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अचार के विचार ने बदली तकदीर, गांव छोड़कर भागा ‘पलायन’

अल्मोड़ा जिले के तिमेल गांव की महिलाओं ने सभी के लिए मिसाल कायम की है। उन्होंने स्वरोजगार खड़ा कर पलायन को मात दी है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 07:37 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 05:17 PM (IST)
अचार के विचार ने बदली तकदीर, गांव छोड़कर भागा ‘पलायन’
अचार के विचार ने बदली तकदीर, गांव छोड़कर भागा ‘पलायन’

अल्मोड़ा, [बृजेश तिवारी]: अल्मोड़ा जिले के सल्ट ब्लॉक का गांव है गहणा तिमले। खेती के सहारे चलने वाले इस गांव के लोगों की जीवटता दस साल पहले तब कमजोर पड़ी, जब जंगलों से निकलकर जानवर फसलों को खाने लगे। घर-परिवार चलाने का विकल्प ढूंढने के लिए फिर शुरू हुआ पलायन का दौर और एकसाथ 50 परिवार शहरों में जाकर बस गए।  

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गांव पर लगे पलायन के दीमक को नेस्तनाबूत करने व रोजगार का विकल्प खड़ा करने का बीड़ा उठाया गांव की महिलाओं ने। हर घर से निकली महिलाओं ने एक-दूसरे का हाथ थामा। गांव में होने वाली फसलों को बचाने के लिए सबसे पहले जानवरों को जंगल में खदेड़ने की जंग शुरू की। इस हौसले को देख जीवटता फिर लौटी और गांव में नए तरह के रोजगार का उदय। हुआ। गांव में होने वाले आम, लहसुन, आंवले का अचार बनाने के साथ महिलाओं ने स्वयं इसे बाजार तक पहुंचाया। अब इस जच्बे ने लोगों को अपनी माटी से दूर करने के बजाय पलायन को गांव से बाहर खदेड़ दिया है। खेती के साथ गहणा तिमले का अचार पिछले तीन साल में अपनी गुणवत्ता के बूते बाजार में खास पहचान बना रहा है।

सबसे पहले 59 परिवारों का समूह बना 

दस साल पहले तक गांव में दो सौ से परिवार रहते थे, लेकिन 50 परिवारों के गांव छोड़ने के बाद जब तेजी से घर सूने होने लगे तो गांव की महिलाओं ने अपनी माटी, अपनी संस्कृति को बचाने की ठानी। महिलाओं की जीवटता को देख बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक खेतीबाड़ी में, अचार बनाने में उनका हाथ बंटाते हैं। खेतों व फलों के बाग जंगली जानवरों से बचाने के लिए बकायदा रात में भी पहरेदारी की जाती है। इसी पहरेदारी का परिणाम है कि अब पहले की अपेक्षा जानवरों का आतंक गांव में कम हो गया है। 2015 में 59 परिवारों की महिलाओं ने पांच समूहों का गठन किया और गांव में क्विंटल के हिसाब पैदा होने वाले आम, लहसुन, आंवला को आजीविका का साधन बनाया।

डेढ़ माह में पांच क्विंटल अचार 

इस साल डेढ़ महीने के भीतर गांव की महिलाओं ने आम, लहसुन व आंवले का पांच क्विंटल अचार बनाया है। मई आखिरी सप्ताह से अचार बनाने का काम शुरू किया गया था। अचार तैयार करने के साथ इसकी पैकिंग भी घरों में की जाती है और उस पर लगने वाले रैपर में सुनहरे अक्षरों में दर्ज होता है गहणा तिमले का नाम। इस गांव के अचार को शुरुआत में सल्ट और आसपास के इलाकों में ही बेचा गया था, लेकिन अब इसकी मांग पूरे जिले में है। साथ ही यह बाजार में बिकने वाले ब्रांडेड अचार की तुलना में सस्ता है।

सल्ट ब्लॉक में आम, लहसुन, आंवला का उत्पादन काफी है। गहणा तिमले गांव की एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना के सहायक प्रबंधक राजेश मठपाल ने बताया कि महिलाओं ने प्रयास किया और आज वह कामयाबी की ओर बढ़ रही हैं। यह आत्मनिर्भरता की भी है। महिलाओं के उत्पादों को हिलांस ब्रांड के नाम से बाजार में उतारा जा रहा है। अब अल्मोड़ा व देहरादून के आउटलेट्स में अचार बेचा जाएगा। 

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