उत्तराखंड में गुलदार मानव संघर्ष थामने को ‘लिव विद लैपर्ड’ प्लान पर अमल शुरू, ड्रोन सर्विलांस से निगरानी
उत्तराखंड में गुलदार मानव संघर्ष को थामने के लिए 'लिविंग विद लैपर्ड' प्लान शुरू किया गया है। अल्मोड़ा वन प्रभाग में क्विक रिस्पॉन्स टीम गठित की गई है, ...और पढ़ें

दीप सिंह बोरा, रानीखेत। उत्तराखंड में चरम पर पहुंच चुके गुलदार मानव संघर्ष को थामने के लिए कुमाऊं में ‘लिविंग विद लैपर्ड’ प्लान पर कदम बढ़ा लिए गए हैं। खासतौर पर अल्मोड़ा वन प्रभाग के दोनों सब डिवीजन में बाकायदा क्विक रिस्पोंस टीम (क्यूआरटी) गठित कर ली गई है। जो संभावित संघर्ष वाले स्थलों पर पैनी निगाह रखेगी। त्वरित कदम भी उठाएगी। रैपिड टीम में फिलवक्त तेज तर्रार सात सदस्य हैं।
इनकी संख्या बढ़ाने की योजना है। मानव वन्यजीव टकराव को कम करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक अपनाने में जुटा वन विभाग कठिन भौगोलिक हालात वाले ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रोन सर्विलांस की भी मदद लेने लगा है। अल्मोड़ा व रानीखेत उपप्रभाग में वन कर्मियों को प्रशिक्षण देकर निगरानी शुरू कर दी गई है। वहीं रात्रि गश्त के बहाने ग्रामीणों को जागरूक कर गुलदार के साथ जीने का अभ्यास भी कराया जा रहा है।
दरअसल, हिंसक गुलदार से प्रभावित जुनर गांव (महाराष्ट्र) में संघर्ष बेकाबू होने पर ‘लिव विद लैपर्ड’ प्लान अपनाया गया था। वहां बेहतर परिणाम सामने आने पर इसे उत्तराखंड में भी अपनाने की योजना बनाई गई। 2016 में गुलदार के आतंक से बेजार टिहरी, पौखाल व अगरोड़ा (गढ़वाल) में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालकि राजीव भरतरी के दिशा निर्देशन में रैपिड रिस्पांस टीम गठित कर ग्रामीणों के बीच जनजागरूकता अभियान चलाए गए।
अब लंबे इंतजार के बाद ही सही कुमाऊं में ‘लिव विद लैपर्ड’ प्लान को धरातल पर उतारने की दिशा में प्रयास तेज हो गए हैं। अल्मोड़ा व रानीखेत उपप्रभाग में क्यूआरटी सदस्य ग्रामीणों को गुलदार के साथ जीने, सावधानी बरतने और वनक्षेत्रों में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचने की तकनीक बता रहे हैं।
जंगल और रात गुलदार का, गांव में न बनने दें कुर्री का जंगल
रानीखेत उपप्रभाग में वन क्षेत्राधिकारी तापस मिश्रा की अगुआई में क्यूआरटी के सदस्य गुलदार प्रभावित क्षेत्रों में गश्त कर आसपास के ग्रामीणों को लिव विद लैपर्ड की खूबियों से रू ब रू करा रहे हैं। समुदाय आधारित जागरूकता बैठकें की जा रही हैं। सुरक्षित व्यवहार व गुलदार के आबादी में डेरा डालने पर तत्काल सूचना देने को कहा जा रहा है। संघर्ष की संभावना वाले गांवों में रात्रिगश्त व सतत निगरानी कर ग्रामीणों को सर्दियों में शाम छह से आठ बजे तक अकेले जंगल या वन्य मार्गों की ओर न जाने की सलाह दी जा रही है। पहाड़ के आबादी क्षेत्र में गुलदार व जंगली सूअरों का अड्डा बनते जा रहे कुर्री घास (लैंटाना) के उन्मूलन को प्रेरित किया जा रहा है। विभिन्न संवेदनशील जंगल व मार्गों पर हाइटेक कैमरा ट्रैप लगा गुलदार की गतिविधियों, उनकी संख्या आदि के डेटा भी संकलित किए जा रहे हैं।
‘लिव विद लैपर्ड प्लान अन्य वन प्रभागों में भी शुरू हो चुका है। अल्मोड़ा डिवीजन में तेजी लाई गई है। उम्मीद है यह तरीका मानव वन्यजीव संघर्ष के न्यूनीकरण में मददगार बनेगा। ड्रोन प्रणाली भी अपनाई जाने लगी है। - दीपक सिंह, डीएफओ’
‘हम वन क्षेत्रों से लगे गुलदार प्रभावित गांवों में नाइट पेट्रोलिंग के साथ ग्रामीणों को सजग कर रहे हैं कि खेतों में कब तक रहना है। शाम होने से पहले जंगलों की ओर कतई न जाएं। अंधेरे में बहुत जरूरी हुआ तो झुंड के साथ निकलें। घर या बाखलियों में कुर्री की झाड़ियां न पनपने दें। ताकि गुलदार या सूअर उनमें शरण ले ही न सकें। सौर ऊर्जा लगवाने को भी प्रेरित कर रहे।
- तापस मिश्रा, वन क्षेत्राधिकारी रानीखेत’
यह भी पढ़ें- अल्मोड़ा: बसगांव में आपसी संघर्ष में नर गुलदार की मौत, ग्रामीणों में दहशत
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड के मशहूर शिकारी जॉय हुकिल का दावा, संघर्ष के बजाय गुलदार ने चुनी आसान राह

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।