भविष्य की योजनाओं के लिए तैयार हो रहा है वरुणा नदी का एरियल मैप
वाराणसी में वरुणा नदी का ड्रोन से हवाई सर्वेक्षण किया जा रहा है। इस सर्वेक्षण से नदी के दोनों किनारों का एरियल मैप बनेगा, जिससे बाढ़ क्षेत्रों की जानकारी मिलेगी और भविष्य में निर्माण कार्यों में मदद मिलेगी। सर्वे ऑफ इंडिया के आदेश पर आरव अनमैन्ड सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड यह कार्य कर रही है। दैनिक जागरण ने 2016 में नदी के उद्धार के लिए अभियान चलाया था, जिसके बाद प्रशासन ने इस पर ध्यान दिया।

लिडार सेंसर एंड हाई रिजोल्यूशन आप्टिकल कैमरा युक्त एयरक्राफ्ट से हो रहा सर्वे।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। वरुणा नदी का ड्रोन से सर्वे कार्य किया जा रहा है। इसके तहत वरुणा नदी के मध्य से दोनों तरफ दो-दो किलोमीटर तक एरियल मैप बनाया जा रहा है। इससे जहां बाढ़ आदि क्षेत्र की जानकारी मिलेगी वहीं सिंचाई विभाग भविष्य में डैम, पुल-पुलिया, बंधी आदि निर्माण कार्य के लिए एरियल मैप का उपयोग कर सकेगा।
मैप के माध्यम से भविष्य की योजनाओं को तैयार करने में सहूलियत होगी। सर्वे आफ इंडिया के आदेश पर आरव अनमैंड सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड वरुणा नदी का सर्वे का कार्य कर रही है। कंपनी के प्रोजेक्ट क्वार्डिनेटर सुधांशु सिंह ने बताया कि नदी के मध्य से एक किलोमीटर की त्रिज्या का एरियल मैप बनाया जा रहा है।
इस प्रकार वरुणा के उद्गम स्थल फूलपुर प्रयागराज तक करीब 200 वर्ग किलोमीटर का मैप तैयार किया जाएगा। इसके लिए एयरक्राफ्ट (फिक्स विंग हाइब्रिड ड्रोन) पर स्थापित लिडार (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) सेंसर एंड हाई रिजोल्यूशन आप्टिकल कैमरा से सर्वे किया जा रहा है। 16 एमएम लेंस शटर वाला कैमरा 21 मीटर प्रति सेकेंड की गति अवस्था में प्रति सेकेंड एक फोटो बनाता है। यह 13 किलोग्राम का ड्रोन 120 मीटर की ऊंचाई से फोटो ले रहा है।
बताया कि नियमानुसार एयरपोर्ट के येलो जोन में होने के कारण 120 मीटर की ऊंचाई तक ड्रोन उड़ाने के लिए एटीसी की अनुमति लेने के बाद ड्रोन उड़ाया जाता है। एयरपोर्ट से 12 किलोमीटर की त्रिज्या वाले येलो जोन में जब कोई हवाई सेवा नहीं गुजरती है तो एटीसी से ड्रोन उड़ाने की अनुमति दी जाती है। एयरपोर्ट से 12 किलोमीटर दूर ग्रीन जोन में सर्वे कार्य पहुंचने पर एटीसी की अनुमति की जरूरत नहीं होगी तो कार्य में तेजी आएगी।
जागरण अभियान से 2016 में शुरू हुआ था उद्धार कार्य
वरुणा नदी का अपना पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। वाराणसी नाम के पीछे वरुणा व असि नदी के बीच बसा होने के कारण भी नदी का महत्व है। यह अपने तटवर्ती लोगों के जीवन से जुड़ी होने के साथ विशेष जलीय जीव और पौधों आदि के लिए जानी जाती है। यह अपना अस्तित्व धीरे-धीरे खोती जा रही थी। इसके उद्धार के लिए दैनिक जागरण ने 2016 में समाचारीय अभियान से जनजागरण किया।
परिणामस्वरूप तत्कालीन कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण ने इसका संज्ञान लिया। उसी के बाद कैंटोमेंट स्थित इमिलिया घाट से लेकर पुराने पुल तक नदी की गाद को निकालकर दोनों तरफ आठ किलोमीटर लंबा पाथवे और जीओ तकनीक से किनारे बनाए गए। इतना ही नहीं बाद में इजराइल व डेनमार्क के सहयोग से पुनरुद्धार की योजना बनी। नदी के लिए बीएचयू ने सर्वे कार्य भी किया। नदी के उच्चावच (ढलान आदि) का अध्ययन किया गया। अब एरियल सर्वे हो रहा है।

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