सीवर के दूषित पानी से बनी दवा लौटाएगी एंटीबायोटिक की क्षमता, बीएचयू के चिकित्सा विज्ञानियों ने सुझाया रास्ता
बीएचयू के चिकित्सा विज्ञानियों ने सीवर के दूषित पानी से बैक्टीरियोफेज नामक दवा बनाई है जो निष्क्रिय एंटीबायोटिक दवाओं की क्षमता को वापस ला सकती है। चूहों और 15 मरीजों पर सफल परीक्षण के बाद यह दवा एंटीबायोटिक के उपयोग को कम करने और दवा प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है।

संग्राम सिंह, जागरण वाराणसी। एंटीबायोटिक दवाएं बीमारियों से बचाव करती हैं, लेकिन इनका अधिक उपयोग उनकी प्रभावशीलता को कम कर देता है। इससे मरीज लंबे समय तक परेशान रहते हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के माइक्रोबायोलाजी विभाग के प्रो. गोपालनाथ और उनकी टीम ने दो साल के शोध में सीवर के दूषित पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से बैक्टीरियोफेज दवा तैयार की है। यह दवा निष्क्रिय हो चुकी एंटीबायोटिक की ताकत वापस ला रही है।
प्रो. गोपालनाथ ने बताया कि इस दवा का लैब में चूहों और 15 मरीजों पर सफल परीक्षण हुआ है। सर सुंदरलाल अस्पताल में इसे अपनाने की तैयारी में है और देश के कई चिकित्सा संस्थान इसकी मांग कर रहे हैं। एस्चेरिचिया कोलाई, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा, एंटरोबैक्टर, क्लेब्सिएला निमोनिया, एसिनोटोबैक्टर और एंटरोकोकस जैसे बैक्टीरिया से बैक्टीरियोफेज नाम की दवा को बनाया गया है।
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बोन इन्फेक्शन, आर्थो इन्फेक्शन और क्रानिक अल्सर जैसे गंभीर संक्रमणों में बैक्टीरियोफेज और एंटीबायोटिक के संयोजन दो से तीन दिनों में मरीजों को ठीक करने में सफलता मिली है। शोध में उन मरीजों को शामिल किया गया, जिन पर चौथे चरण की एंटीबायोटिक बेअसर हो रही थीं। मरीजों को पहले बैक्टीरियोफेज इंजेक्शन दिया जाता है। इसके छह घंटे बाद एंटीबायोटिक देने पर बेहतर परिणाम मिले।
बाक्स- एंटीबायोटिक दवा के डोज को करेगी कम
प्रो. गोपालनाथ ने बताया कि यह दवा एंटीबायोटिक के उपयोग को सीमित करने में कारगर हो सकती है। इस तरह का शोध देश में पहली बार हुआ है और इससे मरीज को दी जाने वाली एंटीबायोटिक की मात्रा कम करने में काफी मदद मिलेगी। इससे पहले बीएचयू की वायरल रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लैब (वीआरडीएल) में चूहों को तीन समूहों में बांटा गया। पहले वाले समूह को केवल एंटीबायोटिक, दूसरे को केवल बैक्टीरियोफेज और तीसरे को पहले बैक्टीरियोफेज और इसके छह घंटे बाद एंटीबायोटिक दी गई। तीसरा तरीका सबसे प्रभावी पाया गया। इसी तरह चूहों और मरीजों पर परीक्षण सफल रहा।
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शोध दो अंतरराष्ट्रीय जर्नल में हुआ प्रकाशित
इस शोध को अमेरिका के जर्नल आफ क्लीनिकल इम्युनोलाजी और चीन के वर्ल्ड जर्नल आफ वायरोलाजी में प्रकाशित किया गया है। शोध टीम में डा. अलख नारायण सिंह, डा. मीनाक्षी साहू, रंजीत विश्वकर्मा, श्वेता सिन्हा, सृष्टि सिंह और अपराजिता सिंह शामिल थे।
अत्यधिक एंटीबायोटिक उपयोग से बैक्टीरिया हो सकते हैं दवाओं के प्रति प्रतिरोधी
बीएचयू में माइक्रोबायोलाजी विभाग के विशेषज्ञों ने शोध में पाया कि जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। बार-बार और अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक का उपयोग करने से बैक्टीरिया दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं, ऐसे में उपचार बेहद कठिन हो जाता है। कई बार गलत निदान के चलते मरीज को ऐसी दवाएं दी जाती हैं जो प्रभावी नहीं होतीं, इससे न सिर्फ बीमारी लंबी खिंचती है, बल्कि संक्रमण भी गंभीर रूप ले सकता है।
इसके अलावा, एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग बैक्टीरिया को मजबूत बनाता है, जिससे भविष्य में उपचार की संभावनाएं कम हो जाती हैं। ऐसे में एंटीबायोटिक का सेवन केवल बैक्टीरियल संक्रमण की स्थिति में ही करना चाहिए। वायरल संक्रमण जैसे साधारण फ्लू या सर्दी में एंटीबायोटिक का उपयोग नहीं करना चाहिए। दवाओं का सेवन हमेशा डाक्टर की सलाह और निर्धारित खुराक के अनुसार ही करना चाहिए ताकि दवाओं की प्रभावशीलता बनी रहे।
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