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    जड़ी-बूटियों के लिए दाम न बाजार

    By Edited By:
    Updated: Tue, 21 Aug 2012 01:05 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, ऋषिकेश :

    पहाड़ से पलायन रोकने के लिए सरकार तमाम योजनाओं का संचालन तो कर रही है। मगर, हकीकत यह है कि कड़ी मेहनत कर जमीन से सोना उगाने वाले काश्तकारों को उचित दाम तो दूर बाजार भी मयस्सर नहीं हो पा रहा है।

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    पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए सरकार ने गांवों के छोटे काश्तकारों से औषधीय एवं सागंध पादपों के उत्पादन कर आजीविका से जोड़ने की योजना तैयार की। किसानों ने इस दिशा में दिलचस्पी दिखाई और जड़ी बूटियों का उत्पादन भी किया। मगर कभी वन कानून तो कभी विपणन की समस्या ने काश्तकारों के होंसलों को तोड़ दिया है। राज्य स्थापना के ग्यारह वर्ष बाद भी काश्तकारों को उत्पाद बेचने के लिए बाजार मयस्सर नहीं हो पाया है। पिंस्वाड़ घनसाली में जड़ी बूटी उत्पादन कर रहे किसान इंदर सिंह, प्रेम सिंह, भरत सिंह व मक्खन सिंह का कहना है कि ग्यारह वर्षो में भी काश्तकारों को जड़ी बूटी, सब्जियों व फलों के लिए बाजार नहीं मिल पा रहा है। बाजार के आभाव में काश्तकार इन्हें औने पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं। हालांकि अब कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं विपणन के क्षेत्र में आगे आकर किसानों को बाजार उपलब्ध कराने का काम कर रही हैं। मगर, बहरहाल सरकार के लचर रवैये से किसानों के सपने दम तोड़ रहे हैं।

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    इन औषधियों का हो रहा उत्पादन

    अतीश, कुटकी, कूट, टगर, सतावर, सर्पगंधा, जटमासी, वत्सनाभ, आरचा, दोलू, अश्वगंधा, स्टीविया, कलियारी, तुलसी आदि।

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    काश्तकारों को लाइसेंस प्राप्त कर पाना सबसे टेढ़ी खीर है। सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते लोग दुग्ध उत्पादन, औषधीय एवं सागंध पादपों के उत्पादन तथा उद्यानीकरण से विमुख हो रहे हैं। सरकार को चाहिए कि इस दिशा में ठोस नीति बनाकर काश्तकारों को योजनाओं का लाभ दे। फिलहाल संस्थाओं के माध्यम से किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिया जा रहा है।

    रामनरेश बडोनी, निदेशक पर्वतीय लोक संस्कृति संस्थान

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    औषधीय और सागंध पादपों के उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। हालांकि अभी तक हम उत्पादन और उद्योग के बीच मजबूत कड़ी स्थापित नहीं कर पाए हैं। बाजार की बात करें तो फिलहाल ऋषिकेश, टनकपुर व रामनगर में वन विभाग द्वारा केंद्र स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा रिवाल्विंग फंड की व्यवस्था भी किसानों के लिए की गई है। इस वर्ष से जड़ी-बूटी उत्पादन के लिए भी रिवाल्विंग फंड की व्यवस्था शुरू हो गई है।

    गिरिजाशंकर पांडेय, कार्यकारी निदेशक, राज्य औषधी पादप बोर्ड

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