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इस बार आसान नहीं है बदरीनाथ की राह, भूस्खलन ने छुड़ाए पसीने

इस बार बदरीनाथ यात्रा आसान नहीं है। यात्रा मार्ग पर बार-बार हो रहा भूस्खलन नासूर बन गया है। ऐसे में भक्तों की भी परीक्षा हो रही है।

By BhanuEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 10:18 AM (IST)Updated: Mon, 10 Sep 2018 09:24 PM (IST)
इस बार आसान नहीं है बदरीनाथ की राह, भूस्खलन ने छुड़ाए पसीने
इस बार आसान नहीं है बदरीनाथ की राह, भूस्खलन ने छुड़ाए पसीने

गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: बदरीनाथ हाइवे पर नासूर बन चुके लामबगड़ भूस्खलन जोन के बार-बार अवरुद्ध होने से देश-दुनिया में यात्रा को लेकर नकारात्मक संदेश जा रहा है। भूस्खलन जोन के स्थायी ट्रीटमेंट को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध होने के बाद भी अब तक महज 40 फीसद कार्य ही हो पाया है। जबकि, कार्य पूरा करने के लिए अक्टूबर तक का ही समय शेष है। स्थायी ट्रीटमेंट तो छोडि़ए, एनएच लोनिवि (नेशनल हाइवे लोक निर्माण विभाग) यातायात सुचारू करने में भी नाकाम रहा है।

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बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पांडुकेश्वर से दो किमी आगे लामबगड़ में बीते चार दशक से भूस्खलन जोन सक्रिय है। कई बार तो यह भूस्खलन जोन दुर्घटना का कारण भी बन चुका है। 2013 की आपदा में यहां पर बदरीनाथ हाइवे का 500 मीटर से अधिक हिस्सा अलकनंदा नदी में समा गया था। 

तब बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) ने यहां पर अस्थायी मार्ग बनाकर जैसे-तैसे आवाजाही शुरू करवाई थी। 2015 में प्रदेश सरकार ने भूस्खलन जोन सर्वे कराकर इसके स्थायी ट्रीटमेंट के लिए 95.96 करोड़ रुपये की कार्ययोजना तैयार की। 2016 में ट्रीटमेंट के लिए टेंडर निकाले गए और एक जनवरी 2017 से निर्माण एजेंसी मेगा-फेरी कंपनी ने इस पर कार्य भी शुरू कर दिया। अनुबंध के अनुसार ट्रीटमेंट का कार्य 31 अक्टूबर 2018 तक पूरा होना है, लेकिन अब तक 40 फीसद कार्य ही पूर्ण हो पाया है। 

दो चरणों में होना है ट्रीटमेंट  

लामबगड़ भूस्खलन जोन का 320 मीटर हिस्सा ऐसा है, जहां निरंतर पहाड़ी दरक रही है। यहां दो चरणों में ट्रीटमेंट कार्य होना है। प्रथम चरण में अलकनंदा नदी के किनारे 500 मीटर लंबी और 26.4 मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण किया जा रहा है। 

दूसरे चरण में भूस्खलन वाली पहाड़ी को बिना छेड़े इस पर सुरक्षा दीवार लगनी है। ताकि भूस्खलन का मलबा इस दीवार से अटककर एकत्रित होता रहे। 

नहीं हुआ भूमि का हस्तांतरण 

टेंडर होने के बाद ट्रीटमेंट कार्य के लिए 40 करोड़ से अधिक की धनराशि का भुगतान हो चुका है। लेकिन, अब तक भूस्खलन जोन में नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क से भूमि हस्तांतरण की कार्रवाई पूरी नहीं हो पाई। खास बात यह कि भूस्खलन जोन के ऊपर ट्रीटमेंट कार्य के लिए ग्रामीणों की भूमि का अधिग्रहण भी होना है। लेकिन, इस दिशा में भी कार्य आगे नहीं बढ़ा। कार्यदायी कंपनी अपनी नाकामी छुपाने के लिए सरकार पर ही देरी के लिए दोष मढ़ रही है। 

एनजीटी की रोक 

लामबगड़ भूस्खलन जोन पर आधी-अधूरी तैयारी के साथ कार्य कर रहे एनएच लोनिवि को एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) से भी झटका लगा है। निर्माण स्थल तक लिंक रोड बनाने के लिए परियोजना में कुछ पेड़ काटे जाने थे। लेकिन, 15 अप्रैल 2018 को भूस्खलन जोन में पेड़ काटने की अनुमति पर एनजीटी ने रोक लगा दी। हालांकि, जिला प्रशासन ने रोक हटाने के लिए जनोपयोगी कार्य व जानमाल के खतरे का तर्क देकर पहल की है। उम्मीद है कि जल्द ही एनजीटी की रोक के दायरे से यह परियोजना हट जाएगी। 

बार-बार हो रहा भूस्खलन 

एनएच के अधिशासी अभियंता जितेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक लामबगड़ में बार-बार भूस्खलन हो रहा है। बरसात के चलते भी यहां कार्य किया जाना संभव नहीं है। चारधाम परियोजना पर एनजीटी की रोक के दायरे में यह भूस्खलन जोन भी है। प्रयास है कि वन भूमि हस्तांतरण की कार्रवाई जल्द की जाए। बारिश के बाद ट्रीटमेंट कार्य रफ्तार पकड़ेगा।

एनजीटी से लगी रोक हटने की उम्मीद 

चमोली की जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया के अनुसार जल्द ही एनजीटी से लगी रोक हटने की उम्मीद है। भूमि अधिग्रहण के मामले में दो लोगों की कम भूमि की जरूरत कंपनी को ट्रीटमेंट के लिए है। इसके लिए भूमि अधिग्रहण के बजाय कंपनी को खुद ही भू-स्वामियों से समझौता कर भूमि ख्ररीदने करने को कहा गया है। 

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