World Music Day : बनारस संगीत घराने में दो पीढ़ियों के अवसान के बाद की रिक्तता को युवा कलाकार तेजी से भर रहे
Banaras Music Gharana भगवान शिव की नगरी काशी में कुछ तो खास है जो इसे संगीत की दुनिया में विशेष बनाता है। संगीत की वजह से ही यह शहर 2016 में यूनेस्को की धरोहर मेें शामिल किया गया

वाराणसी, कुमार अजय। भगवान शिव की नगरी काशी में कुछ तो खास है जो इसे संगीत की दुनिया में विशेष बनाता है। संगीत की वजह से ही यह शहर 2016 में यूनेस्को की धरोहर मेें शामिल किया गया। कालचक्र के विधान के अनुसार बनारस संगीत घराने की दो पीढिय़ां अवसान को प्राप्त हुईं।
तबले के महारथी पं. सामता प्रसाद मिश्र (गुदई महाराज), पं. किशन महाराज, पं. कुमार लाल मिश्र, सारंगी के जादूगर पं. हनुमान प्रसाद मिश्र, पं. गोपाल मिश्र, प. बैजनाथ मिश्र जैसे दिग्गज अनंत यात्रा के पथिक बने। उधर, शास्त्रीय गायन के पर्याय पं. अमरनाथ पशुपतिनाथ मिश्र, स्वर साम्राज्ञी गिरिजा देवी, पं. राजन मिश्र भी दिवंगत हुए।
कथक में बनारस के ही प्रतिनिधि माने जाने वाले पं. बिरजू महाराज, नटराज गोपीकृष्ण तथा नृत्यांगना सितारा देवी भी नहीं रहीं। ऐसे में एक दीर्घ रिक्तिता स्वाभाविक थी। ऐसे में काशी के युवा कलाकारों की मेहनत और दक्षता संतोष देती है। तबला में पं. शुभ महाराज, गायन में रजनीश, रितेश व स्वरांश तो कथक में विशाल कृष्ण और सारंगी में संदीप और संगीत ने अपनी पहचान बनाई है। शिवानी (सारंगी), श्रेयांशी (कथक), अलीशा (तबला) तथा आर्यन (गायन) जैसे नवोदितों ने शानदार प्रस्तुतियों से उम्मीदों की लौ जगाई है। आइये सुनते हैं आने वाले कल के सितारों के परिश्रम, लगन की कहानी, उन्हीं की जुबानी।
दादा गुरु पं. साजन मिश्र ने दिखाई राह : शिवानी
पं. हनुमान प्रसाद मिश्र, प. गोपाल मिश्र की अपूर्व कीर्ति से मंडित पं. बड़े रामदास जी महाराज का यह घराना सारंगी की फनकारी के लिए ख्यात हुआ करता था। आगे चलकर घराने के वंश प्रतिनिधि पं. राजन मिश्र (अब दिवंगत) तथा पं. साजन मिश्र खयाल गायकी के क्षेत्र में ध्रुव नक्षत्र की तरह स्थापित हुए। अलबत्ता यह दर्द उन्हें सालता रहा कि खानदान में सारंगी की परंपरा फिर स्थापित हो।
एक दिन दादा गुरु पं. साजन मिश्र ने अपनी इस मुराद का जिक्र मुझसे किया। उसी दिन पुरखों की सारंगी मेरे कंधे से आ लगी। पं. कन्हैया लाल मिश्र के निर्देशन में अभ्यास शुरू हो गया। दादा बंधुओं राजन-साजन मिश्र के मार्गदर्शन में अभ्यास निखरता गया। अब सारंगी को ही जीवन ध्येय बना लिया है।
बनारस की खयाल गायिकी में महारत पाने का जज्बा : आर्यन
घर में गायन-वादन का ही माहौल था। कोई चार साल की उम्र रही होगी, जब गुरुजनों की गोद में बैठकर गंगा महोत्सव जैसे गरिमामय मंच पर आलाप लेने का अवसर मिला। पिता पं. अनूप मिश्र से मैंने पहला गुरुमंत्र प्राप्त किया। मेरे नायक बने संगीत जगत के यशस्वी दिग्गज तथा मेरे नाना पं. शिवनाथ मिश्र। दोनों दादा गुरु पं. राजन-साजन मिश्र भी पीठ थपथपाते रहे। अब एकमात्र लक्ष्य है, अपने गमकदार सुरों के लिए मशहूर बनारस की गायिकी को शिखर तक पहुंचाना, सितारों से अलग अपनी एक अलग पहचान बनाना।
'बांया पिटवाते पिटवाते बांध दिया गंडा : अलीशा
तबले की बनारसबाज शैली के जादूगर स्व. सामता प्रसाद मिश्र (गुदई महाराज) की पपौत्री होने का गौरव ही काफी है। इस स्वाभाविक सोच ने मेरे किरदार को तबले से जोड़ा। पिता पं. विजय मिश्र की ख्वाहिश थी कि स्व. पं. बाचा मिश्र (अपने जमाने के दिग्गज तबला वादक) के कुल की कोई बेटी इस गौरवशाली विरासत को संभाले और सारे मिथक तोड़ डाले। इस मंतव्य से मेरे दादा पं. कैलाशनाथ मिश्र ने बालपन में ही तबले पर हाथ रखवाया। शुरू हो गया बांया (तबला) पीटने-पिटवाने का सिलसिला।
एक दिन गुरु पूर्णिमा पर दादा जी के हाथों से गंडा बंधन करवाया। फिलहाल बीएचयू के संगीत संकाय में गुरुदेव डा. प्रवीण उद्धव के सान्निध्य में ग्रेजुएशन कर रही हूं। दिल्ली की सीसीआरटी स्कालरिस्ट होने के अलावा संगीत नाटक अकादमी का भी सहयोग प्राप्त है।
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