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उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से अब तक 12 मौत, कारगर नहीं हो रही वैक्सीन

उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीमारी से दून में लगातार तीसरे दिन भी मौत हो गई। अब तक मरने वालों की संख्या 12 हो चुकी है।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 25 Jan 2019 10:55 AM (IST)Updated: Fri, 25 Jan 2019 08:45 PM (IST)
उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से अब तक 12 मौत, कारगर नहीं हो रही वैक्सीन
उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से अब तक 12 मौत, कारगर नहीं हो रही वैक्सीन

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीमारी से दून में लगातार तीसरे दिन भी मौत हो गई। अब तक मरने वालों की संख्या 12 हो चुकी है, जबकि पीड़ित मरीजों का शहर के विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। 

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जानकारी के अनुसार मोथरोवाला के इंद्रापुरी फार्म निवासी 41वर्षीय व्यक्ति को 21 जनवरी को पटेलनगर स्थित श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मरीज को तेज बुखार, कफ व सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उपचार के दौरान मरीज ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया। 

प्रदेश में स्वाइन फ्लू से होने वाली यह 12वीं मौत है। इनमें अकेले नौ मरीजों की मौत श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में हुई है। दो मरीजों की मौत मैक्स अस्पताल व एक मरीज की मौत सिनर्जी अस्पताल में हुई थी। वहीं, गुरुवार को नौ और मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। इनमें से आठ मरीज श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती हैं। एक मरीज का मैक्स अस्पताल में इलाज चल रहा है। 

यानी पिछले 20 दिन में स्वाइन फ्लू की बीमारी फैलाने वाला वायरस 35 लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है। इनमें से बारह मरीजों की मौत हो चुकी है। कई मरीज शहर के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता का कहना है कि अस्पताल से मरीज की डेथ रिपोर्ट प्राप्त हुई है। जबकि लैब की रिपोर्ट नहीं मिली है। रिपोर्ट मिलने के बाद ही इस पर स्पष्ट रूप से कुछ कहा जा सकेगा। 

स्वाइन फ्लू में बहुत कारगर नहीं वैक्सीन

स्वाइन फ्लू का वायरस एच-1 एन-1 निरंतर अपना स्वरूप बदलता रहता है। इस कारण लंबे समय तक प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करने वाली कारगर वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. टीसी पंत का कहना है कि एच-1 एन-1 टीकाकरण को मास वैक्सीनेशन के रूप में किया जाना कतई कारगर उपाय नहीं है। 

स्वास्थ्य महानिदेशालय में आयोजित प्रेस वार्ता में डॉ. पंत ने बताया कि बाजार में उपलब्ध वैक्सीन अधिकतम एक वर्ष के लिए ही कारगर रहती है। यह केवल 70 प्रतिशत रोगियों में ही एक वर्ष के लिए प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर सकती है। वह भी यदि सर्कुलेटिंग स्ट्रेन उस वैक्सीन से पूर्णत: मैच करता है तो। 

उन्होंने कहा कि इंफ्लुएंजा वायरस के असर को खत्म करने के लिए जो भी वैक्सीन आती है, उन्हें समय-समय पर अपडेट करने की जरूरत होती है। क्योंकि वायरस स्ट्रेन हर साल या दो से तीन साल में बदल जाता है। वैक्सीन लगाने के बाद भी इसका असर होने में कुछ समय लगता है। 

इस दौरान वायरस से इंफेक्ट होने का खतरा बना ही रहता है। अगर मरीज को कोई सेकेंड्री इंफेक्शन है तो इसका असर कम हो सकता है। इसके अलावा डायबिटीज, हार्ट व कैंसर, गुर्दा रोग या एचआइवी पॉजिटिव व्यक्ति में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने की वजह से वैक्सीन के सीमित नतीजे मिलते हैं। 

स्वास्थ्य महानिदेशक ने कहा कि प्रदेश के अस्पतालों में स्वाइन फ्लू के मरीजों के उपचार के लिए दवाइयों सहित सभी कारगर व्यवस्थाएं मौजूद हैं। प्रत्येक जिला एवं बेस चिकित्सालय में आइसोलेशन वार्ड स्थापित कर दिए गए हैं, जिनमें 176 बिस्तर उपलब्ध हैं। 

'डेथ ऑडिट' की निकली हवा, स्वाइन फ्लू बना मौत की वजह 

स्वाइन फ्लू के बढ़ते प्रकोप के बीच 'डेथ ऑडिट' का राग छेड़ने वाला स्वास्थ्य महकमा अब बैकफुट पर है। श्री महंत इंदिरेश अस्पताल को विभाग ने क्लीन चिट दे दी है। 

स्वाइन फ्लू से अस्पताल में एक के बाद एक, छह मौत के बाद विभाग ने छह सदस्यीय टीम का गठन किया था। जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अस्पताल की लैब में किसी भी स्तर पर कमी नहीं है। जिन मरीजों की मौत हुई, उनमें कुछ मरीज अन्य गंभीर बीमरियों से भी पीड़ित थे। पर इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि उनमें स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है।

स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. टीसी पंत ने कहा कि स्वाइन फ्लू से दम तोड़ने  वाले ज्यादातर मरीजों को इस बीमारी के अलावा अन्य कई बीमारियां भी थीं। जिसके कारण वह इस रोग का मुकाबला नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि स्वाइन फ्लू एक 'सीजनल इन्फ्लुएन्जा' की तरह ही है। जो साधारण सर्दी-जुकाम की तरह होता है और स्वत: ठीक हो जाता है। 

रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर गर्भवती महिलाओं, बुजुर्ग और छोटे बच्चे को और मधुमेह, गुर्दा रोग, कैंसर, टीबी, अस्थमा रोगियों के लिए यह जानलेवा हो सकता है। डेथ ऑडिट पर उन्होंने कहा कि स्वाइन फ्लू के कारण एक ही अस्पताल में मौत का बढ़ता आंकड़ा चौकाने वाला था। इसी लिए यह निर्णय लिया गया। डेथ ऑडिट की प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी।

इधर, श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विनय राय का कहना है कि स्वाइन फ्लू को लेकर प्रारंभिक स्तर पर लापरवाही बरती जा रही है। मरीज स्थिति अत्यंत गंभीर होने पर अस्पताल आता है। जबकि ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सक की सलाह लें। 

उत्तराखंड में ही हो सकेगी स्वाइन फ्लू की जांच

उत्तराखंड में जल्द ही स्वाइन फ्लू की जांच शुरू हो जाएगी। अब जांच के लिए नमूने दिल्ली नहीं भेजने पड़ेंगे। बता दें, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में वायरोलॉजी लैब स्थापित करने पर सहमति दे चुका है। इसी क्रम में वहां से प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे से कुछ बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई थी। साथ ही कुछ आवश्यक संसाधन भी जुटाने को कहा था। जिस पर विभाग ने अब काम पूरा कर लिया है। 

गत वर्ष केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक टीम ने दून में वायरोलॉजी लैब स्थापित करने के लिए विभिन्न स्वास्थ्य इकाईयों का निरीक्षण किया था। यह प्रदेश के किसी सरकारी अस्पताल या मेडिकल कॉलेज में स्थापित होने वाली अपनी तरह की पहली लैब होगी। 

इस कदम से उत्तराखंड इन्फ्लूएंजा सर्विलास लैबोरेटरी नेटवर्क (आइएसएलएन) का भी हिस्सा बन जाएगा। अभी तक देश में ऐसी 21 ऐसी प्रयोगशालाएं हैं।  जिन राज्यों में यह सुविधा नहीं है वह नमूने निकटवर्ती राज्य की प्रयोगशालाओं में भेजते हैं। उत्तराखंड से नमूने दिल्ली भेजे जाते हैं। जिसकी रिपोर्ट आने में कई दिन का वक्त लगता है। 

इस प्रयोगशाला की जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि प्रदेश में स्वाइन फ्लू लगातार असर दिखा रहा है। स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. टीसी पंत के अनुसार इस विषय में कुछ बिंदु पर जानकारी मांगी गई थी। जिसकी रिपोर्ट भेज दी गई है। उम्मीद है कि जल्द इस पर सकारात्मक परिणाम आएगा। बता दें कि प्रदेश में अभी केवल श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में स्वाइन फ्लू की जांच होती है, लेकिन इसके लिए एक अच्छी खासी रकम मरीज को खर्च करनी पड़ती है।

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