Avalanche In Uttarkashi: आखिर कैसे पड़ा इस चोटी का नाम द्रौपदी का डांडा? कैसे जुड़ा हुआ है ये महाभारत काल से
Avalanche In Uttarkashi उत्तरकाशी जनपद में द्रौपदी का डांडा ( डीकेडी ) में बीते मंगलवार को एवलांच आया। इसकी चपेट में निम का प्रशिक्षु पर्वतारोहियों का दल आ गया। आखिर इस पहाड़ी का नाम द्रौपदी का डांडा क्यों पड़ा।
जागरण संवाददाता, देहरादून। Avalanche In Uttarkashi: बीते मंगलवार चार अक्टूबर को उत्तरकाशी जनपद के द्रौपदी का डांडा (डीकेडी) चोटी पर एवलांच आया। इस हादसे में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रशिक्षु पर्वतारोहियों का दल चपेट में आ गया था। आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर इस चोटी का नाम द्रौपदी का डांडा (Draupadi Ka Danda) कैसे पड़ा। आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं।
पांडव के स्वर्गारोहिणी यात्रा से जुड़ा है यह क्षेत्र
चारधाम विकास परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष सूरतराम नौटियाल ने बताया कि मान्यता है कि स्वर्गारोहणी यात्रा के दौरान पांडव (Pandavas) इसी क्षेत्र से होकर आगे बढ़े थे। पूरा हिमालयी क्षेत्र नजर आने से इस पर्वत का नाम द्रौपदी का डांडा रखा गया। डांडा यानी चोटी। इस चोटी पर जबसे नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देना शुरू किया, तो इसका नाम संक्षेप में डीकेडी (द्रौपदी का डांडा) कर दिया।
आज भी ग्रामीण करते हैं इसकी पूजा
आज भी भटवाड़ी क्षेत्र के ग्रामीण इस पर्वत की पूजा करते हैं। वह इसकी तलहाटी में स्थित खेड़ा ताल को नाग देवता का ताल मानते हैं। हर वर्ष सावन में ग्रामीण इस ताल में पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं।
द्रौपदी का डांडा की भौगोलिक स्थिति
- द्रौपदी का डांडा (Draupadi Ka Danda) समुद्रतल से 18600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
- पहले उत्तरकाशी से 40 किमी सड़क मार्ग से भटवाड़ी पहुंचना पड़ता है।
- तीन किमी की पैदल दूरी पर स्थित है भुक्की गांव है। यहां से 3 किमी आगे तेल कैंप।
- इसके बाद 3 किमी दूर गुर्जर हट हैं। इसके आगे 4 किमी की दूरी बेस कैंप है।
- बेस कैंप से ढाई किमी की दूरी पर है एडवांस बेस कैंप।
- यहां से करीब ढाई किमी दूर डोकराणी बामक ग्लेशियर है। यहां पर समिट कैंप लगाया जाता है।
- समिट कैंप से 1.5 किमी की दूरी पर डीकेडी चोटी की ओर 18 हजार फीट की ऊंचाई पर मंगलवार सुबह एवलांच आया था।
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युधिष्ठिर स्वर्गारोहिणी से गए थे सशरीर स्वर्ग
धार्मिक मान्यता है कि धर्मराज युधिष्ठिर स्वर्गारोहिणी से सशरीर स्वर्ग गए थे। अन्य पांडवों ने स्वर्गारोहिणी के रास्ते में धर्मराज युधिष्ठिर का साथ छोड़ दिया था। श्वान के रूप में धर्मराज उनके साथ अंत तक रास्ता दिखाने का काम करते रहे।
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