कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए क्राउड फंडिंग कर रहीं बीनू जॉर्ज, पढ़िए पूरी खबर
मन में चाह हो तो राह बन ही जाती है। मसूरी की बीनू जॉर्ज इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। शहर के तमाम अस्पताल भी कोरोना संक्रमितों का इलाज करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। तब बीनू लंढौर कम्युनिटी अस्पताल के लिए क्राउड फंडिंग में जुटी हैं।

संवाद सहयोगी, मसूरी। मन में चाह हो तो राह बन ही जाती है। मसूरी की बीनू जॉर्ज इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इस मुश्किल दौर में भी जब तंत्र मसूरी में कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए व्यवस्था विकसित नहीं कर पाया है। शहर के तमाम अस्पताल भी कोरोना संक्रमितों का इलाज करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। तब बीनू लंढौर कम्युनिटी अस्पताल (एलसीएच) के लिए क्राउड फंडिंग (जन सहयोग से धन इकट्ठा करना) में जुटी हैं। ताकि इस अस्पताल में कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए संसाधन विकसित किए जा सकें और शहर के मरीजों को देहरादून की दौड़ न लगानी पड़े। उन्होंने महज तीन दिन में क्राउड फंडिंग से 30 लाख रुपये एकत्र भी कर लिए हैं। बीनू की इस पहल की हर तरफ तारीफ हो रही है।
दैनिक जागरण से बातचीत में लंढौर निवासी बीनू ने बताया कि महामारी के इस दौर में भी मसूरी में कोरोना संक्रमितों के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। संक्रमण गंभीर होने पर मसूरी वासियों को इलाज के लिए देहरादून जाना पड़ रहा है। जो मरीजों के साथ उनके स्वजनों के लिए भी बेहद कष्टकारी है। मरीजों और उनके स्वजनों की यह व्यथा देखकर उनके जेहन में लंढौर कम्युनिटी अस्पताल को आधुनिक चिकित्सा उपकरण उपलब्ध करवाने का विचार आया।
बेटा बना मां के लिए प्रेरणा
इसके लिए क्राउड फंडिंग की प्रेरणा बीनू को अपने बेटे रोहित से मिली। जिसने विगत वर्ष लॉकडाउन में ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए क्राउड फंडिंग से 50 हजार रुपये एकत्र किए थे। बीनू को उनके भाई ने भी इसके लिए मोटीवेट किया। परिणामस्वरूप तीन दिन के अल्प समय में ही देश-विदेश से 350 से अधिक व्यक्तियों ने 30 लाख रुपये कोविड चिकित्सा उपकरणों के लिए ऑनलाइन भेजे हैं। बीनू ने बताया कि वह यह धनराशि कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद जल्द ही लंढौर कम्युनिटी अस्पताल को सौंप देंगी।
1938 में हुआ था अस्पताल का निर्माण
लंढौर कम्युनिटी अस्पताल के चिकित्सक डॉ. जॉर्ज क्लारेंस ने बीनू के इस कार्य की सराहना करते हुए बताया कि इस अस्पताल का निर्माण वर्ष 1938 में उस वक्त यहां कार्यरत मिशनरियों ने किया था। आज भी अस्पताल का संचालन मिशनरी संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है। उन्होंने बताया कि अस्पताल में उत्तरकाशी और टिहरी से भी मरीज आते हैं।
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