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    संस्कृति संरक्षण, प्रबंधन व अनुशासन का परिचायक नव संवत्सर

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 01 Apr 2022 04:08 PM (IST)

    संवत्सर प्रतिपदा अर्थात नव संवत्सर भारतीय संस्कृति का परिचायक तो है ही साथ ही यह पर्व हमें प्रबंधन और अनुशासन का भी बोध करता है। चैत्र शुक्लपक्ष नवरात्र की प्रतिपदा ही वह श्रेष्ठ तिथि है।

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    संस्कृति संरक्षण, प्रबंधन व अनुशासन का परिचायक नव संवत्सर

    जागरण संवाददाता, बागेश्वर : संवत्सर प्रतिपदा अर्थात नव संवत्सर भारतीय संस्कृति का परिचायक तो है ही, साथ ही यह पर्व हमें प्रबंधन और अनुशासन का भी बोध करता है। चैत्र शुक्लपक्ष नवरात्र की प्रतिपदा ही वह श्रेष्ठ तिथि है। जबकि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन किया। इस पावन तिथि के महत्व को जानकर विक्रमादित्य ने विजय के पश्चात आज ही के दिन विक्रम संवत लागू किया।

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    डा. गोपालकृष्ण जोशी ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि सनातन धर्मी शक्तिपूजन सहित घट-स्थापना कर ध्वजारोपण करते हैं। समय विभाजन के लिए 60 संवत्सर निर्धारित हैं। वर्ष के राजा व मंत्री के चयन में वर्तमान शासकों की तरह तनिक भी विवाद यहां नहीं होता। संवत्सर प्रतिपदा को जो बार होता है, वह वर्ष का राजा और वैशाखी यानी विषुवत संक्रांति के दिन जो वार होता है, वह वर्ष का मंत्री होता है। इस वर्ष नल नाम संवत्सर में वर्ष का राजा शनि और मंत्री बृहस्पति देव हैं। संयमित रहें संतुलित आहर लें

    बसंत के आगमन पर जलवायु परिर्वतन के कारण कई बीमारियां भी बढ़ने लगती हैं। अत: संयमित रहते हुए और संतुलित आहार ग्रहण कर नवरात्र व्रत का विधान बताया गया है। नौ शक्तियों से ही संसार संचालित होता है। तथाशक्ति के अभाव में संसार शून्य हो जाता है। इसीलिए नौ दिन तक दुर्गा जी का शक्ति के रूप में पूजन किया जाता है।

    घट स्थापना और हरेला बोआई

    शक्तिपूजन के माध्यम से नदियों के प्रति भारतीय ²ष्टिकोण को स्पष्ट किया गया है। देवी भागवत में दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्याओं का पूजन श्रेष्ठ बताया गया है। कृषि प्रधान भारत देश के वासी देवीपूजन, कन्यापूजन के साथ घट स्थापना व हरेला की बोआई भी करते हैं।

    संवत्सर अपैट - चंद्र प्रतिकूल मेष, सिंह धनु।

    संक्रांति अपैट - वृष, कन्या, मकर।

    बाप पद दोष - उत्तरा फाल्गुनी, हस्त व चित्रा नक्षत्र के जातकों को। निवारण - दुर्गा सप्तशती पाठ, नवग्रह पूजन, वामपाद दोष के लिए श्वेत वस्त्र, चांदी, दधि व चाल का दान करें।

    निश्चय ही यह पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत का द्योतक तो है ही, साथ ही कन्यापूजन व पर्यावरण संरक्षण सहित हमारे वैज्ञानिक ²ष्टिकोण को भी अभिव्यक्त करता है। पर्व सामाजिक समरसता व उदारता के लिए उद्दीपन कार्य करते हैं।

    - डा. गोपाल कृष्ण जोशी, बागेश्वर