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आखिर पिछली सरकार को समझ आ ही गया जवाब

केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्धता जारी रखने की सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों की हठ के आगे सरकार भी डट गई है। विधानसभा में सरकार के जवाब में यही संकेत है। राज्य विश्वविद्यालय से संबद्धता लेने पर हामी भरी तो अनुदान पर भी संकट नहीं रहेगा।

By Sumit KumarEdited By: Published: Wed, 23 Dec 2020 02:57 PM (IST)Updated: Wed, 23 Dec 2020 03:00 PM (IST)
सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों की हठ के आगे सरकार भी डट गई है।

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादूनः केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्धता जारी रखने की सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों की हठ के आगे सरकार भी डट गई है। विधानसभा में सरकार के जवाब में यही संकेत है। राज्य विश्वविद्यालय से संबद्धता लेने पर हामी भरी तो अनुदान पर भी संकट नहीं रहेगा। अनुदान ले रहे इन कॉलेजों के शिक्षक आंदोलित हैं। उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक में अशासकीय डिग्री कॉलेजों को अनुदान देने संबंधी प्रविधान नहीं जोड़ा गया। सरकार के इस कदम को कॉलेजों पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। शिक्षकों के विरोध को देखते हुए विपक्ष ने मामले को लपक लिया। विधानसभा सत्र में नियम-58 में मामला उठा। सरकार ने राज्य विश्वविद्यालय से संबद्धता को जरूरी बताया तो नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश भी सहमत दिखीं। वजह साफ है कि वह पिछली कांग्रेस सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रह चुकी हैं। ये मामला पिछली सरकार के समय से चला आ रहा है।

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वंचितों का तबादला संस्कृति पर हमला

शिक्षा विभाग सबसे ज्यादा चर्चित किसी मामले में रहता है तो वे हैं तबादले। लंबे अरसे तक ये उद्योग के रूप में फूला-फला है। अब भले ही अंकुश लगा दिया गया, लेकिन इस कार्य में लगने वाली उद्यमिता का कोई सानी नहीं है। कोरोना महामारी ने नौ महीने बाद भी स्कूलों के दरवाजों पर लगे ताले खोलने नहीं दिए हैं। इन बंद दरवाजों और दूरदराज पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन की आभासी दुनिया के भरोसे छोड़े गए भविष्य पर मंडरा रहे तमाम खतरों के बावजूद ये उद्यमी पूरी ऊर्जा के साथ जुटे हैं। सरकारी तंत्र ने इन्हें कभी निराश नहीं होने दिया। उद्यमिता के पूंजी निवेश का फल ईज ऑफ डूईंग बिजनेस के रूप में प्राप्त कर चुके लाभार्थियों में से कुछ को लाभ से वंचित किया गया है। उनके निशाने पर तबादला संस्कृति है। इस मामले से खफा शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने निदेशक से रिपोर्ट तलब की है।

राष्ट्र भक्ति लो, उपार्जित अवकाश दो

छात्रों को पाठ पढ़ाने के आदी गुरुजन खुद पाठ पढ़ने को तैयार नहीं हैं। सरकार कई दफा एसी नाकाम कोशिश कर चुकी है। कोरोना के संकट के बीच महीनों बाद बामुश्किल खोले गए सरकारी स्कूलों में कुछ दिनों बाद ही शीतावकाश शुरू होना है। स्कूलों में सिर्फ 10वीं और 12वीं की बोर्ड कक्षाएं चल रही हैं। बोर्ड परीक्षार्थियों की पढ़ाई पर सर्दियों की छुट्टियों की मार न पड़े, इसके लिए शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने राष्ट्रभक्ति का हवाला देते हुए छुट्टियों को न कहने के लिए गुरुजनों से खुद आगे आने की अपील की। ट्रेड यूनियनों की लंबी परंपरा में दीक्षित हो चुके गुरुजनों ने संकेत दिए हैं कि राष्ट्रभक्ति के मामले में वे भी पीछे नहीं हटेंगे। शीतावकाश से पीछे हटने के साथ उन्होंने उतनी ही अवधि का उपार्जित अवकाश देने की मांग जोड़ दी है। गुरुजनों के इस पाठ से मंत्री और विभागीय अधिकारी दोनों ही हक्के-बक्के हैं।

सुगम और दुर्गम का मनमाफिक अंदाज

शिक्षक ही नहीं, सरकार भी राज्य में सुगम और दुर्गम स्थानों को लेकर मनमाफिक परिभाषा गढ़ने से पीछे नहीं हटती। शिक्षक जब लंबे अरसे से सुगम में कार्यरत रहते हैँ तो इस जुगत में भी लगे रहते हैं कि किस तरह सेवा अवधि का कुछ हिस्सा दुर्गम में बताने की जुगाड़ हो जाए। इसके लिए तैनाती के दौर में ही स्कूल में सड़क और अन्य सुविधाएं न होने का हवाला देने से गुरेज नहीं किया जाता।

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शिक्षकों के संगठन ऐसे मुद्​दों को उठाकर विभाग की मुश्किलें बढ़ाते रहे हैं। फिर नए सिरे से सुगम और दुर्गम चिह्नीकरण का काम शुरू हो जाता है। इस बार सरकार ने भी यही किया। विधानसभा में विपक्ष के विधायक ने सवाल पूछा, पौड़ी, लोहाघाट और चंपावत को शिक्षा विभाग ने दुर्गम, जबकि तकनीकी शिक्षा विभाग ने इन्हें सुगम स्थान करार दिया है। जवाब था, सुविधाओं का परीक्षण करने के बाद सरकार ने यह कदम उठाया।

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