निजी अस्पतालों में मातृ मृत्यु का नहीं हो रहा है ऑडिट, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में निजी अस्पतालों और घरों में प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु की न सूचना प्राप्त हो रही है और न इनका ऑडिट ही हो पा रहा है।
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में अभी केवल सरकारी चिकित्सालयों पर ही मातृ मृत्यु का ऑडिट हो पा रहा है। निजी अस्पतालों और घरों में प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु की न सूचना प्राप्त हो रही है और न इनका ऑडिट ही हो पा रहा है। अपर सचिव स्वास्थ्य और मिशन निदेशक एनएचएम युगल किशोर पंत ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि चिकित्सालयों के अलावा घरों में होने वाली मातृ मृत्यु के कारणों का भी पता लगाया जाए। तभी मातृ मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
स्वास्थ्य महानिदेशालय में मेटरनल डेथ सर्विलांस एंड रिस्पांस कमेटी की राज्य स्तरीय बैठक में उन्होंने विभागीय अधिकारियों, मेडिकल कॉलेजों के विभागाध्यक्ष एवं सभी प्रमुख चिकित्सालयों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों को निर्देश दिए कि जिला स्तरीय मेटरनल डेथ सर्विलांस एंड रिस्पांस कमेटी की नियमित बैठकें आयोजित की जाएं। कहा कि गर्भवती की प्रसव पूर्व और प्रसव पश्चात मृत्यु के वास्तविक कारणों का पता लगाया जाना आवश्यक है। इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
वर्ष 2020 तक मातृ मृत्यु दर 100 प्रति एक लाख लाने का लक्ष्य
राज्य नोडल अधिकारी डॉ. सरोज नैथानी ने बताया कि वर्ष 2020 तक उत्तराखंड में मातृ मृत्यु दर को 100 प्रति एक लाख के स्तर पर लाने का लक्ष्य है। एसआरएस सर्वे के अनुसार राज्य में संभावित मातृ मृत्यु की संख्या 368 आंकलित की गई है। जिसके सापेक्ष वर्ष 2018-19 में 187 मातृ मृत्यु दर्ज की गई हैं और 160 मामलों में इसके कारणों का ऑडिट किया गया है। 42 मामलों को जिला अधिकारियों द्वारा भी सक्षम कमेटी के स्तर पर रिव्यू किया गया है।
देश में 44 हजार माताओं की हो जाती है मौत
देश में लगभग 44 हजार माताओं की मृत्यु प्रति वर्ष प्रसव संबंधित कारणों से हो रही है जो विश्व की मातृ मृत्यु का 15 प्रतिशत है।
उत्तराखंड में हुआ सुधार
एनएचएम निदेशक डॉ अंजलि नौटियाल ने बताया कि राज्य की मातृ मृत्यु दर 285 के सापेक्ष 201 पर आ गई है। इस प्रकार 84 अंकों की गिरावट के साथ उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जहां पर मातृ मृत्यु अनुपात में सबसे अधिक 29.47 प्रतिशत सुधार हुआ है। उन्होंने सभी चिकित्साधिकारियों को निर्देश दिए कि वह निजी अस्पतालों में हो रही मातृ मृत्यु के कारणों का भी नियमित ऑडिट करें और इसकी सूचना राज्य स्तर पर नियमित रूप से दें। जिससे भारत सरकार को मातृ मृत्यु के कारणों के निदान के लिए आवश्यक सहयोग के लिए कार्ययोजना प्रस्तुत की जाए।
मृदुभाषी, संवेदनशील और व्यवहार कुशल होने की नसीहत
स्वास्थ्य निदेशक डॉ. अमिता उप्रेती ने कहा कि मातृ मृत्यु के कारण देश के साथ ही राज्य विकास में एक बड़ा अवरोध पैदा हो रहा है। इसके कारणों का सही आंकलन तभी हो सकता है जब अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ संबंधित परिवार के साथ वार्तालाप कर आवश्यक जानकारी जुटाई जाए। उन्होंने चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए मृदुभाषी, संवेदनशील और व्यवहार कुशलता को आवश्यक बताया।
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