दो साल में जगी उम्मीदों की 'रोशनी', नगर निगम में शामिल 72 गांवों में पहुंचने लगी मूलभूत सुविधाएं
ग्रामीण क्षेत्रों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का जो सपना सरकार ने दो वर्ष पूर्व देखा था वह धीरे-धीरे साकार होता नजर आ रहा है। शहर से सटे 72 गांवों को निगम क्षेत्र में मिलाकर शहर का भूगोल तो बदला ही नगर निगम का बजट भी दोगुना हो गया।
अंकुर अग्रवाल, देहरादून: ग्रामीण क्षेत्रों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का जो सपना सरकार ने दो वर्ष पूर्व देखा था, वह धीरे-धीरे साकार होता नजर आ रहा है। शहर से सटे 72 गांवों को नगर निगम क्षेत्र में मिलाकर शहर का भूगोल तो बदला ही, नगर निगम का बजट भी दोगुना हो गया। यहां मूलभूत सुविधाओं का खाका खींचने में नगर निगम को दो वर्ष का समय तो लगा, लेकिन अब ग्रामीणों को लग रहा है कि उनके साथ छलावा नहीं हुआ। शहर में शामिल किए गए इन गांवों में सड़कों को जगमग करने के लिए 65 हजार नई एलईडी स्ट्रीट लाइटें लगाई जा रहीं और स्वच्छता के लिए मोहल्ला स्वच्छता समितियां भी तैनात कर दी गईं। हालांकि, अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है, लेकिन निगम दावा कर रहा कि आने वाले एक वर्ष में ग्रामीण क्षेत्रों की सूरत काफी बदल जाएगी।
नगर निगम का नया बोर्ड चुने हुए आज पूरा दो वर्ष बीत चुके हैं और इतना ही वक्त नए वार्डों में बुनियादी ढांचा बनाने में लगा। नगर निगम का दायरा बढ़कर 60 वार्डों से 100 वार्ड जबकि यहां का क्षेत्रफल 64 वर्ग किमी से बढ़कर 194 वर्ग किमी फैल गया है। वर्ष 2011 की जनगणना के तहत नगर निगम क्षेत्र की आबादी 5.74 लाख थी, जो बढ़कर 8.03 लाख हो चुकी है। वर्तमान में गौर करें तो निगम क्षेत्र की जनसंख्या करीब दस लाख पार हो चुकी है। गांवों को शहरी क्षेत्र में शामिल करने जो मकसद अभी तक कोसों दूर नजर आ रहा था और विपक्ष भी जिसे मुद्दा बनाकर सरकार की खिंचाई कर रहा था, वह मकसद अब पूरा होता दिखाई दे रहा। भले अभी तक सफाई व्यवस्था के पुख्ता प्रबंध नहीं हुए, लेकिन फौरी तौर पर मोहल्ला स्वच्छता समितियों को यहां सफाई में लगाया गया है। जो पिछले एक साल से बेहतर काम कर रहीं। यही नहीं अब निगम ने नए वार्डों में कूड़ा उठान भी शुरू कराया है। नई स्ट्रीट लाइटें लग रही हैं। नालियों व गलियों के निर्माण को लेकर 25-25 लाख रुपये का बजट पास हो चुका है और कार्य गतिमान हैं।
यह था मकसद
परिसीमन के बाद करीब सवा दो लाख ग्रामीणों को शहरी नागरिक का दर्जा मिल गया। गांवों को शहर में मिलाने का निगम का प्रस्ताव पांच साल तक सरकार में धूल फांकता रहा। हालांकि, उसमें शहर से सटे 51 गांव शामिल किए जाने थे, लेकिन बाद में यह संख्या बढ़ाकर 72 कर दी गई और मौजूदा सरकार ने प्रस्ताव मंजूर कर लिया। अब तक इन 72 गांवों को न तो शहरी क्षेत्र के करीब होने का फायदा मिल पाता था न ही ग्रामीण क्षेत्रों को मिलने वाली योजनाओं का। निगम इन्हें अपना हिस्सा नहीं मानता था और ग्राम पंचायतें इन्हें शहरी क्षेत्र का हिस्सा मानकर विकास कार्य से कदम पीछे खींच लेती थी। सरकार का मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी योजनाओं का लाभ पहुंचाना था।
पीएमओ में लगाते थे गुहार
अब तक सुविधाओं से वंचित शहरी क्षेत्र से सटे गांवों के लोग अक्सर पीएमओ में संपर्क कर अपनी समस्या बताया करते थे। जोहड़ी गांव, मालसी, अनारवाला गांव में स्ट्रीट लाइटों और सड़कों आदि की समस्या के मामले पीएमओ तक पहुंचे। मगर, गुजरे एक साल में विकास कार्यों के गति पकड़ने से ग्रामीणों की शिकायतें भी दूर होने लगी हैं।
300 करोड़ चाहिए सालाना बजट
परिसीमन से पूर्व में नगर निगम से पास 60 वार्डों के लिए सालाना डेढ़ सौ करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था थी, मगर अब वार्डों की संख्या बढ़ जाने से नए जुड़े क्षेत्रों में विकास के लिए निगम को 150 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजट चाहिए। खुद नगर आयुक्त शासन में 300 करोड़ के सालाना बजट की डिमांड कर चुके हैं।
बदल गया वार्डों का गणित
परिसीमन के बाद शहर के 80 प्रतिशत वार्डों का इतिहास-भूगोल बदल चुका है। वार्डों का परिसीमन करीब आठ हजार की आबादी के हिसाब से किया गया है। ऐसे में शहर के 45 वार्ड, जिनकी आबादी नौ हजार से अधिक थी, उनकी स्थिति में भी परिवर्तन आ गया है। इतना ही नहीं ऐसे वार्ड भी प्रभावित हुए हैं, जिनकी आबादी नौ हजार से कम थी।
निगम के बजट की स्थिति
- 60 वार्ड के हिसाब से निगम के पास थी 150 करोड़ के बजट की व्यवस्था
- नगर निगम क्षेत्र में शामिल 72 गांवों में विकास कार्यों के लिए 150 करोड़ का बजट अतिरिक्त चाहिए
- 14 वें वित्त आयोग से नगर निगम को मिलते हैं 101 करोड़ रुपये
- राज्य वित्त से नगर निगम को मिलते हैं 25 करोड़ रुपये
- हाउस टैक्स और बाकी स्रोतों से आय 40 करोड़ रुपये
हाउस टैक्स भी किया गया माफ
नए वार्डों के निवासियों को बड़ी राहत देते हुए सरकार ने इनका अगले दस साल तक का हाउस टैक्स भी माफ कर दिया है। बीते दिनों ही इसके शासनादेश जारी हुए। इससे लगभग 50 हजार भवन मालिकों को राहत मिली है। हालांकि, छूट सिर्फ आवासीय पर दी गई है। व्यावसायिक भवनों को टैक्स से छूट नहीं दी गई।
घंटाघर व गांधी पार्क भी 'चहके'
महापौर सुनील उनियाल गामा की बड़ी उपलब्धि घंटाघर और गांधी पार्क के स्वरूप का परिवर्तन भी है। दोनों जगह सौंदर्यीकरण के तहत म्यूजिकल फाउंटेन, एलईडी लाइटें तो लगाई गई ही, साथ ही घंटाघर की रोटरी कम कराकर यातायात जाम से भी राहत दी गई।
महापौर सुनील उनियाल गामा ने कहा कि नए वार्डों में मूलभूत सुविधाओं का खाका खींचना और फिर सुविधाएं पहुंचाने की शुरुआत करना मेरी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। हर नए वार्ड में 25-25 लाख रुपये से विकास कार्य कराए जा रहे हैं। सफाई एवं कूड़ा उठान की व्यवस्था भी शुरू हो चुकी है और सड़कें जगमग करने के लिए 65 हजार नई एलईडी स्ट्रीट लाइटें लगाई जा रहीं। इसके साथ ही गांधी पार्क में म्यूजिकल फाउंटेन, योगा पार्क के साथ ही ओपन-जिम भी बड़ी उपलब्धि है। गत दिनों ही घंटाघर पर भी म्यूजिकल फाउंटेन व एलईडी लाइटों का काम पूरा हुआ, जो पिछले 12 साल से लटका हुआ था। मेरा ध्येय सबका साथ-सबका विकास है और किसी क्षेत्र के साथ अन्याय नहीं होगा।