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1962 में भारत-चीन के युद्ध के दौरान सेना के साथ कंधा मिलाकर सीमा तक गए थे नीती के ग्रामीण, जानिए

1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान चमोली जिले के नीती गांव के लोग घोड़े-खच्चर पर सैन्य सामान लादकर न केवल अग्रिम चौकियों तक गए बल्कि वहां जवानों के साथ चार माह का वक्त भी बिताया।

By Edited By: Published: Sat, 20 Jun 2020 03:00 AM (IST)Updated: Sat, 20 Jun 2020 01:38 PM (IST)
1962 में भारत-चीन के युद्ध के दौरान सेना के साथ कंधा मिलाकर सीमा तक गए थे नीती के ग्रामीण, जानिए
1962 में भारत-चीन के युद्ध के दौरान सेना के साथ कंधा मिलाकर सीमा तक गए थे नीती के ग्रामीण, जानिए

गोपेश्वर(चमोली), जेएनएन। सीमावर्ती गांवों के लोगों को द्वितीय रक्षा पंक्ति कहा जाता है, तो इसकी वजह भी है। सीमा पर होने वाली अवांछित गतिविधियों पर तो यह रक्षा पंक्ति नजर रखती ही है, जरूरत पड़ने पर सेना के लिए मददगार भी साबित होती है। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान चमोली जिले के नीती गांव के लोग घोड़े-खच्चर पर सैन्य सामान लादकर न केवल अग्रिम चौकियों तक गए, बल्कि वहां जवानों के साथ चार माह का वक्त भी बिताया। चमोली जिले में जोशीमठ से करीब 85 किलोमीटर दूर है सरहद पर देश का आखिरी गांव नीती। इसी गांव के रहने वाले 76 वर्षीय नारायण सिंह पेशे से किसान हैं। 

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वर्ष 1962 के दिनों को याद करते हुए वह बताते हैं कि तब मेरी उम्र सिर्फ 18 साल की थी। सर्दियों के दिन थे नीती गांव के लोग सर्दियों में चमोली के पास कौड़िया गांव में प्रवास करते हैं और गर्मियों में वापस नीती लौट जाते हैं। वह बताते हैं कि उन दिनों नेफा में चीन ने आक्रमण किया तो यहां भी सीमा पर सतर्कता बढ़ाई गई। हालांकि यहां युद्ध नहीं हुआ था, लेकिन सेना की तैनाती बढाई गई। वह कहते हैं कि सर्दियों का मौसम था और भारी बर्फबारी के कारण रास्तों का भी पता नहीं चल रहा था। तब बाहर से आ रहे सैनिकों को सीमा तक पहुंचाने का काम नीती गांव के लोगों ने ही किया था। वह बताते हैं कि अपने घोड़े-खच्चरों पर सैनिकों का सामान लादकर वह सीमा तक गए। 
वह कहते हैं कि तब उनके पिता मान सिंह नवंबर में सैनिकों के साथ सीमा के लिए रवाना हुए थे और फरवरी तक वहीं रहे। कौड़िया से नीती गांव तक पहुंचने में ही उन लोगों को 20 दिन लग गए थे। नीती गांव के ही 79 वर्षीय खुशहाल सिंह भी उन लोगों में शामिल थे जो सेना के साथ नीती गांव तक गए थे। वह बताते हैं कि तब नीती और मलारी गांव के करीब आठ सौ लोग अपने घोड़े खच्चरों के साथ सेना के साथ गए थे। 
इनमें से ज्यादातर को सेना ने नीती गांव से लौटा दिया और कुछ को अपने साथ अग्रिम पोस्ट तक ले गए। गांव के ही 80 वर्षीय रुद्र सिंह राणा कहते हैं कि चीन ने अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। ऐसे में उसे मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ग्रामीण सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने को तैयार हैं।

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