Chardham Yatra: अब बदरीनाथ में छह माह तक नर करेंगे नारायण की पूजा
भगवान बदरी विशाल के अपने धाम में विराजमान होने के बाद अब अगले छह माह नर उनकी पूजा करेंगे। शीतकाल के छह माह देवर्षि नारद देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में नारायण की पूजा करते है।
चमोली, हरीश बिष्ट। भगवान बदरी विशाल के अपने धाम में विराजमान होने के बाद अब अगले छह माह नर उनकी पूजा करेंगे। मान्यता है कि कपाट बंद होने के बाद शीतकाल के छह माह देवर्षि नारद देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में भगवान नारायण की पूजा करते हैं। इस दौरान नर की आवाजाही धाम में प्रतिबंधित रहती है।
समुद्र तल से 3133 मीटर (10276 फीट) की ऊंचाई पर स्थित श्री बदरीनाथ धाम को देश के चारों धाम में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। 'स्कंद पुराण' के केदारखंड में उल्लेख है कि 'बहुनि सन्ति तीर्थानी दिव्य भूमि रसातले, बदरी सदृश्य तीर्थं न भूतो न भविष्यति:।' अर्थात स्वर्ग, पृथ्वी व नर्क तीनों ही जगह अनेकों तीर्थ हैं, परंतु बदरीनाथ के समान तीर्थ न तो भूतकाल में था और न भविष्य में ही होगा।
मान्यता है कि हिमालय की कंदराओं में पहाड़ियों से घिरे बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु ने तप किया था। इसलिए यहां भगवान बदरी विशाल की पूजाओं की भी विशिष्ट परंपराएं हैं। छह माह शीतकाल में जब नारायण के कपाट बंद होते हैं, तब देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में देवर्षि नारद भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
इस दौरान भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी भी बदरीश पंचायत में विराजमान रहती है। ग्रीष्मकाल में जब छह माह के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं, तब मनुष्यों को भगवान की पूजा का अधिकार रहता है। इस दौरान देश-विदेश के विष्णु भक्त बदरीनाथ धाम पहुंचकर भगवान की पूजा-अर्चना का पुण्य अर्जित करते हैं।
छह माह नारायण से अलग रहेंगी माता लक्ष्मी
श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद अब छह माह तक माता लक्ष्मी भगवान नारायण से अलग रहेंगी।बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल बताते हैं कि बदरीनाथ मंदिर के भीतर ही माता लक्ष्मी का अपना अलग मंदिर है। यहां पर छह माह तक भक्त माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करेंगे।
धाम के कपाट बंद होने से पूर्व भगवान नारायण की पंचायत से देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान के बालसखा उद्धवजी के बाहर निकलने के बाद माता लक्ष्मी भगवान के साथ विराजमान होती हैं।
तीन भागों में बंटा है बदरीनाथ मंदिर
कहते हैं कि गढ़वाल के राजा ने बदरीनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। जबकि, लोक मान्यताओं के अनुसार आद्य शंकराचार्य ने यहां पर मंदिर की स्थापना की थी। यह मंदिर तीन भागों में बंटा हुआ है। गर्भगृह में भगवान नारायण के साथ उनकी पंचायत मौजूद है। दूसरा भाग दर्शन मंडप है।
यहां पर बैठकर श्रद्धालु भगवान बदरी विशाल को करीब से निहारने का आत्मिक सुख अर्जित करते हैं। तीसरा हिस्सा सभामंडप है। यहां से भी श्रद्धालु भगवान नारायण की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
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