टाल देना उनकी खास शैली मानी जाती रही है। विरोधियों पर भी चुटीले हमले बोलने और चुटकी लेने के अंदाज के लिए भी उन्हें जाना जाता रहा है। शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी शनिवार को उनकी संघ की सीधी-सादी पृष्ठभूमि का हवाला तो दिया, लेकिन वह भी कोश्यारी के सियासी अनुभव का आकलन नहीं कर पाए। 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के तकरीबन महीनेभर तक सियासी दलों के एकदूसरे के साथ आने के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच शनिवार अलसुबह महाराष्ट्र की सियासत में लिखी गई नई पटकथा में महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर उनकी भूमिका अहम बन गई।
एक परिचय
- नाम-भगत सिंह कोश्यारी
- पिता का नाम- गोपाल सिंह कोश्यारी
- मूल पता-ग्राम पालनाधुरा जनपद बागेश्वर, उत्तराखंड
- जन्मतिथि-17 जून 1942
- प्रारंभिक शिक्षा-प्राथमिक विद्यालय महरगाड़ी बागेश्वर
- आठवीं-जूनियर हाईस्कूल शामा
- हाईस्कूल-कपकोट (बागेश्वर)
- इंटरमीडिएट-पिथौरागढ़
सामाजिक व राजनीतिक सफर
- वर्ष 1964- 65 में रामपुर में प्रवक्ता पद पर नियुक्ति, बाद में नौकरी छोड़ी।
- पिथौरागढ को कर्मस्थली बनाया। पिथौरागढ़ में सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या मंदिर की स्थापना में अहम भूमिका। शिशु मंदिर में आचार्य रहे।
- पिथौरागढ़ में साप्ताहिक पर्वत पीयूष समाचार पत्र का प्रकाशन, जो जारी है।
- आपातकाल में जुलाई 1975 से 1977 तक जेल में रहे।
- वर्ष 1988 से 93 तक उत्त्तरांचल संघर्ष समिति के महामंत्री और बाद में उत्त्तरांचल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे।
- 13 मई 1997 को यूपी विधान परिषद के सदस्य मनोनीत हुए। यूपी विधान सभा समाधिकार समिति के सदस्य रहे। वर्ष 1999 से 2000 तक कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल सीनेट में विधान परिषद द्वारा नामित सदस्य रहे।
- उत्त्तराखंड राज्य बनने पर पहले ऊर्जा मंत्री बने।
- अक्टूबर 2001 में उत्त्तरांचल के मुख्यमंत्री बने।
- 2002 में कपकोट विस क्षेत्र से पहली बार विधायक चुने गए, तब नेता प्रतिपक्ष रहे।
- 2003 में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहे फिर राज्यसभा के लिए चुने गए
- 2014 में नैनीताल से सांसद चुने गए।
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