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    Almora: पहाड़ में बैठकी होली की अनूठी परंपरा, पौष मास के पहले रविवार से होता है गायन; 150 साल से भी पुराना है इतिहास

    कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई। पर्वतीय क्षेत्र में होली गीत गायन का इतिहास 150 साल से भी अधिक पुराना है। कुमाऊं में होली गीतों के गायन का सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से हुआ। रामपुर के उस्ताद अमानत उल्ला ने इसकी शुरुआत ब्रिटिशकाल के दौरान 1860 में इसकी शुरुआत की। बैठकी होली गायन मुख्यतया शास्त्रीय संगीत पर आधारित है।

    By chandrashekhar diwedi Edited By: riya.pandey Updated: Tue, 26 Dec 2023 03:48 PM (IST)
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    पहाड़ में बैठकी होली की अनूठी परंपरा

    डीके जोशी, अल्मोड़ा। उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में शास्त्रीय संगीत पर आधारित बैठकी होली गायन की परंपरा डेढ़ सौ साल से भी अधिक समय से चल रही है। यहां शीतकाल के पौष मास के प्रथम रविवार से गणपति की वंदना से बैठकी होली का आगाज होता है। यह होली विभिन्न रागों में चार अलग-अलग चरणों में गाई जाती है। जो होली टीके तक चलती है।

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    कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई। पर्वतीय क्षेत्र में होली गीत गायन का इतिहास 150 साल से भी अधिक पुराना है। कुमाऊं में होली गीतों के गायन का सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से हुआ। रामपुर के उस्ताद अमानत उल्ला ने इसकी शुरुआत ब्रिटिशकाल के दौरान 1860 में इसकी शुरुआत की। बैठकी होली गायन मुख्यतया शास्त्रीय संगीत पर आधारित है।

    आध्यात्मिक होली शुरू

    बैठकी होली गायन चार चरणों में पूरा होता है। पहला चरण पौष मास के प्रथम रविवार से आध्यात्मिक होली ''गणपति को भज लीजे मनवा'' से शुरू होकर वंसत पंचमी के एक दिन पूर्व तक चलता है। वसंत पंचमी से महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व तक के दूसरे चरण में भक्तिपरक व श्रृंगारिक होली गीतों का गायन किया जाता है।

    तीसरे चरण में महाशिवरात्रि से रंगभरी एकादशी के एक दिन पूर्व तक हंसी मजाक व ठिठोली युक्त गीतों का गायन होता है। रंगभरी एकादशी से होली टीके तक मिश्रित खड़ी व बैठकी होली की स्वरलहरियां चारों ओर गूंजती हैं। चौथे चरण में रंगभरी एकादशी से बैठी होली के साथ ही खड़ी होली गायन का भी क्रम चल पड़ता है। चीर बंधन वाले स्थानों अथवा सार्वजनिक स्थानों में खड़े होकर पद संचानल करते हुए वाद्य यंत्रों के साथ लयबद्ध तरीके से गाया जाता है।

    इन शास्त्रीय रागों पर होता है होली गायन

    बैठकी होली का गायन शास्त्रीय रागों पर आधारित होता है। यह होलियां पीलू, भैरवी, श्याम कल्याण, काफी, परज, जंगला काफी, खमाज, जोगिया, देश विहाग व जै-जैवंती आदि शास्त्रीय रागों पर विविध वाद्य यंत्रों के बीच गाई जाती है।

    अल्मोड़ा श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब सचिव विनीत बिष्ट के अनुसार, बीते 117 सालों से साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब होली गायन की पुरातन गायन परंपरा को कायम रखे हुए है। अल्मोड़ा के बाद अब नैनीताल, हल्द्वानी, रानीखेत, चम्पावत, पिथौरागढ़ , बाड़ेछीना आदि स्थानों में भी बैठकी होली गायन शुरू हो गया है।

    रंगकर्मी व होली गायक एके सनवाल के अनुसार, बैठकी होली गायन को लेकर युवाओं के रूझान में पिछले एक दशक से कमी आती जा रही है। लोक संस्कृति की इस परंपरा को बचाने के लिए युवाओं को आगे आना होगा।

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